Wednesday, January 15, 2025

अनमोल वचन

हम लोग अपनी-अपनी धार्मिक आस्थाओं के आधार पर प्रभु भजन करते हैं, व्रत-रोजे रखते हैं, मंदिर-मस्जिद, गुरूद्वारे एवं चर्च जाते हैं, परन्तु मन मंदिर को साफ स्वच्छ रखने पर ध्यान नहीं देते। इसी कारण बाहर के मंदिरों में ही घूमते रह जाते हैं, प्राप्त कुछ होता नहीं।

तुम इन ईंट-गारे के मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारों में भले ही जाओ। साधना कक्ष में भले ही अभ्यास करो, परन्तु मन-मंदिर में पहुंचने का प्रयत्न अवश्य करो। ईश्वर सर्वत्र है, सदा है, आप में भी है, मुझमें भी है, वह समस्त प्राणियों में है। यदि आप किसी से द्वेष करते हैं, घृणा करते हैं तो उसके भीतर बसे परमात्मा के प्रति भी आप घृणा और द्वेष करते हैं।

किसी से आपके विचार नहीं मिलते तो नहीं मिलते, परन्तु जो भी मिलते हैं, उन्हीं के आधार पर उनसे स्नेह करो। यदि स्नेह करने में अपने स्वभाव के अनुसार असमर्थ हो तो घृणा और द्वेष का भाव तो मन में पैदा ही न होने दें, कोई मूर्ख हो अथवा आध्यात्म का जानकार पंडित अथवा उपदेशक हो, परन्तु यदि उनके भीतर काम, क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या के भाव हैं तो ये सभी एक समान है, क्योंकि मूर्ख भी अपनी आयु बेचकर जी रहा है और आध्यात्म का पंडित भी संसार की दल-दल में फंसकर अपनी आयु गंवा रहा है।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,735FansLike
5,484FollowersFollow
140,071SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय

error: Content is protected !!