रहीम दास जी ने कहा है कि,
रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून,
पानी गये ना ऊवरे मोती मानुष चून।
ऊपर की मात्र दो पंक्तियों में ही पानी के महत्व को समझा दिया गया है। इसका अभिप्राय यही है कि पानी की एक-एक बंूद बहुत महत्वपूर्ण है। पानी मरते हुये प्राणी को जीवन दे सकता है, इसीलिए पानी को अमृततुल्य माना जाता है।
पानी ही वह प्राणतत्व है जिससे व्यक्ति का जीवन रोगमुक्त रहता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए पानी कितना आवश्यक है, इसे कमोबेश सभी लोग जानते समझते हैं परंतु उचित मात्रा में शुद्ध पानी न मिलने पर शरीर को कितना नुकसान पहुंच सकता है, इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।
दैनिक आवश्यकता – एक व्यक्ति के शरीर में पानी की कितनी आवश्यकता होती है, यह कई बातों पर निर्भर करता है मसलन व्यक्ति की उम्र, फिजिकल एक्टिविटी, खाने की मात्रा, नमक का इनटेक मौसम और जलवायु। सामान्यतः पानी की दो तिहाई जरूरत रोज के खान-पान पर आधारित होती है। दिन भर में 8 से 1० गिलास तक पानी पीना चाहिए।
यदि व्यक्ति थका हुआ है और अत्यधिक पसीना आ रहा है तो उसे 1० गिलास पानी से भी ज्यादा पानी की आवश्यकता है। व्यक्ति के शरीर में पर्याप्त पानी है या नहीं, इसका अंदाजा हम पेशाब के रंग से आसानी से जान सकते हैं। पानी न पीने की अवस्था में शरीर के अंग प्रभावित होते हैं और पेशाब पीलापन लिए होता है। इसका मतलब है कि शरीर में पानी की कमी हो गयी है। पानी की पर्याप्त मात्रा लेने पर पेशाब का रंग सफेद हो जाता है।
पानी कब और कितना पिएं – पानी की पर्याप्त मात्रा नहीं लेने से पाचन क्रिया प्रभावित होती है। खाना खाने के बीच में पानी के घूूंट भरने से चबाने और लार बनने पर असर पड़ता है। पानी पीने के 5 – 1० मिनट तक ही पेट में रहता है। खाना खाने के दौरान पानी का सेवन पाचन तंत्र के रसों को घोल देता है जिससे अपच हो जाता है, इसलिए पानी खाली पेट व खाना खाने के डेढ़ घण्टे पहले तथा खाने के 2 घंटे बाद पिया जाना चाहिए।
पानी पीने का तरीका – जब हमें प्यास लगती है, तो हम एकदम से बहुत ज्यादा पानी एक साथ पी जाते हैं। लेकिन पानी को गले से उतारने से पहले उसमें लार का घुलना जरूरी है। पानी पीने का सबसे आदर्श तरीका है कि पानी को घूूंट-घूंट कर पिया जाये।
किस तरह का पानी पिएं – गरम या ठण्डा- पीने के पानी के तापमान का सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से है। ठंडा पानी शरीर के तापमान को कम रखता है और खून को जरूरत के हिसाब से ठंडा रखता है। यह शरीर से विषैले तत्वों को पेशाब, पसीने व पतले मल के जरिए बाहर निकालता है। यहां ठंडे पानी का मतलब फ्रिज के ठंडे पानी से न होकर शीतल जल से है। गुनगुना पानी पीने से पेट में एसिड बनने पर रोक लगता है। साथ ही छाती की जलन, पेट में दर्द उल्टियों व गंभीर अपच से बचाव करता है।
पानी की कमी से होने वाली हानि- पानी की कमी से सर्वप्रथम शरीर में डीहाइड्रेशन हो जाता है यानी शरीर में पानी की कमी हो जाती है। पेट खराब होने और बार बार उल्टियों के कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है। ऐसी अवस्था में शरीर के अंगों को पानी की अधिक आवश्यकता होती है ताकि वे अपना काम सुचारू रूप से कर सकें। गला सूखना डीहाइड्रेशन का पहला लक्षण है। इसके अलावा पेशाब में कमी, त्वचा के लचीलेपन में गिरावट, चिड़चिडाहट, डीहाडेऊशन के अन्य लक्षण है।
पानी की कमी से होने वाले अन्य स्वास्थ्य संकट –
हाइपरटेंशन – कुछ ब्लड कैपिलरिज खून में पानी गिराकर खून के वाल्यूम को सामान्य बनाये रखती हैं। कई बार यह एक्टिविटी इनके इर्द गिर्द के रक्त प्रवाह में प्रतिरोध पैदा करती है, जिससे हाई ब्लड प्रेशर हो जाता है।
हाई कोलेस्ट्राल – पानी का चिपचिपापन कोशिका की दीवारों को आपस में बांधकर रखता है। डिहाइड्रेशन होने पर इसकी कमी हो जाती है और हमारे सिस्टम में कोलेस्ट्राल ज्यादा रिलीज होने से इसका स्तर बढ़ जाता है।
बदहजमी- पानी की एक परत पाचक एसिडों को पेट की अंदरूनी लाइंिनंग को बाइकार्बोनेट बनाते हुए छूने से रोकती है। इसके डिस्चार्ज से नीचे की कोशिकाओं का पोषण होता है। ठीक इसी तरह पैंक्रियाज ग्रंथि से स्रावित बाइकार्बोनेट आंतों में उत्पन्न एसिड को उदासीन कर उनका बचाव करता है। इन दोनों ही मामलों में यदि पानी की कमी हो जाए तो बदहजमी हो सकती है।
डायरिया – पानी में होने वाले वेक्टीरिया पूरे पाचन तंत्र को न सिर्फ प्रभावित करते हैं बल्कि कमजोर भी कर देते हैं। डायरिया होने पर पेट खराब हो जाता है।
डायरिया का ही बिगड़ा हुआ रूप पेचिश है जिससे आंव व खून आने लगता है। साथ ही बुखार, क्रैंप्स, उल्टियां भी आने लगती हैं। ऐसे में कुछ तरल पदार्थ देते रहना चाहिए।
टाइफाइड – दूषित पानी इसकी मुख्य वजह होती है। टाइफाइड होने पर सिरदर्द, बुखार की शिकायत बढ़ती जाती है। पेट पर लाल धब्बे आने लगते हैं, साथ ही ठंडा पसीना आता है। हालत गंभीर होने पर मल के रास्ते खून आने लगता है। इससे जरूरी है कि वक्त से इलाज किया जाय।
ज्यादा पानी पीने लाभदायक – अधिक पानी पीने से शरीर कुछ विशेष स्टेज में बहुत प्रभावशाली ढंग से काम करता है। उदाहरण के लिए बुखार होने पर खूब पानी पीने से शरीर को एनर्जी मिलती है क्योंकि बुखार उतरने पर पसीना आने से शरीर का पानी निकल जाता है और पानी पीते रहने से इसकी पूर्ति होती है। इसी तरह यूरिन इंफेक्शन होने पर खूब पानी पीने से इंफेक्शन के कीटाणु पेशाब के जरिए बाहर आ जाते हैं।
पानी अधिक पीने से पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है। पेशाब ऐसे तरल पदार्थों को बाहर निकाल फेंकता है जो शरीर के कई भागों में असामान्य रूप से जमा हो जाते हैं। पानी बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने का एक प्राकृतिक उपाय है। पानी के जरिए बीमारियों पर कंट्रोल व स्वास्थ्य को हमेशा बनाये रखने की विधि को हाइड्रोथेरेपी कहते हैं। पानी से बढ़कर दुनियां में कुछ नहीं है। यह कई तरह से संसार को जीवन व जीवन की सुरक्षा प्रदान करता है।
हमारे शरीर के 7० प्रतिशत भाग में पानी है। शरीर के हर हिस्से में पानी होता है लेकिन कुछ अंगों जैसे ब्रेन व लिवर के साथ खून व लार में पानी की मात्रा के लिए पानी की आवश्यकता होती है और केमिकल तत्व ब्रेन के संदेशों को नर्व्स के साथ ही कैपिलरीज के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों में ले जाते हैं। शरीर के मुख्य अंगों में पानी की सप्लाई उनकी जरूरतों के अनुसार होती है। कई अंग अपने चारों ओर स्थित पानी में कैमिकल तत्व स्रावित करके अन्य अंगों की मदद करते हैं।
पानी शरीर के तापमान व त्वचा की बनावट को सामान्य बनाये रखता है। यह पसीने, पेशाब व सांस के जरिए विषैले पदार्थो से शरीर को मुक्त रखता है और एकरूपता को बनाए रखता है। पानी प्रोटीन, मिनरल व विटामिनों को घोलने में सहायक होता है।
इसमें कोई शक नहीं है कि पानी जीवन का आधार है। इसके बिना हम कुछ नहीं हैं। पानी दुनियां को संपूर्णता देता है। हम जब भी जहां भी पानी का इस्तेमाल करते हैं तो इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद करना चाहिए। यह अपने आप में ईश्वर का आशीर्वाद है। जब आपको जरूरत के समय पानी मिलता है तब लगता है कि आपने सब कुछ पा लिया है, इसलिए पानी का दुरूपयोग तथा उसे बरबाद होने से बचाएं।
-सान्त्वना मिश्रा