मम्मी का रो-रोकर बुरा हाल है। पापा भी गुमसुम से हैं। अंशु भी उदास है। सारे घर में सन्नाटा है। डाईनिंग टेबल पर भोजन की थालियां रखी हैं। किसी ने भी देखा तक नहीं है। कारण है अप्पू यानी अंकित का गायब हो जाना। तीन दिन हो गए हैं। अंकित स्कूल के लिए निकला था। अभी तक घर नहीं आया है। पहले दिन बहुत रात तक वह घर नहीं पहुंचा। मम्मी-पापा समझे किसी दोस्त के यहां रुक गया होगा। बारह बजने के बाद मम्मी ने पापा से उसके जिन दोस्तों के यहां टेलीफोन हैं करवाए, सभी ने एक ही जवाब दिया- अंशुल आज स्कूल ही नहीं आया था। यह सुन वे आश्चर्य में पड़ गए।
अंकित स्कूल के समय पर तैयार होकर बैग और पानी की बॉटल साथ लेकर निकला था। वह स्कूल नहीं पहुंचकर कहां गया… आजकल अपहरण और बच्चों को बहला-फुसलाकर उठाकर ले जाने की घटनाएं रोज हो रही हैं। कहीं उसके साथ ऐसा तो नहीं हो गया है… और भी तरह-तरह की आशंकाएं उनके मन में आने लगीं, कोई उसे ले गया होगा, अब फिरौती के रूप में बहुत बड़ी रकम की मांग करेगा या फिर अंकित को वह लौटाए ही नहीं। अंकित के प्रति विचारते हुए रात बिताई कि कहीं उसका टेलीफोन आ जाए या वह खुद लौट आए।
दूसरे दिन दोपहर तक अंकित घर नहीं लौटा। मम्मी ने पापा को पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने को कहा। पहले वे ना-नुकुर करके बोले, शाम तक देख लेते हैं। मम्मी उदास-सी बोली- यहां तो जान निकली जा रही है। आपको अपने घर के चिराग की कोई परवाह ही नहीं है। वे बोले- मैं पता कर लूंगा। उस दिन वे ऑफिस नहीं गए। यहां-वहां अंकित को तलाशते रहे। स्कूटर दौड़ा-दौड़ाकर उन्होंने शहर का कोना-कोना छान मारा पर निराशा ही हाथ लगी। घर लौटने पर मम्मी से झूठ बोल दिया कि उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दी है। अब फिक्र करने की बात नहीं है। वह रात भी जागते हुए ही बीती।
तीसरे दिन मम्मी नहीं मानी। पापा से बोली- अब मुझे अंकित के लौटने की आशा नहीं लगती। शायद उसे कोई उठा ले गया है। आजकल पुलिस भी नाम की रह गई है। आप शहर से निकलने वाले दैनिकों में अंकित के लापता होने की खबर प्रकाशित करवा दो। पापा बोले- अगर ऐसा हुआ तो हम बदनाम हो जाएंगे। लोग तरह-तरह से हमें बदनाम करेंगे। मम्मी चिल्लाते हुए बोली- बदनामी… बदनामी… आप इससे डर रहे हैं। उधर मेरी आंखों का तारा जाने कहां होगा। पता नहीं उसकी हालत क्या हो। खाना-पीना भी किया है या नहीं… आप कुछ नहीं करते तो मैं खुद ही जाती हूं। पापा उठे और चले गए। दैनिकों में अंकित के लापता होने की खबर प्रकाशित हुई। उसके पश्चात रिश्तेदारों और मिलने-जुलने वालों का घर आना-जाना शुरू हो गया। जो भी आता मम्मी-पापा और अंशु को सांत्वना देता। रात को पुलिस इंस्पेक्टर आए। सारी बात मालूम होने पर पापा से बोले- आपने अभी तक थाने में रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई। मम्मी बोली- कि इन्होंने रिपोर्ट लिखवाई है। इंस्पेक्टर बोले- कौन से थाने में? अगर शहर में बच्चा या और कोई गुम हो जाता है तो जिस थाने को मालूम होता है वहां से शहर के सभी थानों पर फोन से सूचना देकर तेजी से कार्रवाई शुरू कर दी जाती है।
