Thursday, November 14, 2024

क्या आप अपनी पढाई से संतुष्ट है, ये भविष्य में आपके कुछ काम आएगी ?

-युक्ता मोहिका जैन

हम अपना कीमती समय और सारी ऊर्जा, पढ़ाई पर लगा देते हैं। पर क्या हम उसकी ऊंचाई को छू पा रहे हैं ? क्या हम संतुष्ट हैं ?

22 साल की उम्र में, इतना करने के बाद, हम में से कितने लोगो को पता है नवीनतम तकनीकियों के बारे में ? कितनो को पता है कि हमारे इतिहास की जड़े कहाँ से शुरू हुई है और हमारा अब तक का सफर कैसा रहा ? कितनो को समझ आती है राजनीति की असली परिभाषा ? क्या मिलता है कक्षाओं में चाणक्य ज्ञान? आजकल इतना तो होता है किताबों में अपनी बात कैसे रखें, फिर ज़िंदगी के सफर में क्यों ये कर नहीं पाते ?

 

ज़ादातर लोगो को ना ही उनका बोध है, ना ही विश्व स्तर पर उन्हें समझ आता है वो कहाँ खड़े हैं। आप ही सोचिए ऐसे में, कैसे समझे संकेतो को और कैसे जोड़े कढ़ियों को ? कैसे बनायेंगे हम कोई मज़बूत रणनीति, और कैसे देंगे कोई ठोस भाषण ?

हम सब जानते हैं कि हम अपना कितना कीमती समय और पैसा एजुकेशन/शिक्षा में लगाते हैं। पर फिर भी हमे महसूस होता है कि हमे कितना कम ज्ञात है। हम डरते हैं कि कहीं कोई सवाल ना पूछ ले। ज़ादातर लोगो में इतनी तैयारी के बाद भी हिम्मत नहीं है कि किसी कंपीटिशन / प्रतियोगिता में बैठ जाएं, क्योंकि वो इतना सीख ही नहीं पाते।

हमे बताया जाता है कि, शिक्षा प्रणाली वक़्त-वक़्त पर पुनर्निर्मित होती है। फिर भी वो बेसिक/बुनियादी आवश्यकताओं  को उस हद तक पूरा नहीं कर पाती, जिससे सुगम भविष्य के लिये विद्यार्थी तैयार हो सके।

शिक्षा का अर्थ है मानसिक उन्नति। सिर्फ विज्ञान, राजनीति, इतिहास, भूगोल, गणित, अंग्रेज़ी, हिन्दी, संस्कृत ही नहीं, अपितु प्राचीन लिपियों का वर्गीकरण, नैतिक मूल्य, रोज़ाना की  ग्रह की चाल समझने के लिये थोड़ी बहुत ज्योतिष विद्या, खगोल विज्ञान, सामाजिक व्यवहार का अतिक्रमण, संबंधों का प्रबंधन और सबसे ज़रूरी ज़िम्मेदार होना और निभाना, तथा अगर कहीं किसी रिश्ते का अंत हो, तो कैसे अपने कार्यों को आदर पूर्वक समापन करे। अगर आप नहीं जानते कि संतुलन कैसे करें, तो जो भी आपने सीखा है वो अधूरा ही रह जायेगा।

आप तो जानते ही हैं कि AE (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) जिसे हमने ही योजन किया है; वो मानता है- अगर कुछ रह जाये अधूरा तो उसे कचरा समझकर कूड़ेदान में डाल दो। इसलिए बेहतर होगा, हम ख़ुद को तैयार कर लें, जो हमने बोया है; जिससे कल हम समय में कहीं खो ना जायें; क्योंकि ज़ादातर हम अपनी चीज़ो को अधूरा ही छोड़ देते हैं।

अगर आपको ये नहीं पता कि आपकी जड़े क्या थी और यहाँ तक कैसे पहुँचे, तो आप एक मज़बूत भविष्य का निर्माण कैसे करोगे ? बिना मज़बूत आधार के एक इमारत मज़बूत नहीं होती। उसी तरह, अगर एक पिरामिड बनाने के लिये, आपको पता होना चाहिए कि उसके लिए क्या आवश्यक है।

