समाज में किसी व्यक्ति की पहचान उसके चरित्र और आचरण से होती है। संसार में अनेक धनाढय लोग है, परन्तु उनमें से कितने हैं, जिन्हें समाज में ‘महान’ की संज्ञा से विभूषित किया जाता है। ऊंचे चरित्र के ज्ञानी व्यक्ति चाहे उनके पास धन न भी हो, समाज में पूजनीय होते हैं।
वह इसलिए कि उनके पास चरित्र है, नैतिकता है और समाज को बांटने के लिए ज्ञान की पूंजी है। चरित्र को ही सबसे बड़ा धन माना गया है। कहा गया है कि यदि धन नष्ट हो गया है तो कुछ भी नष्ट नहीं हुआ। यदि स्वास्थ्य नष्ट हो गया तो समझो कुछ नष्ट हुआ है, किन्तु यदि चरित्र नष्ट हो गया तो समझो सब कुछ नष्ट हो गया।
इसका अर्थ यही है कि चरित्र ही सबसे बड़ी पूंजी है अन्य सब गौण है। जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं, जब धन काम नहीं आता। अत: धन पर गर्व नहीं करना चाहिए। नैतिकता की शक्ति ही मानवता का धरातल है। शाश्वत मूल्यों को लेकर जीने में ही आत्म शान्ति प्राप्त होती है। सही अर्थों में वास्तविक सम्पन्नता उन मूल्यों का संरक्षण है। यदि चरित्र नहीं नैतिकता नहीं तो चाहे हम कितने भी बड़े धनपति हो हम निर्धनों से भी बड़े निर्धन हैं।