किसी प्रियजन की अर्थी को कन्धा देकर व्यक्ति लौटता है तो मृत्यु का आतंक उस पर छाया रहता है, वैराग्य की भावना मन में आती है। संसार की निस्सारिता का आभास होता रहता है, परन्तु मानवीय दुर्बलता के कारण उसे अशुभ विचार समझकर शीघ्र भुला देता है।
दूसरों की मृत्यु देखते रहने के बाद भी अपनी मृत्यु को हम याद रखना नहीं चाहते। उसे भी याद रखोगे तो इससे छुटकारा पाने का मार्ग भी ढूंढने का प्रयास अवश्य करोगे।
प्रतिदिन कितने व्यक्ति काल के गाल में जा रहे हैं। यह जानते हुए कि हमें भी एक दिन उसी रास्ते पर जाना है हम इसे भुलाये रखना चाहते हैं ताकि हमारे जीवन के उल्लास में कभी न आये। मृत्यु के इस सत्य को याद रखो या भूल जाओ यह तुम्हारी मरजी है, किन्तु सत्य तो यही है कि हमारी जीवन यात्रा का अन्त मृत्यु ही है।
मृत्यु एक कटु किन्तु अटल सत्य है, जिसने जीवन रहते इस सत्य को जान लिया, उसके लिए मृत्यु बिल्कुल दुखद या शोकपूर्ण नहीं है, जो मृत्यु के शाश्वत सत्य को जान लेता है वह स्वयं को जान लेता है, ईश्वर को जान लेता है, जो ईश्वर का जान लेता है वह मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।