इमोशनल ब्लैकमेल’ शब्द आजकल बहुत इस्तेमाल होने लगा है। आखिर कहते किसे हैं इमोशनल ब्लैकमेलिंग। मनोवैज्ञानिक इसे इस तरह परिभाषित करते हैं-अपनी बात मनवाने के लिए अपनों पर भावनात्मक दबाव डालना इमोशनल ब्लैकमेलिंग कहलाता है।
ब्लैकमेलिंग बचपन से:- इमोशनल ब्लैकमेलिंग की कला हम पैदाइश से ही सीख कर आते हैं। बच्चा अपनी बात मनवाने के लिये जब जोर से चीखता चिल्लाता गला फाड़ कर रोता है, कनखियों से वो अपने माता पिता की ओर देखता भी जाता है कि उन पर असर हो रहा है या नहीं।
आखिर जब मां बाप बच्चे की जिद मान लेते हैं तो जीवन भर के लिए यह उसकी आदत में शामिल हो जाता है। हम सभी थोड़ी बहुत इमोशनल ब्लैकमेलिंग के आदी होते हैं। हर रिश्ते में यह मौजूद है। कभी हम मान जाते हैं तो कभी विरोध भी करते हैं। जब इसमें अपनत्व होता है तो हम इसका लुत्फ भी उठाते हैं क्योंकि यह रिश्तों को प्रगाढ़ता प्रदान करने का एक जरिया भी है।
ब्लैकमेलिंग हर रिश्ते में:- अब पति पत्नी या प्रेमी प्रेमिका की ही बात लें तो वे इमोशनल ब्लैकमेलिंग की कला में अगर पारंगत हैं तो आसानी से पार्टनर के प्यार और केयरिंग नेचर को भुनाते हुए अपनी बात पार्टनर से मनवा लेते हैं लेकिन प्रॉब्लम्स तब आती हैं जब पार्टनर आदतन हर बात पर यहीं फंडा आजमाते हुए खुद को नुकसान पहुंचाने की धमकी देकर बात मनवाने की कोशिश करता या करती है।
ब्लैकमेलिंग अपनों के द्वारा ही की जाती है। रिश्तों में जहां एक की पोजीशन जरा भी स्ट्रांग होती है वहां यह टैक्नीक असरदार दिखती है लेकिन जब किसी को इसकी आदत पड़
जाती है तो समस्याएं उठने लगती हैं और सिचुएशन तनावग्रस्त होने लगती है।
अपनी मर्जी से विवाह करने की स्थिति में अक्सर लड़के लड़की के मां बाप जहर खाने व ‘मेरा मरा मुंह देखे’ जैसा डायलॉग बोलकर संतान को इमोशनली ब्लैकमेल कर उन्हें मर्जी का विवाह करने से रोक देते हैं। दूसरी तरफ संतान भी यही दोहरा कर कभी कभी उन्हें ब्लैकमेल करती हैं। ऐसे में धमकी और ब्लैकमेलिंग में अंतर करना मुश्किल होता है।
शोषण से बचें:- इमोशनल ब्लैकमेलिंग में जब तक स्वस्थ आदान प्रदान होता है, कोई समस्या नहीं होती बल्कि नुकसान की जगह व्यक्ति इसे एंजॉय करता है। बेटी का यह कहना कि कि अगर आपने उसे नई जींस खरीदने के लिये पैसे नहीं दिए तो वो आपका कोई काम नहीं करेगी, यहां तक कि आपसे बात भी नहीं करेगी। आप आखिर मान जाती है अरे, रानी बेटी, तुमसे बोले बिना मैं कैसे रह सकती हूं और सारा काम अकेले कैसे कर सकती हूं? अच्छा तुम ही जीतीं। ले आना अपनी मनपसंद जींस। अब तो खुश हो ना?
यहां मां बेटी दोनों खुश थी।
अपने शोषण की बात समझ लेना सब से अहम बात है। यह जरूरी है कि आप अपनी जरूरतों को समझें। आज इस बात पर काफी जोर दिया जाता है कि अपने लिए भी जीना सीखें। ऐसा कई संदर्भों को लेकर कहा जाता है और यह न बुरा है न कोई गुनाह।
अगला चरण है सीमा रेखा खींचना। यह काम इतना आसान नहीं है। यहां आपको अपना नजरिया विस्तृत रखना है और विवेक से काम लेना है। जैसे आपको औरों से उम्मीद रहती है, उन्हें भी आपसे उम्मीद होती है। यही जीवन है, रिश्तों का आधार है, रिश्तों को धड़कन देता है और उन्हें मोबाइल रखता है।
अपनी सामर्थ्य देखें, औचित्य देखें। अपने पर स्वयं जुल्म करना आज की भाषा में अनैतिक है। इसी युग में रहना जीना है तो आज की नैतिकता देखते हुए अपने को भी इंपॉर्टेंस जरूर दें। अपने को एजर्ट करते हुए किसी के भी द्वारा अनुचित रूप से ब्लैकमैल कदापि न होने दें।
– उषा जैन ‘शीरीं’