दुनिया में आकर बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ सीखा, परन्तु मानव तन को, मनुष्य जीवन को पाकर भी भव सागर से पार होना नहीं सीखा। इसे सीख पाते तो माना जाता कि कुछ सीखा। जिसने हमें संसार में मनुष्य बनाकर भेजा उसके बारे में परमपिता परमात्मा के बारे में कुछ नहीं जानते तो फिर मानना होगा कि हम कुछ नहीं जानते।
आत्म ज्ञान (अपने विषय में जानना) के अतिरिक्त शान्ति का कोई दूसरा मार्ग नहीं। इसलिए स्वयं को जानो। भटकोगे तो ऐसे गहरे अन्धकार में घिर जाओगे जहां से वापसी का मार्ग ही नहीं सूझेगा, मैं जो भी हूं, जैसा भी हूं स्वयं को वैसा ही जान लेना बिना किसी हेर फेर के, बिना किसी लाग-लपेट के।
क्या यह भी कोई कठिन काम है? आत्म ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है अन्य विद्याएं तो बंधन का कारण हैं। जैसे दीपक जला अंधेरा गया, वैसे ही मन-मंदिर में ज्ञान का प्रकाश हुआ तो समझ लो कि मैंने अपने आपको समझ लिया, क्योंकि उसी क्षण से जीवन का सार समझ आ जायेगा। आत्म ज्ञान आपके सारे दुखों का अन्त कर देगा, परन्तु इस स्थिति को पाने के लिए मन को स्थिर करना जरूरी है।