Friday, November 15, 2024

एलर्जी: कारण और रोकथाम

नीता मेरी बचपन की सहेली थी, इतनी अधिक प्रगाढ़ कि लोग हमें सहेलियां कम, बहनें अधिक समझते थे मगर फिर भी नीता कभी हमारे घर न आती।

मेरे घर के बगीचे में कदम रखते ही नीता लगातार आने वाली छींकों से बेहाल हो जाती। उसकी नाक से निरंतर पानी बहने लगता और सिर दर्द से फटने लगता, इस कारण से वह हमारे घर आने से कतराती थी। दरअसल नीता को हमारे बगीचे में लगे फूलों से एलर्जी थी। कुछ लोगों को फूलों से एलर्जी होती है, खासकर बसंत के मौसम में। जब हवा में फूलों के पराग कण होते हैं तो बहुत से लोगों को ‘हे फीवर’ हो जाता है।

एलर्जी कभी भी, किसी भी उम्र में और किसी भी चीज़ से हो सकती है। एलर्जिक वस्तुओं के संपर्क में आने या खाने-पीने के दो-तीन सैकेंड के अंदर इसका प्रभाव शुरु हो जाता है। कभी-कभी तो कुछ मिनटों में स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि जान के लाले पड़ जाते हैं।

एक अध्ययन के अनुसार-‘हमारे देश में लगभग बीस प्रतिशत लोग किसी न किसी एलर्जी के शिकार हैं। प्रदूषण, धूल-गंदगी, तनाव, खाने-पीने की चीज़ों में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रिजर्वेटिव, बदला खान-पान और रहन-सहन जैसे कारणों से एलर्जी का प्रतिशत निरंतर बढ़ता जा रहा है। गौरतलब है कि एलर्जी के शिकार लोगों में बच्चों और युवाओं की संख्या ज्यादा है।

एलर्जी शरीर के जिन हिस्सों को प्रभावित करती है, उनके अनुसार उसके अलग-अलग नाम हैं।
एलर्जी से अगर फेफड़े प्रभावित हों तो उसे अस्थमा कहते हैं। घर में सफाई के दौरान या बाहर धूल आदि होने से अक्सर अस्थमा का दौरा पड़ जाता है।

त्वचा पर होने वाले रिएक्शन हाइव, एक्जिमा या त्वचा की एलर्जी होते हैं।
पराग कणों से होने वाली एलर्जी ‘हे फीवर’ कहलाती है।

पाचन तंत्रा के प्रभावित होने पर फूड एलर्जी और सारे बदन पर एलर्जिक असर को एनेफिलेक्सिस कहते हैं। दरअसल शरीर में किसी खास तत्व के प्रति अतिरिक्त प्रतिरोधक क्षमता होने पर एलर्जी होती है। ये तत्व हमारी प्रतिरोधक क्षमता में अतिरिक्त एंटीबॉडी उत्पन्न करते हैं। इससे प्रतिरोधक क्षमता वाली मास्ट कोशिकाएं उत्तेजित होती हैं और हिस्टेमाइन तथा अन्य रसायन उत्पन्न करती हैं।

अगर कोई तत्व हमारे शरीर के सिस्टम के अनुकूल न हो तो शरीर किसी न किसी तरह नर्वस सिस्टम को इसकी चेतावनी दे देता है। आमतौर पर ट्रैफिक के कारण बढ़ते प्रदूषण, धूल, धुएं, गंदगी खाने-पीने की चीज़ों से भी एलर्जी हो जाती है। एलर्जी शरीर पर कई बार ज्यादा तो कई बार कम असर करती है।

कई बार उम्र बढऩे के साथ-साथ यह कम भी हो जाती है। यदि कभी किसी चीज के इस्तेमाल या सेवन के बाद शरीर में कुछ प्रतिकूल प्रभाव दिखाई दे तो उन्हें नजऱअंदाज न करें। डाक्टर को लक्षण बता कर तुरंत एलर्जी टेस्ट करवाएं।
एलर्जी का उचित इलाज भी जान लें जिससे जाने-अनजाने में उस चीज़ का दोबारा सेवन करने पर तुरंत उपचार हो सके।

उपचार एवं सावधानियां:-
त्वचा पर एलर्जी के लक्षण प्रकट हों तो क्लोरीनयुक्त पानी में न तैरें।
प्रभावित त्वचा पर मॉश्चराइजिंग क्रीम का प्रयोग निरंतर करते रहें।
प्रभावित त्वचा पर खुजली न करें।

एंटी हिस्टेमाइन क्रीम का प्रयोग करें। इससे खुजली कम होगी।
केलेमाइन लोशन का प्रयोग बिना डाक्टरी सलाह के न करें।
धूल, गंदगी व कीटाणुओं से बचें।

पालतू जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली, खरगोश आदि को दूर रखें।
किसी भी प्रकार की क्रीम, लोशन, साबुन से यदि आपको एलर्जी होती है तो तुरंत इसका इस्तेमाल बंद कर दें।
कुंडल, टॉप्स तथा अन्य कई आभूषणों में निकल धातु पाया जाता है। ऐसे आभूषणों का प्रयोग न करें।
शरीर पर चमड़े का सामान न रखें।

इन बातों का ध्यान रखकर एलर्जी का प्रभाव कम किया जा सकता है। साथ ही शिकायत होने पर त्वचा रोग विशेषज्ञ से समय-समय पर चेकअप अवश्य करवाएं।
– सेतु जैन

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