मम्मी के पूछने पर पापा बोले- कल मैंने तुम्हारा दिल बहलाने के लिए झूठ बोल दिया था? वे रोते हुए बोलीं- आपकी इस तरह की लापरवाही को देखकर लग रहा है कि अपने बेटे के प्रति आप में जरा भी लगाव नहीं है। इंस्पेक्टर मम्मी से बोले- अब आप चिंता मत कीजिए। हम लापता बच्चे की तलाश में लग जाएंगे। वे चले गए। देर रात तक लोगों का आना-जाना लगा रहा। पड़ोस वाले श्रीवास्तव जी के यहां से भोजन आया। भोजन टेबल पर ही पड़ा रहा। आने-जाने वाले थालियां देखकर मम्मी-पापा और अंशु से भोजन करने को कहते, सभी ‘अभी कर लेंगे कहकर टाल गए। सभी मिलने-जुलने वालों का आना बंद हुआ। मम्मी पलंग पर पड़ गईं। पापा सोफे पर पड़ गए। अंशु भी मम्मी के पास ही पड़ गई। नींद किसी की आंखों में नहीं थी, जैसे-तैसे रात बीती।
सुबह इंस्पेक्टर आए। पापा से पूछा- कुछ खबर है, उदास से वे बोले- न खबर है न कोई टेलीफोन आया है। वे बोले- मैं पुलिस चौकी से एक पुलिसकर्मी को पहुंचाता हूं। उसकी ड्यूटी आपके यहां रहेगी। जो भी कोई बात होगी। फोन पर बतला देगा। हमने आसपास के शहरों और गांवों के थानों पर खबर भिजवा दी है। जोर-शोर से कार्रवाई शुरू हो गई है। वे चाय पीकर चले गए। थोड़े समय पश्चात एक पुलिसकर्मी आया। पापा ने ऑफिस से छुट्टी ले ली। अंशु भी स्कूल नहीं गई। दोपहर में पुलिसकर्मी के कहने पर सभी ने थोड़ा-थोड़ा भोजन किया। घर में एक अजीब-सा सन्नाटा था। मम्मी की आंखें बार-बार झपकती थी। अंशु भी झोंके खा रही था। पापा पुलिसकर्मी के साथ बैठे थे।
तीन बजे के करीब अंकित एक पुलिसकर्मी के साथ आया। उसे देखते ही मम्मी चिपट गई। मुंह चूमने लगी और हिचकियां लेते हुए बोली- बेटे… मेरे लाल… कहां चला गया था… कौन तुझे ले गया था… पुलिसकर्मी पापा से बोला- साहब! यह हमें शहर से लगे जंगल में पेड़ पर मिला है। उन्होंने अंकित से पूछा- तुझे जंगल कौन छोड़ गया? चार दिन तू जंगल में कैसे रहा? जंगल में बहुत हिंसक जानवर रहते हैं। तुझे डर नहीं लगा? अंकित बोला- पापा! सब सवालों का एक ही जवाब है। मुझे कोई उठाकर नहीं ले गया था। मैं खुद अपनी मर्जी से ही गया था।
