Friday, January 31, 2025

कोलकाता से पोर्ट ब्लेयर

कोलकाता से पोर्टब्लेयर की हवाई यात्रा मात्रा 2 घंटे की थी। मौसम कोई भी हो, फ्लाइट फुल। दुर्गा पूजा से लेकर 26 जनवरी तक कुछ ज्यादा ही ‘रश‘। दो ‘अवतार‘ पैदा करने के बाद भी भारत सरकार के खर्चे पर एलटीसी लेकर ‘हनीमून‘ पर जाने का सुनहरा मौका मिल रहा हो तो भला कौन छोड़ेगा! इसलिए इस फ्लाइट में एलटीसी वालों की अच्छी खासी तादाद होती है। जो विदेश यात्रा नहीं कर सकते, वे अंडमान निकोबार को ही विदेश मानकर उसकी यात्रा कर डालते हैं।

मैं रात्रि विश्राम ‘साल्ट लेक कैम्प आफिस‘ में करता था। सुबह 3 बजे उठता। चार बजे तक नहा धोकर तैयार होता। जब डाइनिंग टेबिल पर पहुँचता तो ‘मिट्ठू‘ चायबिस्कुट, जैमब्रेड टेबिल पर रख चुकी होती थी। ‘मिट्ठू‘ कैंप आफिस की कुककेयर टेकरअलार्म सब कुछ थी। इज्जत और प्यार से सभी लोग उनको ‘दीदी‘ कहा करते थे।

हम चाय बिस्कुट खाकर उठने लगते तो वह बोलती साहब ब्रेड जैम भी खा लीजिये, फ्लाइट में तो बहुत देर से मिलेगा और फिर वह खुद ही ब्रेड पर जैम लगाकर सामने रख देती। अब तक साढ़े चार बज चुके होते थे। अब बारी आती थी ‘दादा‘ की।

साहब‘ गाड़ी तैयार है

हम पूछते दादा सब्जी की पेटी भी रख दी ना?

हाँ साहब, उसको कोसे भूलता? बाच्चा लोग क्या खायेगा? आप इतनी मेहनत किया, आईए मार्किट से हरी सोब्जी खरीद कर लाया। हम सोब सामान रख दिए हैं। अंडमान में हरी सब्जी नहीं मिलती थी इसलिए हर एक ट्रिप में अन्य सामान के साथ साथ सब्जी की पेटी भी जाती थी। जितना लगेज अलाउंस एयर इंडिया ने दिया हुआ था, उसके एक एक ग्राम का उपयोग किया जाता था।

ठीक पांच बजे हम नेता जी सुभाष चंद्र बोस विमान पत्तन पर होते थे। उतारते ही कई बार तो ऐसा लगता था कि दादा कहीं हावड़ा तो नहीं ले आये हैं। जहांतहां यात्राी सोये हुए हैं। अफरा तफरी का माहौल है। हवाई यात्रियों के हाथों में अक्सर ‘360 डिग्री‘ बैग्स होते हैं मगर यह क्या यहाँ तो यात्राी हाथों में झोले लिए हुए हैं! किसी के झोले में कोई पौधा तो किसी के झोले में फ्रेश वाटर फिश, ओरे बाबा मोच्छि! वैसे तो एक ही हैंड बैग अलाउड होता है मगर इस फ्लाइट में शायद विशेष रियायत है। सबके हाथ में दोदो हैंड बैग।

असली कहानी चालू होती है विमान में अंदर जाकर। सीटों को ढूंढते लोग, हर सीट पर जाने के बाद सीट का नंबर पढ़कर अपने बोर्डिंग पास पर मैच करते। मैच न होने पर अगली सीट पर जाते, फिर मैच करते। फिर न मिलने पर आगे बढ़ जाते और यह सिलसिला अबाध रूप से जारी रहता और बीचबीच में आवाज आती …. आनन्दो तोमार कोथाय!!! दिलिप दा आ जाओ! ओ भुवन दा इधर आओ….

