इस सच्चाई से तो इंकार नहीं किया जा सकता कि मानव ने बहुत उन्नति की है। उसने धरती पर बड़े-बड़े महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिये हैं। धरती का आज वह रूप नहीं जो कुछ वर्षों पूर्व था। बड़े-बड़े रेत के टीलों और बंजरों में खेती हो रही है। बड़े-बड़े बांध बन गये हैं, पुल बन गये हैं, बड़े-बड़े हाईवे हैं, हाई स्पीड ट्रेनें हैं, वायुयान है, अन्तरिक्षयान है, हम चन्द्रमा और मंगल तक राके उतार चुके हैं, सूर्य के समीप पहुंच चुके हैं।
आज मनुष्य केवल पृथ्वी के लिए ही नहीं अन्य ग्रहों के लिए योजना लिये खड़ा है। इतनी उन्नति के पश्चात भी यहां बहुत अमीर भी हैं तो बहुत गरीब भी हैं। महलनुमा कोठियां भी बनी हैं तो झुग्गी-झोपडिय़ों भी हैं। कुछ लोगों का जीवन स्तर बहुत ऊंचा हो गया है तो कुछ जीने के लिए संघर्ष ही कर रहे हैं। यद्यपि मानव की उपलब्धियां महान है, किन्तु मानव आज पहले जितना प्रसन्न नहीं। वह हंसना ही भूल गया है। करोड़ों व्यक्ति असंतुष्ट और निराश है। आंसू की कड़वी बूंदे आज केवल गरीबों ओर दुर्बलों की आंखों से ही नहीं टपकती अमीरों और सशक्तों की आंखों से भी टपकती है न इसका कारण हम जानने का प्रयास ही नहीं करते कि हममें यह असंतोष क्यों हैं? गरीब व्यक्ति तो गरीबी और महंगाई से त्रस्त है।
उसके सामने समस्या है कि अपनी भूख और जुगत में रहता है कि अपनी अमीरी को कैसे बढ़ाये, उसमें वैभव को भोगने की पिपासा बढ़ती जाती है। इसी कारण जो उन्हें प्राप्त है, वह उन्हें शान्ति और प्रसन्नता नहीं दे पाता- प्रसन्न रहने के लिए प्रभु ने जो दिया है उसके लिए उसकी कृतज्ञता प्रकट करे और उसी में संतुष्ट रहो।