काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह व्यक्ति अपने भीतर के इन पांच शत्रुओं के कारण मनुष्य का जीवन युद्ध क्षेत्र बन जाता है।
जीवन के हर मार्ग पर संदेह का नाग फुफकारने लगता है।
अन्याय का भेडिया मानव को हजम कर जाता है, जो शान्ति की कामना को मसल देता है। इस प्रकार का आदमी हर पल पाप की गोद में पलता है, अनाचार के पलंग पर सोता है, घृणा की नदी में नहाता है, दंभ के दर्पण में मुख देखता है, पर निंदा को जीवन की सहचरी बनाता है, बैर को अपना मंत्री बनाता है, लोभ को अपना हितैषी समझता है।
मद को अपना गुरू समझता है, क्रोध को अपना पथ-प्रदर्शक समझने लगता है। हे मानव यह जीवन बड़ा अस्थिर है, तू आत्मा को जानने का जो भी प्रयास है उसे कर।
यदि आदमी यह प्रयास नहीं करेगा तो उसका यह जीवन तो व्यर्थ जायेगा ही वह अपना परलोक भी बिगाड़ लेगा।