‘मनुर्भव’ वेद का ऋषि कहता है कि मनुष्य बनो। मनुष्य कहते किसे हैं, किन गुणों के स्वामी को मनुष्य की संज्ञा दी जा सकती है। मनुष्य उसको कहा जा सकता है, जो मननशील होकर अपने समान दूसरों के दुख-सुख और हानि-लाभ को समझे। अन्यायकारी बलवान से भी न डरे और धर्मात्मा से भले ही वह निर्बल हो से भी डरता रहे। अपने पूर्ण सामर्थ्य से धर्मात्माओं की रक्षा करें भले ही वे अनाथ, निर्बल और कम शिक्षित हो, कम सामर्थ्य वाले हो उनकी रक्षा करें, उनकी उन्नति में सहायक बने। जो अधर्मी, मानवता के हितों के विरूद्ध कार्य करने वाला, सज्जनों का विरोधी, समाज विरोधी, देश विरोधी, सत्य सिद्धांतों के विरूद्ध आचरण करने वाले चाहे जितने भी बलवान और प्रभावशाली हो उनका डटकर विरोध करे तथा न्यायप्रिय व्यक्तियों का पोषण करे। ऐसा करने में चाहे उसको कितना भी दारूण दुख प्राप्त हो, परन्तु वह मानव धर्म से कभी पृथक न हो। ऐसे प्राणी को ही मनुष्य के रूप में विभुषित किया जा सकता है।