कई बार माता–पिता अपनी बेटी की शादी मन–माफिक दहेज न दे पाने के कारण तलाकशुदा या विधुर व्यक्ति से भी करने से नहीं हिचकते। कुछ परिस्थितियों में यह भी देखने में आया है कि सुशिक्षित और आधुनिक विचारों वाली युवतियां कुंवारेपन के बावजूद तलाकशुदा या विधुर पुरूषों से विवाह करने में कोई बुराई नहीं समझती। संभवतः इसका मनोवैज्ञानिक कारण यह भी है कि भारतीय फिल्मोद्योग में यह परंपरा काफी पुरानी हो चुकी है।
कुछ आधुनिकाएं यह भी मानती हैं कि तलाकशुदा या विधुर पति अत्यधिक प्रेम देने वाला होता है क्योंकि वह हर मामले में ‘एक्सपीरियंस होल्डर‘ होता है। वूमेंस कॉलेज की स्नातकोत्तर की छात्रा सरला मंजू का कहना है कि तलाकशुदा व्यक्ति जब दूसरी शादी करता है तो वह दूसरी पत्नी को सर–आंखों पर बिठाकर रखता है। सेक्स के मामले में भी वह कलाकार होता है और अपनी पत्नी को असंतुष्ट नहीं रहने देता, अतः तलाकशुदा व्यक्ति से विवाह करने में हिचकिचाहट कैसी?
एक व्यवसायी की पुत्राी अरूणिमा का कहना है कि हमारी फिल्मों की कई ऐसी नायिकाएं हुई हैं जिन्होंने शौक से तलाकशुदा पुरूषों से विवाह किया। सैफ व करीना की शादी हालिया उदाहरण है। कुछ तो ऐसी मिसालें भी हैं और कुछ आधुनिक विचारधाराएं भी जिनके कारण आज की नवयौवनाएं तलाकशुदा व्यक्ति से शादी करने में नहीं हिचकती।
देखा जाए तो ये सभी बातें सिर्फ सैद्धान्तिक पक्ष की बातें हैं। देखने में यह आता है कि जब कोई कुंवारी युवती किसी तलाकशुदा पुरूष से विवाह कर लेती हैं, तब नित्य ही नई समस्याएं खड़ी होने लगती हैं और दोनों पक्षों को लगता है कि वे किसी मुसीबत में आ फंसे हैं।
किसी तलाकशुदा पुरूष से विवाह करने के उपरांत प्रसन्नचित एवं संतुष्ट स्त्रिायों की संख्या उचित नहीं आंकी जा सकती। उनके चयन के समय उनकी पारिवारिक स्थिति से अधिक पद व संपत्ति का विशेष ध्यान रखा जाता है जबकि तलाकशुदा पुरूष की उम्र व पहली पत्नी से तलाक लेने की जानकारी को गौण कर दिया जाता है।
जब एक कुंवारी लड़की परिवार की मर्जी या फिर अपनी इच्छा से किसी तलाकशुदा पुरूष से विवाह करती है, तब उसके दिलो–दिमाग में कुंवारे सपने और संजने–संवरने के अरमान, उमंगों की अमरबेल के सहारे सप्तरंगी कल्पनाएं आकाश में उड़ानें भरने को आतुर रहती हैं। वह अपनी तमाम इच्छाएं व कामनाएं उसी तरह पूरा करना चाहती हैं जैसे एक कुंवारी कन्या अपनी अन्य विवाहित सहेलियों से सुन चुकी होती है या समारोहों में जाकर देखती आ रही है परन्तु जब उसके अरमान पूरे नहीं होते, तो वह घुट–घुट कर जीना प्रारंभ कर देती है।
कुछ ऐसे भी पति होते हैं जो पत्नी को अपनी दिनचर्या का एक अंग मानने से अधिक महत्त्व नहीं देते। पति को यह स्मरण रखना चाहिए कि उसकी भले ही यह दूसरी शादी है मगर उसकी पत्नी ने बड़े ही अरमानों के साथ उससे शादी रचाई है। पति का यह सोचना एकदम गलत होता है कि उसके लिए विवाह कोई नयी चीज नहीं है। यही भावना पत्नी को आहत और घुटन का एहसास करती रहती है।
आज की आधुनिक विचारधाराओं में उच्छृंखलता यहां तक प्रवेश कर चुकी है कि धन के लालच या अन्य भौतिक साधनों की आपूर्ति के लिए युवतियां तलाकशुदा व्यक्ति के साथ कौन कहे, बेमेल विवाह करने तक से भी नहीं हिचकती हैं क्योंकि मौके का फायदा उठाकर वह शारीरिक भूख को कहीं से भी, किसी भी रूप में शांत कर लेती हैं।
इसी संदर्भ में कामना मल्होत्रा बेहिचक बताती हैं कि ‘मैंने जिस ध्येय से अपने पिता के उम्र के बराबर वाले व्यक्ति से शादी की थी, वह ध्येय मेरा पूरा हो रहा है। नौकर–चाकर, कार–बंगला सभी कुछ तो है मेरे पास। अगर कुछ नहीं है, तो सिर्फ पति का सामीप्य। उसकी पूर्ति भी सहज ही हो जाती है। ऐसे में बहुत ही फायदेमंद साबित हो रही है मेरी शादी।’’ राम जाने क्या लक्ष्य होता है इन आधुनिकाओं का।
पूनम दिनकर