हमारे शिक्षा प्रणाली में बहुत समस्याएं हैं, जिससे हमारे वक़्त, पैसे और अक्लमंदी  की बहुत बरबादी होती हैं। जैसे कि

रट्टा मारना: रट्टा लगाने से हो सकता है कि अच्छे नंबर आ जाये, पर इससे सही तर्क-वितर्क करने जैसा दिमाग विकसित नहीं होता।

कम वेतन और ज़रूरत से जादा काम: जिस वजह से योग्य शिक्षक इस नौकरी के लिए कम एप्लाई/आवेदन-पत्र देते हैं। जो कम वेतन पर काम करते हैं, उनके परिवार को बहुत संभलकर खर्च करना पड़ता है और बहुत संघर्ष करना पड़ता है। कई बार इसी वजह से कुछ बेईमान हो जाते है और हम शिक्षा प्रणाली पर जादा कुछ करते भी नहीं। ऐसे हालातों में हम एक भी लायक छात्र कैसे तैयार करेंगे ?

कम अशिक्षित शिक्षक: ज़ादातर ऐसे शिक्षकों को विषय ठीक से समझ नहीं आता और इसलिए ना समझा पाते हैं। जिसके कारण बच्चों का मूल-आधार ही कमज़ोर रह जाता है और उनकी पढ़ाई लिखाई में रूचि कम हो जाती है। कुछ लोग असफल हो जाते, तो कुछ लोग नक़ल करके पास हो जाते है। पर ज़ादातर को ठीक काम नहीं मिलता और कई  बार तो आर्थिक रूप से कमजोर रह जाते है।

हमारी आदत है कि हम लोग पूरी ज़िंदगी ,आधी जानकारी से समुन्द्र को पार करना चाहते हैं, पर याद है महाभारत का वो वीर अभिमन्यु ,अपने आधे ज्ञान के कारण ही चक्रव्यूह में फंसकर मारा गया था ।

विषयों का उन्नत स्तर का ना होना: विषयों का स्तर उन्नत ना होने के कारण छात्रों का मानसिक दृष्टिकोण पिछड़ा ही रह जाता है और ज्यादातर ऐसा पढ़ाया जाता है जो जाति ज़िंदगी में काम भी नहीं आता। 99 प्रतिशत छात्रों की प्रतिभा को महत्व और प्रोत्साहन नहीं दिया जाता, क्योंकि हमारे देश में इतनी सुविधा ही नहीं है और जिस विषय में उन्हें चाव है, वो उसमे आगे नहीं बढ़ पाते है।

रचनामकता में असहयोग: आज भी हमारे विषयों में पुराने तकनीकियों के बारे में जादा पढ़ाया नहीं जाता है, जबकि दुनिया उससे कई आगे बढ़ चुकी है। इसी वजह से अत्यधिक छात्र ना ही कोई नयी खोज कर पाते हैं, ना ही कुछ नया पन ला पाते हैं, ना ही कोई अविष्कार कर पाते हैं, और ना ही कुछ ज्यादा रचनात्मक कर पाते हैं।

करियर ऑप्शंस/आजीविका  विकल्प और अच्छी फेसिलिटीज़/सुविधाओ का ना होना: आज भी हमारे देश में जादा करियर ऑप्शंस/ आजीविका विकल्प नहीं है और पॉपुलेशन/ जनसंख्या जादा है। ऑप्शंस कम होने के कारण सारी जनसंख्या उसी के पीछे ज़ोर लगाती है, जिनमे से सभी को आगे जाकर नौकरी नहीं मिलती। अन्य करियर ऑप्शंस में कुछ मामलों में दूसरे विषयों में जादा सुविधाएं ना होने के कारण लोग देश छोड़कर चले जाते हैं और कुछ मामलों में कुछ क्षेत्रों में हमारे देश वासी माहिर नहीं होते तो हमे काम करने के लिये लोग बाहर से आउटसोर्स करने पड़ते हैं और दूसरी तरफ हमारे देश वासी बिना नौकरी के दर बदर भटकते हैं, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था पर गलत असर पड़ता है। कोई भी ट्रेनिंग कोर्स ही क्या कर लेगा, अगर अच्छी फेसिलिटीज़ ही नहीं है देश में। इसलिए सोच में बदलाव होना बहुत ज़रूरी है। हर चीज़ की कीमत का एहसास होना ज़रूरी है।

एडमिशन के लिए रिश्वत: ज़ादातर कॉलेज और स्कूलों में अब एडमिशन के वक्त रिश्वत ली जाती है, जो बहुत गलत है और घटिया मानसिकता को दर्शाता है। ऐसी मानसिकता के लोग क्या सिखायेंगे छात्रों को। इतनी सख्ती होनी चाहिए, कि कहीं भी ऐसा करने की हिम्मत ना हो। कई बार तो गरीबों की सारी पूंजी बच्चों को पढ़ाने में निकल जाती है और फिर भी कई बच्चे उस लायक नहीं बन पाते और सालो तक जैसे तैसे 2 वक्त की रोटी कमा-खा पाते हैं।

कई बार तो सुधार करने की बजाए उल्टा और नुकसान कर देते हैं। 25.8.2022 में हिंदुस्तान टाइम्स के आर्टिकल में था कि आसाम गवर्नमेंट ने 34 स्कूल बंद करने का ऑर्डर दिया था, क्योंकि वहाँ के सारे बच्चे 10वी के बोर्ड में फेल हो हए थे। इन्ही सब वजह से जब ये बच्चे दुनिया से मुकाबला करते हैं  तो ज़ादातर बच्चे खुद को उनसे पीछे पाते हैं और हौसला नहीं रख पाते। जिस वजह से देश का भी प्रभाव अच्छा नहीं पड़ता। आप ही बताइए ऐसे हालत में हम क्या अच्छी उम्मीद कर सकते हैं? क्या ऐसे में हम आशा कर सकते है कि दुनिया में भारत का नेतृत्व होगा ?

हीरे को जौहरी ही तराश सकता है, इसलिए हमे ये ध्यान में रखना चाहिए कि हमारी  शिक्षा प्रणाली और हमारे शिक्षकों में, इतनी काबिलियत हो कि वो हमारे भविष्य के हीरो को, एक सही आकार दे सकें। अगर हम इतना वक्त और पैसा लगाकर अपने आज को निखार नहीं पायेंगे तो अपने कल को कैसे बचाएँगे ? जब हम अपनी अहमियत समझेंगे, तभी तो दुनिया हमे काबिल समझेगी।

सिंगापुर में आज़ादी के बाद, उनकी शिक्षा प्रणाली एक वजह बनी उनकी ऊंचाइयों की”: आज़ादी के बाद सिंगापुर की शिक्षा प्रणाली पर बहुत ध्यान दिया गया। वो आगे तक का सोचकर चलते थे। उन्होंनेछात्रों के लिये अधिक मोनेटरी ग्रांट/मौद्रिक अनुवाद और कई तरह की मोनेटरी सहायता दी, जिससे ज्यादा से ज्यादा बच्चे पढ़-लिख सकें और समय के साथ-साथ उन्होंने और अधिक मौद्रिक सहायता की। हर जाति के लोगो के लिये बराबर के अवसर दिये जाते थे। वहाँ प्राथमिक शिक्षा मुफ्त में दी जाती थी। समय के अनुसार अध्ययन का समय बढ़ा दिया गया और शिक्षा प्रणाली के हर विषय में बदलाव होते गये। यहाँ तक कि मोरल एजुकेशन/ नैतिक शिक्षा को नियंत्रित करने के लिये कमैटी थी। वहाँ तो बहुत पहले ही व्यवसायिक नीति (करियर गाइडेंस) और पेस्टोरल केयर जैसी चीज़ लागू हो चुकी थी। वहाँ करीब 2 दशक पहले ही, अक्षम लोगो के लिये, कमैटी बन गई थी। वहाँ मिनिस्ट्री ऑफ़ एजुकेशन को नियंत्रण में रखने के लिए भी सर्विस कमैटी बनायी गई थी। उन्होंने वोकेशनल ट्रेनिंग/व्यवसायिक प्रशिक्षण पर भी अधिक ध्यान दिया।