थोड़े दिन पहले मैंने एक कॉमिक्स पढ़ा था। उसमें बतलाया गया था कि किस प्रकार एक बच्चा घर वालों की इच्छा के बगैर उन्हें बिना बतलाए मुंबई पहुंच गया और जैसे-तैसे करके फिल्मों में काम करने लगा। और एक दिन बहुत बड़ा कलाकार बन गया। बस कॉमिक्स पढ़कर मेरे मन में भी फिल्म कलाकार बनने की धुन सवार हो गई। मैंने भी मुंबई जाने की ठीन ली। मैंने सोचा, आपको और मम्मी को सारी बात बतलाऊंगा तो आप जाने नहीं देंगे। क्यों नहीं स्कूल के समय में स्टेशन जाकर ट्रेन में बैठकर रवाना हो जाऊं। उस दिन मैं तैयार होकर स्कूल के लिए निकला। अपने पास जमा रुपयों से मैंने रास्ते में खाने के लिए मिठाई-नमकीन खरीदी। स्टेशन पर पहुंचकर मैंने मुंबई के लिए टिकट लेना चाहा। मालूम हुआ वह ट्रेन तो रात में जाएगी। मैं वहां से निकला। बाहर आकर मैंने विचारा ट्रेन के चक्कर में मेरा सारा काम बिगड़ जाएगा। मैं पैदल ही चल पड़ा कि आगे वाले गांव से होकर ट्रेन जाती है। वहीं से बैठ जाऊंगा। बस्ता-पानी की बॉटल, नमकीन और मिठाई का झोला लेकर मैं बढऩे लगा। चलते-चलते शाम को मैं पास वाले जंगल में पहुंच गया। अंधेरा होने लगा। जंगली जानवरों की भयंकर डरावनी आवाजें सुनकर मैं डर गया। एक पेड़ पर जैसे-तैसे करके चढ़ गया। रात भर वहीं बैठा रहा। दहशत के मारे खाना-पीना भी नहीं किया। सुबह होने पर पेड़ से उतरकर सामान संभालकर आगे बढऩे लगा। एक जंगली जानवर पर नजर पड़ते ही मेरी जान पर बन आई। मन में बोला- अब मृत्यु निश्चित है। भगवान का नाम लेकर मैं छुपते-छुपाते एक घने पेड़ पर चढ़कर बहुत ऊंचे जाकर बैठ गया। दो दिन तक वहीं बैठा रहा। पेड़ से उतरने की हिम्मत नहीं हुई। साथ ले गई मिठाई और नमकीन खा ली। आज सुबह एक पुलिस गाड़ी पेड़ के करीब से गुजरने लगी। मैं जोर से चिल्लाया। गाड़ी रुकी। मैं पेड़ से उतरा। पुलिस अंकल को सारी बात बतलाई। वे बोले- बेटे! हम तुम्हारी ही तलाश में जा रहे थे। चार दिन हो गए हैं। तुम्हारे घरवाले और हम पुलिस वाले परेशान हैं।
इतने में इंस्पेक्टर भी आ गए। सारी बात मालूम होने पर अंकित के सिर पर हाथ फेरकर बोले- बेटे! मैं कॉमिक्स पढऩे को इन्कार नहीं करता हूं पर कॉमिक्स पढ़कर उस पर अमल नहीं करना चाहिए। आजकल के कॉमिक्स राह भटकाने वाले होते हैं। मालूम है शहर में रोज कोई न कोई स्कूल में पढऩे वाला विद्यार्थी लापता हो रहा है। तुम तो अपनी मर्जी से गए पर सभी को कितनी परेशानी हो गई। अगर तुम्हें कुछ हो जाता… अंकित इंस्पेक्टर से बोला- बस अंकल! अब और कुछ नहीं कहिए। चार दिन जंगल में कैसे गुजरे हैं, मैं ही जानता हूं। अब कान पकड़कर कसम खाता हूं, कभी घर से भागकर जाने की नहीं सोचूंगा। और आपसे पुलिस चौकी भी आकर मिलता रहूंगा, ताकि आपका विश्वास मुझ पर बना रहे। बेटे, हम चलते हैं। वे बोले तो पापा बोले- ऐसे नहीं उन्होंने मम्मी को इशारा किया वे उठीं, थोड़े समय पश्चात नाश्ता लेकर आईं। सभी ने नाश्ता किया। इंस्पेक्टर के साथ पुलिसकर्मी जाने लगे। वे बोले- साहब! बच्चे के मिलने का समाचार सभी समाचार-पत्रों में प्रकाशित करवा दीजिएगा। हाथ हिलाते हुए वे चले गए।
नयन कुमार राठी – विभूति फीचर्स