Thursday, October 24, 2024

पुरातन से श्रेष्ठ रही है भारतीय न्याय प्रणाली : उच्च शिक्षा मंत्री परमार

भोपाल। उच्च शिक्षा मंत्री इन्दर सिंह परमार ने कहा कि पुरातन से भारतीय न्याय प्रणाली श्रेष्ठ न्याय प्रणाली रही है। महर्षि गौतम का न्याय दर्शन, उत्कृष्ट न्याय प्रणाली को परिलक्षित करता है। भारतीय दृष्टिकोण एवं भारतीयता के भाव को पुनः समृद्ध करने की आवश्यकता है।

मंत्री परमार बुधवार को भोपाल स्थित पं. सुंदर लाल शर्मा केंद्रीय व्यवसायिक शिक्षा संस्थान के सभागार में, विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान एवं बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के विधि शिक्षण एवं शोध विभाग के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 : विधिक पाठ्यक्रम” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने भारतीयता के भाव को पुनः समृद्ध करने के लिए, विधिक पाठ्यक्रमों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में भारतीय ज्ञान परम्परा के समावेश की आवश्यकता एवं महत्व पर विचार व्यक्त किए।

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

मंत्री परमार ने कहा कि भारत शिक्षा एवं न्याय सहित हर क्षेत्र में स्वयमेव समृद्ध देश रहा है, इसलिए विश्वगुरु की संज्ञा से सुशोभित रहा है। उन्होंने अंग्रेजों से स्वतंत्रता के पूर्व एवं बाद में शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दुर्भाग्यवश स्वंतत्रता के बाद भारतीय जनमानस में स्वत्त्व का भाव जागरण नहीं किया गया। परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने हर क्षेत्र में भारतीयता के दर्शन एवं बोध के लिए व्यापक परिवर्तन का अवसर दिया है। देश के लगभग 2 करोड़ प्रबुद्धजनों के मंथन से राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तैयार हुई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का मूल ध्येय, श्रेष्ठ एवं देशभक्त नागरिक निर्माण करना है।

परमार ने कहा कि भारतीय ग्रामीण परिवेश में अशिक्षित व्यक्ति भी नैतिक मूल्यों का संवाहक एवं मूल तत्व ज्ञान का ज्ञाता है। किसी को कांटा न चुभे , इसके लिए वह स्वयं रास्ते से कांटे हटाने का नैतिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण रखता है। अंग्रेजों के रिकॉर्ड में, पराधीनता के पूर्व भारत में 7 लाख से अधिक गुरुकुल थे और यहां की साक्षरता दर 80 से 90 प्रतिशत थी, तो यहां की संतति निरक्षर कैसे हुई, यह विचारणीय है। भारतीय शिक्षा एवं न्याय सहित हर क्षेत्र में भारतीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में, भारतीय ज्ञान परम्परा समावेशी शिक्षा के लिए सतत् एवं तीव्रगति से क्रियान्वयन हो रहा है। प्रकृति के साथ भारतीय समाज में कृतज्ञता का भाव रहा है। प्रकृति, जल एवं सूर्य आदि समस्त स्रोतों के प्रति श्रद्धा एवं कृतज्ञता, संरक्षण भाव से भारतीय समाज में परंपरागत रूप से स्थापित है।

मंत्री परमार ने कहा कि विधि के अध्ययन-अध्यापन में भारतीय ज्ञान के समावेश के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा की आवश्यकता है। इसके लिए प्रदेश के समस्त उच्च शिक्षण संस्थानों के पुस्तकालयों को भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़े साहित्य से समृद्ध कर रहे है। स्वतंत्रता की शताब्दी वर्ष 2047 तक भारत को पुनः विश्वमंच पर सिरमौर बनाने की संकल्पना में श्रेष्ठ शिक्षा पद्धति की महत्वपूर्ण भूमिका होगी, इसके लिए हम सभी की सहभागिता आवश्यक है। हमें अपनी भाषा, ज्ञान एवं उपलब्धियों पर गर्व का भाव जागृत करना होगा। उन्होंने विधिक पाठ्यक्रमों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में आवश्यक विमर्श के लिए कार्यशाला के आयोजन के लिए आयोजक संस्थानों को बधाई एवं शुभकामनाएं दीं।

न्याय क्षेत्र में संवेदनशीलता आवश्यक एवं महत्वपूर्ण : न्यायमूर्ति बोस
कार्यशाला के मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एवं राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के निदेशक अनिरुद्ध बोस ने विधिक पाठयक्रम में आवश्यक बदलावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने न्यायालयों में लंबित मामलों एवं प्रकरणों की संख्या वृद्धि पर चिंता व्यक्त की। बोस ने कहा कि न्याय क्षेत्र में समाज के प्रति संवेदनशीलता अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आज के परिदृश्य में समाज में लोग स्वामित्व की बजाय किरायेदार बनने की ओर अधिक अग्रसर हैं। विधि में विद्यार्थियों को सामाजिक सुरक्षा जैसे अनेकों प्रभावी योजनाओं को पढ़ाए जाने की आवश्यकता हैं। बोस ने कहा कि विधि विद्यार्थियों के लिए कोर्ट में करियर अच्छा विकल्प है लेकिन प्रशिक्षण एवं सतत् कौशल उन्नयन विद्यार्थियों को दक्ष बनाएगा। उन्होंने वर्तमान परिदृश्य की आवश्यकता अनुरूप प्राचीन कानूनों में, भारतीय दृष्टिकोण समावेशी परिवर्तन एवं आवश्यक संशोधन पर भी बल दिया।

विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. कैलाश चंद्र वर्मा ने अपने वक्तव्य में व्यक्तित्व और आचरण में समाहित करने से जुड़े विविध विषयों पर प्रकाश डाला। प्रो. वर्मा ने कहा कि मानसिकता बदलने से ही विकास संभव है। उन्होंने विनयशीलता के संदर्भ में कालिदास और उन पर माता सरस्वती की दयादृष्टि के प्रसंग का उल्लेख करते हुए, वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में आवश्यक विषयों पर विमर्श पर बल दिया। प्रो. वर्मा ने न्यायपालिका में प्रयोग की जाने वाली विदेशी भाषा में परिवर्तन की आवश्यकता पर भी बल दिया ताकि सामान्य व्यक्ति न्यायपालिका में चलने वाली प्रक्रिया को समझ सके। प्रो. वर्मा ने सभी के लिए समान कानून की आवश्यकता पर भी बल दिया।

कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. एस के जैन ने उच्च शिक्षा में विधिक शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरानुसार परिवर्तन की बात कही। प्रो. जैन ने कार्यशाला में होने वाले मंथन से निकलने वाले अमृत रूपी ज्ञान का विधिक पाठ्यक्रम में समावेश एवं क्रियान्वयन उचित ढंग से करने के लिए आशान्वित किया।

कार्यशाला का शुभारंभ पौधों को जल अर्पण, दीप प्रज्वलन एवं मां सरस्वती के पूजन अर्चन के साथ हुआ। कार्यशाला के समन्वयक डॉ शशिरंजन अकेला एवं प्रो. मोना पुरोहित सहित देश भर से आए विधि विशेषज्ञ, विविध विषयविद्, शिक्षाविद्, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलगुरू, प्राध्यापकगण, विद्यार्थी एवं अन्य प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,445FollowersFollow
129,386SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय