लोकतांत्रिक समाज के निर्माण की मजबूत नींव में ‘गैर-सरकारी संगठन’ यानी एनजीओ ईट-गारे जैसा किरदार निभाते हैं। इनकी उपयोगिता को जमाना बखूबी जानता हैं। इनके योगदान को कमतर नहीं आंक सकते। आज ‘विश्व एनजीओ दिवस’ है जिसे आधिकारिक तौर पर साल-2010 में मान्यता मिली जबकि वर्ष-2014 में पहली दफे ‘संयुक्त राष्ट्र’ की अगुवाई में इस खास पर्व के मनाने का प्रचलन आरंभ हुआ जिसका श्रेय ब्रिटेन के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता व सफल उद्यमी मार्सिस लायर्स स्काडमैनिस को जाता है क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले विश्व एनजीओ दिवस’ का श्रीगणेश किया था। दिवस को मनाए जाने का विषय है संसार के सभी गैर-सरकारी संगठनों के बेहतरीन योगदान के संबंध में जनमानस को बताना, जागरूक करना व सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों में सामाजिक कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों का सम्मान करना। ‘स्माइल फाउंडेशन’ को भारत का सबसे बड़ा एनजीओ माना गया है जो गरीबी-असमानता के खिलाफ वर्षों से लड़ता आया है, जबकि ‘नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन’ को विश्व के सबसे बड़ा एनजीओ का दर्जा प्राप्त है। हिंदुस्तान में प्रथम एनजीओ सन-1917 में टैगोर जी के भतीजे गगनेंद्रनाथ टैगोर द्वारा कोलकाता में हथकरघा बुनकरों की मदद के लिए बनाया गया था। तभी से एनजीओ नाम और उसकी कार्यशैली चर्चाओं में आई।
पिछले वर्ष-2023 में ‘विश्व एनजीओ दिवस’ की थीम ‘मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने व सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियों को दूर करना देश के विकास में अहम भूमिका का निर्वहन करना’ थी। वहीं, इस बार की थीम एक सतत भविष्य का निर्माण: सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में एनजीओ की भूमिका है। प्रत्येक क्षेत्रों में इनके असंख्य सदस्य नि:स्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं।
असहाय, गरीबी उपशमन, जल, पर्यावरण, महिला अधिकार और अक्षरता से जैसे जरूरी मुद्दों में एनजीओ की संल्पिता को रोजाना हम देखते हैं। सरकारी परियोजनाएं हों या अपने अधिकारों से वंचित लोग, उन सभी का सहारा एनजीओ बनते हैं। लोग बेहिचक इनके पास मदद के लिए पहुंचते हैं। मजबूती के साथ गरीबों की आवाजें एनजीओ के सदस्य उठाते हैं। आजादी के बाद से ही तमाम एनजीओ स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सक्रिय हैं। मोटे तौर पर देखें तो भारत में इस वक्त करीब 30 लाख से अधिक गैर-सरकारी संगठन विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। चाहे केंद्र सरकार हो या राज्यों की हुकूमतें सभी इन्हें सामाजिक परिवर्तन की सूत्रधार, उत्प्रेरक और भागीदार मानती हैं।
गौरतलब है एनजीओ से नकारात्मक और सकारात्मक दोनों विधाएं इनसे वास्ता रखती हैं। अगर पहले नकारात्मक दृष्टि पर नजर डालें तो कई अप्रिय घटनाएं हाल-फिलहाल में देखने और सुनने को मिली। तभी, इनके समझ चुनौतियों की भरमार खड़ी हो गईं। विश्वसनीयता की कमी भी आई। ऐसा इसलिए, क्योंकि विगत कुछ वर्षों में कई संगठन अनियमितताओं, गड़बड़ी व हेराफेरी जैसे कृत्यों में फंसे। गरीबों की मदद की आड़ में गैर-जरूरी कामों में देखे गए। मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप भी लगे। इनके कामों में पारदर्शिता की भी कमी दिखाने लगी है। सरकारी फंड को डकारने का भी आरोप कईयों पर लगा। संगठनों की अनुपातहीन संख्या, पारदर्शिता व जवाबदेही की स्पष्ट नहीं रही। भ्रष्टाचार के आरोप लगातार लग रहे हैं। हाल ही में कई गैर-सरकारी संगठन धन की हेराफेरी में पाए गए जिसको लेकर केंद्र सरकार ने कईयों को काली सूची में डाला। जम्मू-कश्मीर के दर्जन एनजीओ आतंकी गतिविधियों में शामिल पाए गए, जिन्हें सरकार ने तुरंत बैन किया। बैन किए ज्यादातर संगठनों को पाकिस्तान से फंडि़ंग होती थी। पिछले माह ही प्रवर्तन निदेशालय ने छह एनजीओ से आतंकी फंडिंग के दोषियों से पांच करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की। कुल मिला कर एनजीओ की आड़ में ये एंटीनेशनल हरकते करते थे।
वहीं, अगर सकारात्मक पहलू पर गौर फरमाए तो एनजीओ मौजूदा वक्त में किस तरह से लोकतांत्रिक रचनाओं में सहभागिता निभा रहे हैं, ये बताने की शायद जरूरत नहीं? केंद्र सरकार की नागरिक समाज सुधार जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं में इनकी सीधी मौजूदगी है, जैसे, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 सहित देश में कुछ पथप्रदर्शक कानूनों शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009, वन अधिकार अधिनियम-2006 और सूचना का अधिकार अधिनियम-2005, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), किशोर न्याय, एकीकृत बाल संरक्षण योजना (आईसीपीएस) आदि में ये संगठन सरकार के सहयोगी हैं। केंद्र के दो विशेष अभियानों अव्वल, स्वच्छ भारत अभियान और दूसरे सर्व शिक्षा अभियान में भी गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी है। इसके अलावा ये संगठन अंधविश्वास, आस्था, विश्वास और रीति-रिवाज में जकड़े जगड़े लोगों को बाहर निकालने के लिए भी दिन रात जागरूकता फैलाते हैं।
-डॉ0 रमेश ठाकुर