सामाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है। उसमें यह अभिलाषा होती है कि किसी भी क्षेत्र में उसका नाम हो, वह पद, पैसा और कार्यों के आधार पर प्रातिष्ठित हो। नाम एवं प्रतिष्ठा की यह अभिलाषा ही व्यक्ति की महत्वाकांक्षा को जन्म देती है।
दूसरे शब्दों में कहे तो अपनी महत्ता को स्थापित करने की आकांक्षा ही महत्वकांक्षा है यह महत्वाकांक्षा किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। राजनीति, उद्योग, खेल, अभिनय, व्यापार, चिकित्सा, विज्ञान, इंजीनियरिंग, कला और साहित्य आदि सैकड़ों क्षेत्र इसकी पूर्ति के माध्यम हो सकते हैं।
महत्वाकांक्षा छोटी हो या बड़ी प्रत्येक मानव में इसका अस्तित्व होता है, जो जितना बुद्धिमान और सक्षम होता है, उसमें उतनी ही अधिक महत्वाकांक्षाएं होती हैं, किन्तु कुछ ऐसे भी मानव है, जिनकी आकांक्षा मात्र दो समय के भोजन को प्राप्त करने तक सीमित है। वे महत्व जैसे शब्द से कोई विशेष लगाव नहीं रखते।
जिनमें आगे बढ़ने की, प्रगति करने की आकांक्षा है, वे आगे बढ़ने के लिए चुनौतिपूर्ण लक्ष्य तय करते हैं और उसकी पूर्ति में जी जान से जुट जाते हैं, किन्तु एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि महत्वाकांक्षा की सीमा रेखा निश्चित कर ली जाये, जो व्यक्ति सीमा रेखा तय कर लेता है वह बहुधा अपना लक्ष्य भी पा लेता है और जीवन में आनन्द का अनुभव करता है।