जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने 39 साल पहले नाबालिग से दुष्कर्म का प्रयास करने के मामले में अभियुक्त को 33 साल पहले निचली अदालत से मिली पांच साल की सजा के आदेश में दखल से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने अभियुक्त को कहा है कि वह बाकी की सजा भुगतने के लिए सरेंडर करे। अदालत ने कहा कि घटना को लेकर पीडिता के बयानों में कोई भी बदलाव नहीं आया है, चाहे बचाव पक्ष ने लंबी जिरह की हो। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश अभियुक्त की 32 साल पुरानी आपराधिक अपील को निस्तारित करते हुए दिए।
अदालत ने कहा कि साल 1985 में पांच साल की पीडिता के साथ अपराध घटित हुआ था और उसने 11 साल की उम्र के समय बयान दिए थे, लेकिन उसकी साक्ष्य में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। ऐसे में अपीलार्थी मामले को झूठा बताने को लेकर पेश तथ्यों को साबित करने में असफल रहा है। अदालत ने कहा कि पीडिता के बयान को एफएसएल रिपोर्ट से जोडकर देखने पर जोर देते हुए कहा कि केवल पीडिता के दुष्कर्म का प्रयास करने के बारे में कुछ नहीं बताने पर ही घटना नहीं होने का निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। अपील में अधिवक्ता प्रणव पारीक ने बताया कि साल 1991 में उसे नाबालिग से दुष्कर्म का प्रयास के मामले में निचली अदालत ने सजा सुनाई थी।
जबकि अभियोजन पक्ष का पूरा मामला केवल पीडिता की गवाही पर आधारित था और उसके बयानों में भी विरोधाभास था। ऐसे में निचली अदालत के आदेश को रद्द कर उसे दोषमुक्त किया जाए। जिसका विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष की ओर से कहा गया कि एफएसएल रिपोर्ट से स्पष्ट है कि अभियुक्त ने अपराध किया है। ऐसे में निचली अदालत के आदेश में दखल नहीं दिया जाना चाहिए। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने निचली अदालत के आदेश में दखल से इनकार करते हुए अभियुक्त को शेष सजा भुगतने के लिए सरेंडर करने को कहा है।