अग्रि में जले हुए व्यक्ति के लिए तो औषधि होती है, परन्तु ईर्ष्या में फुंके व्यक्ति के लिए कोई आषधि संसार में उपलब्ध नहीं। आग में जलने से पडऩे वाले छाले तो उपचार से ठीक हो जाते हैं, परन्तु ईष्र्या की आग में जलने वाला शरीर ठीक नहीं होता। कुछ ईर्ष्यालु मुंह पर तो आपकी उपलब्धियों की प्रशंसा करेंगे, परन्तु बाद में विषैले शब्दों का प्रयोग करेंगे। उपके दिखावे में प्रेम और प्रशंसा होती है, पर उनके भीतर जलन के अतिरिक्त कुछ नहीं होता। ईर्ष्यालु व्यक्ति जब अपने किसी परिचित या सम्बन्धी के गृहप्रवेश अथवा किसी अन्य आयोजन में जायेगा तो मुस्कराकर कहेगा आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। बाहर से हार्दिक बधाई और शुभकामना पर भीतर से हार्दिक जलन और दुर्भावना। याद रखिए ऐसे पापी व्यक्ति से परमात्मा भी प्रसन्न नहीं रह सकते, क्योंकि परमात्मा ने तो कर्मों के अनुसार उसका प्रारब्ध रचा, एसे ऐश्वर्य प्रदान किया, प्रगति की राह दिखाई और ईर्ष्यालु एक प्रकार से परमात्मा को ही कोस रहा होता है। आज के जमाने की बदलती आवाज यह कहती है कि दिल मिल न मिले हाथ मिलाते रहिए, ऊपर से प्यार दिखाते रहिए, जबकि होना यह चाहिए कि हाथ मिलाओ अथवा न मिलाओ पर अन्दर दिलों में प्रेम जरूर हो, मधुरता हो और सद्भावना हो।