जर्मनी” में आज़ादी के बाद उनकी शिक्षा प्रणाली एक वजह बनी उनकी ऊंचाइयों की: जर्मनी की शिक्षा प्रणाली की ख़ासियत यह है कि वहाँ, 6 से 16 साल तक के बच्चों के लिए जनरल/सामान्य एजुकेशन अनिवार्य होती है। जर्मनी में शिक्षा देश की ज़िम्मेदारी है, जो उनकी साव्यधानिक संप्रभुता का हिस्सा भी है। वहाँ के पब्लिक विद्यालय, प्राइवेट विद्यालय से बेहतर हैं। वहाँ मिनिस्ट्री ऑफ़ एजुकेशन/शिक्षकों को नियुक्त करते हैं। जर्मनी में व्यावसायिक प्रशिक्षण को ऑसबिल्डुंग (Ausbildung) कहते हैं। यह प्रणाली, छात्रों को पढ़ाई के दौरान व्यावहारिक काम के ज़रिए सीखने का मौका देती है। इसके ज़रिए, छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद रोज़गार पाने में आसानी होती है। वहाँ अक्षम बच्चों के लिए भी खास विद्यालय होते हैं, जहाँ के शिक्षक भी स्पेशलाइज्ड/विशेष और अनुभवी होते हैं। वहाँ पर आम विद्यालयों से जादा सुविधा होती है।

उद्योगपति रतन टाटा का शिक्षा प्रणाली में एक बहुत बड़ा योगदान रहा है: टाटा एजुकेशन एंड ट्रस्ट डेवलपमेंट ट्रस्ट ने 28 मिलियन का टाटा स्कालरशिप फण्ड दिया था, जिससे कोरनेल यूनिवर्सिटी भारत से गये अंडरग्रेजुएट को फाइनेंसियल वित्तीय सहायता दी । एक टाइम पर 20 छात्रों को स्कालरशिप मिली। हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में एग्जीक्यूटिव सेंटर बनाने के लिये 50 मिलियन दिये। इण्डियन स्कूल ऑफ़ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे में 950 मिलियन दान करे। और ऐसे ही कई अरबों खरबों लगाकर सहयोग दिया। पैसे वाले ये लोग जो कर रहे हैं, ये उनकी मर्ज़ी है। लेकिन ये फर्ज़ देश का है, कि वो इतना दे कि इंसान को मजबूरी में पढ़ाई छोड़ कर, पैसे कमाने का रास्ता न अपनाना पड़े।

अत्यधिक अनुभवी शिक्षक: गुरु एक बहुत बड़ा ओहदा और बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी होती है  इसीलिए ये हर किसी को नहीं दी जानी चाहिए। ये ज़रूरी है कि शिक्षकों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ वास्तविक व्यावहारिक अनुभव भी होना चाहिए। प्रशिक्षित शिक्षक होने से छात्रो का मानसिक विकास उच्च श्रेणी का होता है। वो उनके कौशल को बुलंदी देते हैं। इससे छात्रों का सीखने में उत्साह बना रहता है और वो कुछ बनने की चाह में बहुत मेहनत करते हैं और इस तरह वो बेहतर कल की एक मज़बूत नीव रखते हैं।

धमकाने वाला और नीचा दिखाने वाला गैंग/गिरोह: विद्यालय में किसी भी तरह के भेद-भाव और धौंस पर अंकुश रहना चाहिए। छात्रों को सबको एक समान इज्जत देनी आनी चाहिये। इससे अच्छा माहौल बना रहेगा और विकास जादा होगा।