अरे अरे ई खिड़की वाला तो हामरा सीट होय

अरे नहीं भाई आपका 15 सी है खिड़की वाला 15 ए है।

अरे ऐसा कैसे। होम तो उसको बोला था खिड़की वाला सीट देना। फिर ‘हवाईसुंदरी‘ को बुलाया जाता और मामले का निपटान किया जाता।

इतनी धमा चौकड़ी मचती कि लगने लगता कि कहीं सियालदाह मेल में तो नहीं आ गया। हवाई अफसराएँ जैसेतैसे सबको बैठा देती और सीट बेल्ट में जकड़ देती। धमाचौकड़ी देखकर तो ऐसा लगने लगता था कि अभी काउपि काउपि चिल्लाता वेंडर भी न आ धमके। विमान के दरवाजे बंद हो जाते तो अब चालू होता सीट बदलने का सिलसिला। विमान परिचायिका मना करती मगर कोई सुने तब न और शुरू हो जाता कोलकाता गैस कांड।

भांतिभांति की विचित्रा आवाजों के साथ गैस बाहर आने लगती। पता नहीं विमान के इंजन काम करने लगते या फिर उस गैस की वजह से विमान इतना हल्का हो जाता कि विमान टेकआफ हो जाता। सीट बेल्ट साइन अभी बंद भी नहीं हुआ है कि लोग भागने लगते टायलेट की तरफ।

अरे भाई 4.00 बजे से लाइन में लगवा दिया। 5.30 पर विमान के दरवाजे बंद करवा दिए। 5.50 पर टेकआफ करवा दिया। हम कुछ बोले? अब कितनी देर रोक कर रखें?

कुल मिलाकर टायलेट पर पूरी यात्रा के दौरान लाइन ही लगी रहती। अब नाश्ता परोसने के लिए उद्घोषणा होती कि सब अपनी सीटों पर लौट जाएं मगर पाकिस्तान से पाकसाफ हो आये तो वापस लौटें।

खैर नाश्ता चालू हो जाता और सीट पर लौटने वालों का सिलसिला बीचबीच में चलता रहता। विमान परिचायिकाएं न चाहते हुए भी लोगों को उनकी सीट तक पहुंचने देने के लिए अपने खाने के ट्राली को आगे पीछे करती रहती। लोग कुछ खा लेते जो बच जाता उसे मोच्छि वाले थैले में डाल लेते। कुछ लोग तो एयर इंडिया पर इतना मेहरबान होते कि खाने की ट्रे, बाउल, स्पून, फोर्क भी लगे हाथों उसी श्मोच्छिश् वाले थैले के हवाले कर देते।

इसी दौरान विमान किसी डिप्रेशन के कारण गोते लगाता तो दो चार की चाय भी धराशायी हो जाती और अचानक से अंडमान तट दिखने लगता। उद्घोषणा होती….. कृपया ध्यान दीजिए। अब से कुछ ही देर में हम वीर सावरकर विमानपत्तन पर उतरने वाले हैं। सभी लोग अपनी अपनी सीटों पर पहुंच जाएं। सीट बेल्ट बांध लें। खिड़कियों के शटर खुले रखें। और टायलेट में बचे लोगों को किसी तरह बाहर निकाला जाता और विमान पोर्टब्लेयर की हवाई पट्टी को जैसे ही छूता तो लोग सलामी देने की मुद्रा में खड़े हो जाते

बाहर का तापमान 26 डिग्री। अपना छाता, चोश्मा और मोच्छि का थैला ले जाना न भूलें। आगे बैठे यात्रियों को पहले उतरने दें मगर लोग इस कदर उतावले होते कि लगता जैसे बिना सीढ़ी के ऊपर से ही कूद कर भाग जायेंगे।

विमान से उतर कर बिल्डिंग तक पैदल ही जाना होता था। इसी दौरान ज्यादातर लोग विमान के साथ फोटो खिंचवाने की असफल कोशिश करते। उनको धकेल धकेल कर विमान से दूर किया जाता।

सामान बेल्ट नंबर 1 पर आ जाता और लोग बैग उठाते, फिर उसके टैग को अपने बोर्डिंग पास पर चिपके टैग से मैच करते। मैच न होने पर बैग को वापस बेल्ट पर रख देते। कुछ बंगाली बच्चे अपने मफलर और टोपी बेल्ट पर रख देते और उसके घूम कर आने का इंतजार करते। एक आध बच्चा खुद को बेल्ट पर चढ़ाने की असफल कोशिश करता और अपनी माँ से एक आध थप्पड़ भी खा लेता।

लोग अपने बैग ट्राली पर रखते श्मोच्छिश् वाला बैग हाथ में पकड़ते और हवाई अड्डे से बाहर निकलते, बाहर से सिटी बस पकड़ते और स्थानीय यात्राी पांच रुपये में अपने घर। दो बच्चों के साथ हनीमून मनाने आये लोग अपने टूर आपरेटर को खोज रहे होते थे। भारत सरकार की हनीमून मनाओ स्कीम की जय…..

डा. संजीव कुमार वर्मा

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,854FansLike
5,486FollowersFollow
142,970SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय