Friday, January 24, 2025

अनमोल वचन

संसारी व्यक्ति थोड़े से सुख में फूल जाता है और थोड़े से दुख में दुख रूप बन जाता है। थोड़ा सा लाभ उसे आसमान पर आरोहित कर देता है और थोड़ी सी हानि उसे रसातल में गिरा देती है, किन्तु स्थित प्रज्ञ संसार में रहकर भी संसार से ऊपर रहता है।

इसके विपरीत संसारी व्यक्ति इस तथ्य को नहीं जानता कि सुख या दुख, हानि या लाभ सतह पर घटने वाली घटनाएं हैं। हमारे भीतर हमारी अन्तरात्मा तक सुख और दुख की पहुंच नहीं। ऊपरी लहरे हैं सुख और दुख। सुख-दुख, हानि-लाभ, समृद्धि-असमृद्धि, सम्मान-असम्मान आदि के संवेदनों से यदि हमें मुक्त होना है तो हमें समता के शास्त्र को आत्मशास्त्र बनाना होगा अर्थात हमें दुख में, सुख में, हानि में, लाभ में, मान में, अपमान में, हर्ष और विषाद में सम्भाव से रहने की कला सीखनी होगी।

इसे ही स्थित प्रज्ञता कहा जाता है। स्थित प्रज्ञता को उपलब्ध व्यक्ति परमात्मा को पा लेता है तथा धीरे-धीरे वह परमात्मा पद को उपलब्ध हो जाता है।

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