संसार में प्रतिदिन असंख्य लोग मृत्यु को प्राप्त होते रहते हैं। उनमें छोटे भी मरते है बड़ भी, निर्धन भी और बड़े से बड़ा धनवान भी, वृद्ध भी और अल्पायु भी, गुमनाम भी और दूर-दूर तक जिनकी कीर्ति फैली है वे भी। यदि हमारा उनसे कोई सम्बन्ध नहीं होता तो हमें कोई दुख नहीं होता, परन्तु घर का कुत्ता भी मर जाये तो चित्त को ठेस पहुंचती है क्यों? क्योंकि ‘मेरा ही दुख का मूल कारण है। जहां ममता है वहीं मनोवेदना है, जहां ममत्व नहीं वहां शोक काहे का। इसीलिए ज्ञानीजन ममता को त्याग कर प्रियजन के विछोह को सामान्य रूप से लेते हैं तथा प्रभु इच्छा मानकर संतोष कर लेते हैं। वे जानते हैं कि जो होनहार है वह अवश्य होकर रहेगी। विधि के विधान को किसी भी उपाय से टाला नहीं जा सकता।