सुनिश्चित करें तनाव-मुक्त माहौल: ये ज़रूरी है कि विद्यालय का माहौल अच्छा हो। इससे छात्र अधिक केंद्रित रहेंगे। बच्चों को रोचक तरीके से शिक्षा देनी चाहिए जिससे उनकी दिलचस्पी बनी रहे। नव-विचार को उत्साह के साथ समर्थन करना चाहिए। बच्चों को कुछ खाली समय दो जिससे उनका दिमाग ठीक से प्रक्रिया कर पाये और जिससे जितना उन्होंने सीखा है उससे वो अपनी रचनामकता का अन्वेषण/एक्स्प्लोर कर सके।

कम गृहकार्य: आजकल पढ़ने के लिए बहुत कुछ है और समय कम है। साथ में बच्चे कोचिंग भी लेते हैं। इसलिए ये ज़रूरी है कि बच्चे ज़्यादा से ज़्यादा कक्षा में ही सीखें ओर घर पर कम से कम उन्हें कुछ करना हो। जिससे उनका दिमाग  तरोताज़ा हो जाएगा और अगले दिन वो ताज़े दिमाग से पढ़ेंगे। कोशिश तो यही होनी चाहिए कि 100 प्रतिशत अवधि कक्षा में ही विस्तार से समझा दी जाये। ये जरुरी है कि बच्चे विद्यालय से आने के बाद परिवार के साथ समय बिताये, अपने बाकी शौक पूरे करें और अपने दिमाग को थोड़ा आराम दें, जिससे अगले दिन वो ताज़े दिमाग से पढें और सीखें।

सुनिश्चित करे कि शिक्षकों को पूरा आदर मिलना चाहिये: आजकल के ज़ादातर बच्चे बहुत हवा में उड़ते हैं और किसी को कुछ नहीं समझते। इसलिए ये ज़रूरी है कि उन्हें पता हो कि हर किसी को पूरी इज्जत दी जाये और शिक्षकों को पूरा आदर मिले।

कक्षा की क्षमता बनी रहनी चाहिए: कक्षा में सीमित छात्र-छात्राएं होने चाहिए जिससे शिक्षक हर बच्चे पर बराबर ध्यान दे सके और छात्र भी सही से पढ़ सकें।

संशोधन/रिवीज़न: ये ज़रूरी है कि जितना पढ़ाया गया है उसका संशोधन/रिवीज़न भी हो। ये याद रखने का अच्छा तरीका है और इसे ज़रूर करना चाहिये।

संसाधन: हर विद्यालय में पर्याप्त संसाधन होना चाहिए, जैसे: पर्याप्त शिक्षक, पर्याप्त भौतिक संसाधन, समय समय पर पर्याप्त सूचनात्मक सामग्री, और अच्छा माहौल।

करियर गाइडेंस: छात्रो का विद्यालय में बहुत पहले मार्गदर्शन कर देना चाहिए कि उन्हें किस विषय में आगे की पढ़ाई करनी चाहिए।

अवसर: दृष्टिकोण की विविधता (डाइवर्सिटी ऑफ़ व्यूपॉइंट) को हर तरीक़े से आवेशन/एक्स्प्लोर करने का पूरा अवसर दिया जाये। कुछ ऐसी गतिविधियाँ होनी चाहिए जिससे वो व्यावहारिक तौर से उसे लागू कर प्रयोग कर सके तथा और  बेहतर समझ सके।

अत्यधिक अनुभवी काउंसलर- हम सब जानते हैं कि आज के दौर में कितनी भाग-दौड़ और कितना मुक़ाबला है। साथ ही ऐसी बहुत सी चीज़े हैं जो बच्चों के दिमाग पर गहरा और गलत असर डालती हैं। आजकल कितना सुनने में आता है  कि बच्चे डिप्रेसिव/अवसाद ग्रस्त हो गये हैं, वो आरक्षित मानसिकता के हो गये हैं और सबसे बड़ी समस्या तो ये है कि छोटी-छोटी चीज़ो का सामना नहीं कर पाते। कितना सुनने में आता है कि हमारे युवा नशे में बेसुध रहते हैं। इसलिए हमे ज़रूरत है कि, रिलेशनशिप मैनेजमेंट और सोशल मैनेजमेंट जैसी चीज़े विद्यालय में पढ़ाई जाये। इसके लिए हफ्ते में एक से दो बार अत्यधिक अनुभवी काउन्सेलर का लेक्चर होना चाहिए, जो छात्रों पर विश्वास करे और उन्हें सही मार्गदर्शन दें। जिसके सहयोग से उन्हें रोजमर्रा के तनाव से राहत मिले। इतनी प्रेरणा मिले कि वे हर बाधा, हर घुटन, कैसा भी स्ट्रेस का समाधान खुद करने में सक्षम हो सकें।

