जिज्ञासु के मन में प्रश्र उठता है परमात्मा कहां है? क्या परमात्मा मंदिरों में है? क्या परमात्मा मजिस्दों में है? क्या वह गिरजो और गुरूद्वारा में है? क्या वह किन्हीं तीर्थों, वनो अथवा पर्वतों पर है? करोड़ों वर्षों से यह प्रश्र दोहराया जाता रहा है।
जब से मनुष्य ने होश सम्भाला है, उसमें सोचने और बूझने की क्षमता का विकास हुआ है। तब से जैसे यह प्रश्र अनुन्तरित था वैसे ही आज भी है। जो यह मानते हैं कि परमात्मा मंदिरों में रहते हैं उन्होंने मंदिरों का निर्माण कर लिया, जो मानते हैं कि परमात्मा मस्जिदों में रहता है उन्होंने मस्जिदों का निर्माण कर लिया, जो गिरजो, गुरूद्वारों में परमात्मा का निवास मानते हैं उन्होंने उनका निर्माण कर लिया।
जो तीर्थों, वनो और पर्वतों पर परमात्मा का निवास मान लिया वे उसे वहां खोजने निकल जाते हैं पर क्या परमात्मा को खोजा जा सका? कदाचित वहां नहीं, क्योंकि खोजा उसी को जा सकता है, जो खो गया हो। जो खोया ही न गया हो उसे कैसे खोजा जा सकता है?
जरा अपनी किश्ती को खोज के भंवर से निकालकर चिंतन कीजिए क्या परमात्मा खो गया है अथवा वह कहीं छिप गया है? वह न कहीं छिपा है न खोया गया है। वह तो हमारे अन्तस्थल में विराजमान है, परन्तु उसके साक्षात के लिए दिव्य चक्षु चाहिए, ज्ञान चक्षु चाहिए, जिन्हें साधना के द्वारा ही प्राप्त किया जाना सम्भव है।