बेंगलुरु। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने देश में गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को लेकर उन्होंने इन घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि वह गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा देने वाले को ही वोट देंगे। उन्होंने कहा, “देश में गाय के नाम पर जो हिंसा हो रही है, उससे हम खुद दुखी हैं। हम तो गाय को बचाना चाहते हैं, तो मनुष्य को क्यों मारेंगे।
जो गाय को बचाने के लिए निकला है, वह मनुष्य को क्यों मारेगा। जो लोग गाय की रक्षा के लिए आगे आते हैं, उन्हें मनुष्यों की जान क्यों लेनी चाहिए? इसलिए, हम चाहते हैं कि सरकार गाय को लेकर एक स्पष्ट विचारधारा स्थापित करे, ताकि सभी लोग इसे मानें। अभी स्थिति यह है कि कुछ लोग गाय को माता मानते हैं और कुछ इसे केवल पशु समझते हैं, जिससे टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है। यदि भारत में कानून बन जाए कि गाय माता है, तो सभी को इसे स्वीकार करना पड़ेगा।
जब एक बार कोई निर्णय हो जाता है, तो उसे मानना सबके लिए अनिवार्य हो जाता है। इस तरह, गाय को माता मानने की धारणा से झगड़े समाप्त हो जाएंगे।” उन्होंने आगे कहा, “हम चाहते हैं कि गाय के मुद्दे को राजनीतिक खेल से दूर किया जाए। लेकिन जब गाय पर राजनीति हो रही है, तो हमने इसे वोटिंग से जोड़ा है। हमने संकल्प लिया है कि हम केवल उसी को वोट देंगे जो गाय के हित में खड़ा होगा। अगर गाय के नाम पर राजनीति होनी है, तो करिए, लेकिन हम गाय की सुरक्षा के लिए वोट देंगे।” इसके बाद उन्होंने मध्य पूर्व में चल रहे इजरायल और ईरान के बीच टकराव पर कहा, “जब पानी भी अपनी सीमा पार कर जाता है, तो वह भी उबलने लगता है।
ऐसे समय में बातचीत से समाधान संभव नहीं होता, और अंततः युद्ध के माध्यम से ही शांति स्थापित होती है। जब महाभारत का युद्ध हुआ था, उससे पहले भी उन लोगों को बहुत समझाया गया, लोग नहीं समझे। फिर एक बार युद्ध हो गया। उसके बाद शांति आ गई। यह स्पष्ट है कि समझौतों के बावजूद जब स्थिति नियंत्रण से बाहर जाती है, तब युद्ध अपरिहार्य हो जाता है। इजराइल और मध्य पूर्व में जो संघर्ष चल रहा है, वह भी इसी तरह का मामला है। महीनों से लोग मारे जा रहे हैं और संपत्ति को नुकसान पहुंच रहा है। शांति की कोई कोशिश सफल नहीं हो रही है। अमेरिका हथियारों का व्यापार कर रहा है और साथ ही शांति की बात कर रहा है। यह एक हास्यास्पद स्थिति है।”
उन्होंने आगे कहा, “यदि अमेरिका सच में शांति का पक्षधर है, तो उसे निरस्त्रीकरण की पहल करनी चाहिए, लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहा। वे हथियारों के सबसे बड़े सौदागर हैं और फिर भी शांति के दावे करते हैं। यह सबसे हास्यास्पद बात है। इसलिए, हम यह कहना चाहते हैं कि यदि युद्ध होना है, तो उसे जल्दी से जल्दी कर दिया जाना चाहिए, ताकि जो भी परिणाम हों, वे शीघ्रता से सामने आ जाएं। अभी जो हो रहा है, उसे तेज किया जाना चाहिए, क्योंकि लोग इस मुद्दे पर सुनने के लिए तैयार नहीं हैं।