काठमांडू। नेपाल में हिंदू राष्ट्र का मुद्दा दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी हिंदू राष्ट्र के मुद्दे पर चुनाव लड़ने के बाद संसद में पांचवीं शक्ति बन गई है। संसद में सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस भी हिंदू राष्ट्र का मुद्दा उठा रही है। नेपाली कांग्रेस के सांसद डॉ. शशांक कोइराला ने देश को हिंदू राष्ट्र बनाने पर जोर देते हुए इसके लिए जनमत संग्रह कराने की भी मांग की है।
नेपाल के नवलपरसीम में आयोजित श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान महायज्ञ को संबोधित करते हुए डॉ. शशांक कोइराला ने कहा, ‘‘जनमत संग्रह के जरिए नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाना जरूरी है।’’ वह वीपी कोइराला के सबसे छोटे बेटे हैं, जो नेपाल के पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के संस्थापक नेता हैं। इसलिए उनकी अभिव्यक्ति सार्थक मानी जाती है, लेकिन नेपाली कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी बन गई है। अब उस दल में हिन्दू राष्ट्र के समर्थकों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
हिंदुत्ववादी राष्ट्र पक्षधर राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के समर्थन से पुष्प कमल दहल प्रचंड नेपाल में प्रधानमंत्री बने और नेपाली कांग्रेस को भी सरकार में शामिल किया। सरकार में शामिल होने के बाद नेपाली कांग्रेस के मंत्रियों ने हिंदू राष्ट्र और राजशाही के पक्ष में बोलकर राजनीतिक लहर ला दी है। प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस से मंत्री बने सांसदों को गणतंत्रवाद, धर्मनिरपेक्षता और संघवाद के खिलाफ न कहने की चेतावनी दी है, लेकिन सरकार में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी के मंत्रियों के बीच बहस छिड़ी हुई है। इसी वजह से प्रचंड सरकार के गठबंधन सदस्यों के बीच अनबन बढ़ती जा रही है।
वर्ष 2015 में जारी संविधान में नेपाल को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया गया था। लोगों ने इस कदम का विरोध किया है, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी का शीर्ष नेतृत्व धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में बोलता रहा है। नेपाली कांग्रेस में भी कुछ प्रभावशाली नेता हिन्दू राष्ट्र के पक्ष में खुलकर बोलने लगे हैं। नया संविधान जारी होने से पहले नेपाल दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था। वर्ष 2015 के संविधान में हिंदू राष्ट्र को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने में प्रचंड की मुख्य भूमिका थी। उस समय इसके खिलाफ आवाज उठी थी, लेकिन वह उतनी मजबूत नहीं थी। हाल के दिनों में हिंदू राष्ट्र के मुद्दे पर आवाज तेज होती जा रही है। इस मुद्दे के बल पर चुनाव से पहले प्रभावशाली नेताओ ने धार्मिक स्थल का दौरा कर उसकी तस्वीरें प्रकाशित की थीं। इस दौड़ में नेपाली कांग्रेस नेताओं के अलावा कम्युनिस्ट नेता भी शामिल थे।