शिक्षकों को अच्छा वेतन और कभी-कभी इनसेंटिव्स/प्रोत्साहन दें: ऐसा करने से उन्हें लगेगा कि वो जितनी मेहनत  कर रहे हैं, उतनी वसूल भी हो रही है। उनका उत्साह बढ़ेगा और काम में अधिक मन लगेगा। छुट्टियाँ कम लेंगे।जादा अच्छे से पढ़ायेंगे और लंबे समय तक जुड़े रहेंगे।

केस स्टडी/ मामले का अध्ययन:  हर विषय को ज्यादा से ज्यादा उद्धरणों से समझाना चाहिये। इससे छात्र सवालो और तर्क-वितर्क को, सही तरीके से जवाब देने में निपुण हो जाते हैं। वो इतने आत्मविश्वासी हो जाते कि उन्हें परीक्षाओं और प्रतियोगिताओं से डर नहीं लगता। बल्कि वो उत्साहित रहते है कि कब उन्हें अपना हुनर दिखाने का मौका मिलेगा।

ईनाम: अच्छा परफॉर्म करने पर किसी भी तरह से छात्रों को ईनाम देकर उन्हें प्रोत्साहित करे, उनका उत्साह बढ़ाएं और उन्हें और अच्छा परफॉर्म करने के लिए प्रेरित करें।

हमारी संस्कृति के बारे में पढ़ाएं: छात्रों को ये ज़रूर पता होना चाहिए कि क्या था हमारा इतिहास। ये कहाँ  से शुरू हुआ, और हम कैसे यहाँ तक पहुँचे। हमारे भगवानों के बारे में, हमारी धरती पे पैदा हुए महापुरुषों के बारे में, पता होना चाहिए। कैसे लोगो ने इतिहास में तरक्की की। सीख लें उनकी गलतियों से। “जो इतिहास से नहीं सीखता, उसे इतिहास को दोबारा दोहराना पड़ता है, और फिर समय उन्हें वक़्त से कहीं पीछे धकेल देता है।”

ध्यान और योग: ये मस्तिष्क को शांत रखने के लिए बहुत ज़रूरी है। इससे आत्मा जागरूक और मज़बूत बनती है। इससे वो खुद पर नियंत्रण रखना बहुत जल्दी सीख जाते है। अनुशासित बन जाते है और धीरज रखना भी आ जाता है।

स्पोर्ट्स/खेल: खेल का बहुत अधिक महत्व होता है। इससे बच्चो में अधिक ऊर्जा रहती है और वो तंदरुस्त रहते हैं। बीमारियो से दूर रहते हैं। इससे छात्रों की मानसिकता स्वस्थ होती है। वो निडर और फौलादी बन जाते हैं और इसकी वजह से वो हर क्षेत्र में बेहतर उत्पादन करते हैं। आज AI/आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के कारण लोग कहीं खोते जा रहे हैं। कारण ये भी है कि विद्यालय में ख़ेल-कूद की जादा सुविधाये नहीं हैं। ना अच्छे कोच/खेल शिक्षक हैं, ना विद्यालय उसमे ज़रूरी  समय लगाता है। छोटे शहरों में तो हालात बहुत ही ज्यादा बुरे है। कहीं कहीं बस 1-2 खेलों के लिए ही सुविधाएं हैं और वो भी ठीक से नहीं सिखा पाते। पर ज़रूरत ये है कि हर विद्यालय में हर ख़ेल की अच्छी से अच्छी सुविधाएं हो और उन्हें इतना तैयार कर दिया जाये कि वे विद्यालय को विदेश से मेडल जीता कर दें इसलिए खेल हमारे शिक्षा-प्रणाली का एक बहुत अहम हिस्सा होना चाहिये।

