पटना। बिहार की सियासत में प्रारंभ से ही जातीय समीकरणों का बोलबाला रहा है। जातीय समीकरण को साधकर सत्ता तक पहुंचने के कई उदाहरण यहां मिलते हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दल बिहार में जातीय समीकरण को साधने में जुटे हैं। फिलहाल बिहार में जातीय जनगणना को लेकर भी सियासत खूब हो रही है। हालांकि जातीय गणना को पटना उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश देते हुए इस पर रोक लगा दी है।
इसके बावजूद सभी दल जातियों के शुभचिंतक बनने को साबित करने में एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। ऐसे में जातीय जनगणना के राजनीतिक दलों के लाभ और हानि को तौलकर इसके मायने निकाले जा रहे हैं और उसी के अनुसार बयान भी दिए जा रहे हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि बिहार में जातीय जनगणना कराने का निर्णय एनडीए की सरकार में लिया गया था। इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के महागठबंधन की सरकार बनने के बाद जातीय गणना का कार्य प्रारंभ हुआ।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी कहते हैं कि जब जातीय गणना कराने का प्रस्ताव कैबिनेट में पास हुआ था तब मंत्रिमंडल में जदयू के 12 मंत्री थे जबकि भाजपा के 16 मंत्री और दो उपमुख्यमंत्री थे।
उन्होंने तो यहां तक कहा कि जो सरकार अपने डिसीजन को अदालत में सही साबित करने में असफल साबित हो रही हो, ऐसी सरकार को इस्तीफा करना चाहिए।
बिहार सरकार ने दो चरणों में जातीय जनगणना का काम पूरा करने की घोषणा की थी। पहला चरण जनवरी में पूरा हो गया था। इसके बाद 15 अप्रैल से दूसरे चरण की शुरूआत हुई, जो 15 मई तक पूरा होना है। पहले चरण में लोगों के घरों की गिनती की गई। दूसरे चरण में जाति और आर्थिक जनगणना का काम शुरू हुआ। इस पर अब रोक लग गई।
दरअसल, बिहार में लम्बे समय से जिस जाति का जितना हिस्सा जनसंख्या में है, उसे उतनी ही मात्रा में आरक्षण देने की रही है। माना जाता है कि बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ईबीसी की संख्या अधिक है। कहा जाता है कि यही कारण है कि जदयू और राजद इसके लिए भाजपा को दोषी बता रही है।
राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद ने शुक्रवार को ट्वीट कर कहा है कि जातीय जनगणना बहुसंख्यक जनता की माँग है और यह हो कर रहेगा। उन्होंने सवाल करते हुए पूछा कि भाजपा बहुसंख्यक पिछड़ों की गणना से डरती क्यों है?
राजद अध्यक्ष ने आगे लिखा कि जो जातीय गणना के विरोधी है वह समता, मानवता, समानता का विरोधी एवं ऊँच-नीच, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ेपन, सामाजिक व आर्थिक भेदभाव का समर्थक है।
इधर, राजद के नेता शिवानंद तिवारी भी कहते हैं कि भाजपा ने मन से कभी भी पिछड़ों के आरक्षण का समर्थन नहीं किया है। उन्होंने कहा कि भाजपा उच्च न्यायालय के फैसले पर क्यों जश्न मना रही है।