एक लोकोक्ति है कि दुनिया में आगे वही बढ़ता है अर्थात उन्नति वही करता है, जिसकी चार आंखें हैं। दो आंखों से तो वह संसार को देखे कि संसार में क्या हो रहा है? लोग कैसे प्रगति कर रहे हैं उसे देखे समझे उस पर मनन करे। शेष दो आंखें वे स्थूल नहीं है वे आन्तरिक चक्षु है। उन्हें खोलिए।
उनके खुलते ही मनुष्य को अपनी असीमित क्षमता का ज्ञान हो जायेगा। अभी तो हम देव हनुमान की भांति अपनी शक्तियों को भूले बैठे है। उन शक्तियों का ज्ञान हो जाने के पश्चात देखिए कि आप कैसे उन्नति करते हैं भौतिक क्षेत्र में भी और आध्यात्मिक क्षेत्र में भी।
आन्तरिक प्रकाश के दर्शन असम्भव तो नहीं हैं पर कठिन अवश्य हैं। उसके लिए साधना चाहिए। हमने अपने हृदय पर काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, ईर्ष्या और घृणा रूपी पहरेदार बैठा रखे हैं, उन्हें हटाना होगा। वे हटेंगे केवल ज्ञानरूपी दीपक से, जिसमें भक्ति की बत्ती लगी हो और प्रेम का धृत भरा हो। ये हटेंगे तो आन्तरिक चक्षु खुलेंगे। आन्तरिक चक्षु खुलने पर ही मनुष्य के लिए अपने सच्चे स्वरूप में स्थित होने का सामर्थ्य प्राप्त कर पाना सम्भव है।