हमारी सृष्टि की बुनियादी जानकारी: जिससे हम कुदरत को थोड़ा गहराई से समझ सकें। थोड़ा वैदिक ज्ञान, थोड़ा जड़ीबूटी ज्ञान, थोड़ा ज्योतिष ज्ञान आदि सिखाना चाहिये। जिससे छोटी-मोटी रोज़ाना की मुसीबत को हम खुद ही सुलझा पाएं। ये गुलामी से पहले भी लोगो को विद्यालय में सिखाया जाता था, तो अब क्यों नहीं?

हिन्दी और संस्कृत का महत्व: ये ठीक है कि आजकल अंग्रेज़ी में छात्रो की रुचि ज्यादा है। पर ये ठीक नहीं है कि आज बच्चे हिन्दी और संस्कृत ठीक से ना बोल सकते हैं, ना लिख सकते हैं, और मज़े की बात तो ये है कि उच्च कोटि की हिन्दी तो समझ भी नहीं पाते हैं। हमारे ग्रंथों तक को ठीक से पढ़ नहीं पाते हैं। हिन्दी और संस्कृत ठीक से ना आना फैशन नहीं बल्कि शर्म की बात है। अंग्रेज चले गये, और हमारा देश उनकी सोच का अभी भी ग़ुलाम हैं। अपने साहित्य पर नियंत्रण होने से, हमारी संस्कृति बरक़रार रहेगी। ख़ुद विश्वास करोगे तो ही तो दूसरा देश तुम्हारी गणना करेगा। इतना मज़बूत बनो कि कल बाहर के देशों को हमसे व्यापार करते समय हिन्दी सीखनी पड़े और ये किस्सा आम हो जाये।

अक्षम/डिसेबल्ड बच्चों के लिए प्रावधान: अक्षम बच्चों के लिये थोड़े बहुत प्रावधान हैं, पर वो सिर्फ नाम के लिए हैं। वहाँ अच्छी सुविधाएं, अच्छे शिक्षकों और एक अच्छे माहौल का होना बहुत अनिवार्य है।

छात्रों को ये पता होना चाहिए कि उन्हें क्या पढ़ाया जा रहा और क्यों पढ़ाया जा रहा है और बड़े होकर वो उन्हें कैसे और कितना काम आयेगा। इतिहास से लेकर और आज मंगल ग्रह पहुँचने तक, उन्हें सबको गहराई की समझ होनी चाहिए। अच्छी बाते सीखेंगे तो अच्छी बाते ही सिखायेंगे। जहाँ जाएँगे अच्छा माहौल बनायेंगे। जहां कहीं भी काम करेंगे वहाँ खुद की और आस-पास की उन्नति होगी।

प्रधानाचार्य से लेकर, वाईस चाँसलर तक, ट्रस्टीज़ तक, एजुकेशन बोर्ड तक, एजुकेशन मिनिस्टर तक; सबको मिलकर एक साथ काम करने की ज़रूरत है। ज़रूरत है कि समय के हिसाब से शिक्षा-प्रणाली को जल्द से जल्द सही आकार दें जिससे वो आज में लगे पैसे और वक़्त का सही से उपयोग कर सकें। जिससे वो युवाओं का दिमाग़ सही दिशा में चैनलाइज़ कर सकें और एक सुनहरा और मज़बूत भविष्य का आग़ाज़ कर सकें।

“गलतियों पर ऐसे ना डॉटें कि जैसे कोई गुनाह कर दिया हो और कुछ अलग करने पर उन्हें शाबाशी दे। इससे उनमे  उत्साह बढ़ेगा…।”

“काम करो, पर ठीक से योजना बनाकर। नयापन लाओ और जियो बेहतर आज में और आने वाले कल में…।”

“अगर हमारी शिक्षा प्रणाली उच्च कोटि की होगी तो देश उन्नति करेगा और इकोनॉमिक ग्रोथ/आर्थिक विकास भी होगा…।”

 

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