महाकुंभ नगर। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पहले पहुंचे आचार्य बालकृष्ण ने महाकुंभ को सनातन संस्कृति की शक्ति का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में इससे बड़ा कोई पर्व नहीं है। यह न केवल श्रद्धा और समर्पण से जुड़ा है, बल्कि मानवता के लिए एक शोध और अनुसंधान का विषय भी बन सकता है। आचार्य बालकृष्ण ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, “यह एक अद्वितीय और महान पर्व है, जो बिना किसी निमंत्रण या विशेष आमंत्रण के अपने आप मनुष्यों को एकत्र करता है। यह सनातन संस्कृति की शक्ति का प्रतीक है और इस पर्व का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। पूरी दुनिया में इससे बड़ा कोई पर्व नहीं है, क्योंकि यह न केवल श्रद्धा और समर्पण से जुड़ा है, बल्कि मानवता के लिए एक शोध और अनुसंधान का विषय भी बन सकता है। यह सनातन संस्कृति की गहरी शक्ति को दर्शाता है।
“उन्होंने आगे कहा, “हमारे परंपराओं में आत्म साधना से लेकर राष्ट्र जागरण तक की बातें की जाती हैं। आतंकवाद, उग्रवाद, हिंसा और अत्याचार जैसी नकारात्मकता से सनातन संस्कृति बहुत दूर है। यह महाकुंभ मेला, जिसमें करोड़ों लोग शामिल हो रहे हैं, केवल गंगा और त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने का अवसर नहीं है, बल्कि यह एक संकल्प लेने का अवसर है।” उन्होंने कहा, “पूरी दुनिया के लोग इस एकता और संकल्प के साथ यहां आकर डुबकी लगाते, तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। प्रशासन ने श्रद्धालुओं की भीड़ को पूरी तरह से नियंत्रित किया है। इसे प्रशासन ने पूरी समझदारी और तत्परता से संभाला है। पुलिस और प्रशासन की ट्रेनिंग अलग प्रकार की होती है, लेकिन इस तरह की विशिष्ट परिस्थितियों में उन्हें अपने तरीके से काम करना पड़ता है। उनकी सेवा और प्रतिबद्धता अत्यधिक प्रशंसा योग्य है और हमें इसकी सराहना करनी चाहिए।”