Sunday, November 24, 2024

अनमोल वचन

संसार का हर व्यक्ति सुख का आकांक्षी रहता है। कोई नहीं चाहता कि दुख के दिन देखने को मिले। होता क्या है कि जाने-अनजाने में भूल सबसे हो जाती है और उस भूल का फल दुख रूप में प्रभु की व्यवस्था के अनुसार मिलना ही मिलना है।

वह इस जन्म में मिले अथवा अन्य किसी जन्म में यह ज्ञान प्रभु को ही है। इसलिए जब हमें कोई दुख, पीड़ा, सन्ताप मिले तो किसी को दोष न दे। यह माने कि संचित पाप जो चित्त में अंकित है घटता जा रहा है और यदि हमें सुख मिल रहा है तो उस समय गर्व करने अथवा अधिक प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि सुख प्राप्ति के समय हमारे पुण्य कर्मों का खाता क्षीण होता जा रहा है।

उसे बचाये रखने के लिए जो आपकी सामर्थ्य है उसके अनुसार पुण्य और शुभ कर्म ही करते रहे। सुख शब्द में दो अक्षर हैं सु+ख-सु अर्थात अच्छा (पुण्य) ख-अर्थात खाना, भोगना, समाप्त करना, क्योंकि संचित वस्तु में यदि वृद्धि नहीं होती रहेगी तो वह समाप्त तो होगी ही।

इसी कारण दुख में भी दो अक्षर हैं दु+ख-दु-बुरा (पाप) ख- खाना, भोगना, समाप्त करना। भाव यह है कि सुख भोगने का अर्थ है पुण्य को खाकर अर्थात भोग कर समाप्त करना और दुख भोगने का अर्थ है संचित पाप को भोग कर समाप्त करना। यह ज्ञान सभी को है कि क्या करते रहने से सुख बने रहेंगे और क्या न करने से दुखों की समाप्ति होगी।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय