बसंत पंचमी जिसे अब मुख्य रूप से सरस्वती पूजा का पर्व माना जाता है, अपने मूल रूप में यह केवल सरस्वती यानी कि ज्ञान ही नहीं, बल्कि धन-शक्ति और प्रेम अर्थात माता लक्ष्मी, माँ महाकाली और मदन देवता की कृपा प्राप्ति का भी पर्व है। यह बसंतोत्सव के आरंभ का पर्व है। प्राचीनकाल में इसी दिन गुलाल उड़ाकर बसंतोत्सव की शुरुआत की जाती थी , जो कि होली तक चलता था। चूँकि यह सृष्टि के निर्माण के साथ-साथ माता सरस्वती के प्रादुर्भाव का भी पर्व है, इसीलिए इस दिन सभी शक्तियाँ माता सरस्वती में समाहित मानी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माँ सरस्वती की पूजा से ही सभी सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।
बसंत पंचमी को वर्ष के उन पाँच स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में गिना जाता है जब सभी तरह के शुभ कार्य शुरू करना प्रशस्त माना जाता है। इस दिन कोई नया शुभ कार्य शुरू करने के लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती। इस बार बसंत पंचमी 14 फरवरी को है और इस दिन रेवती नक्षत्र और रवि योग भी है। यह सभी कुयोगों का नाश करने वाला तथा शुभ कार्यों का पूर्ण फल देने वाला है।
सरस्वती का आविर्भाव
भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण इसी दिन किया था। सृष्टि की रचना करके जब उन्होंने संसार की ओर देखा तो उन्हें कुछ कमी का अनुभव हुआ। यह कमी वाणी की थी। वाणी न होने के कारण संसार में कोई संवाद नहीं था। चारों तरफ मौन पसरा था। तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से अनुमति लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल छिड़कने से एक देवी प्रकट हुईं। यह देवी श्वेत कमल पर विराजमान थीं और उनके हाथ में वीणा थी। भगवान ब्रह्मा ने उनसे कुछ बजाने का अनुरोध किया ताकि पृथ्वी पर सब स्वर का आविर्भाव हो। देवी ने संगीत बजाना शुरू कर दिया। तभी से उन्हें वीणावादिनी के नाम से जाना जाने लगा। वही वाणी और ज्ञान की देवी हैं। देवी सरस्वती ने ही सभी को वाणी, बुद्धि, बल और तेज प्रदान किया।
युवाओं का उत्सव
यह संयोग ही है कि इस बार बसंत पंचमी 14 फरवरी को है। 14 फरवरी को इधर कुछ वर्षों से भारत में भी प्रेमी जोड़ों के बीच इसे एक त्योहार जैसा माना जाने लगा है। यह मूल रूप से संत वेलेंटाइन की याद में पश्चिम में मनाया जाता रहा है। लेकिन बसंत पंचमी के रूप में भारत के लोग कई हजार साल पूर्व से वास्तव में युवा उत्सव ही मनाते आ रहे हैं। भारत में मान्यता है कि प्रेम और काम के देवता मदन या कामदेव और उनकी पत्नी रति इसी दिन पृथ्वी पर उतरते हैं। इसीलिए इस दिन कामदेव और रति की भी पूजा का विधान है। यही कारण है कि विवाह से जुड़ी खरीदारी के लिए यह दिन सबसे शुभ माना जाता है। विवाह का जोड़ा, गहने और इससे जुड़े अन्य सामान इस दिन खरीदने से सौभाग्य बढ़ता है। प्राचीनकाल में इसी दिन से शुरू होने वाले बसंतोत्सव के दौरान युवक-युवतियाँ अपनी इच्छा से अपना जीवनसाथी चुनते थे। प्राचीन भारत में इसका वही महत्त्व रहा है जो आज वेलेंटाइन डे का माना जाता है।
बसंत पंचमी की पूजा
बसंत पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त 14 फरवरी को सुबह 7 बजकर 1 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। इस दिन पूजा में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
य बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा की जाती है। माँ सरस्वती को पीला रंग बेहद प्रिय है। इसलिए इस दिन माता सरस्वती को पीले फूलों की माला चढ़ाना शुभ होता है। आज के दिन दरवाजे पर पीले फूल के तोरण टाँगने से घर पर माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती दोनों की कृपा मिलती है। इस दिन कपड़े भी पीले रंग के पहनने चाहिए।
बसंत पंचमी के दिन घर में मोरपंखी का पौधा लाना भी शुभ होता है। इस पौधे को घर की पूर्व दिशा में जोड़े में लगाने से बहुत लाभ मिलता है। इसे विद्या का पौधा भी माना जाता है। इसे लगाने से बच्चों पर माता सरस्वती की कृपा बनी रहती है।
अगर आप संगीत प्रेमी या संगीत के साधक हैं तो बसंत पंचमी के दिन कोई छोटा सा वाद्य यंत्र खरीद कर अपने घर लाएँ। इस दिन माता सरस्वती को एक छोटी सी बाँसुरी चढ़ाकर भी आप प्रसन्न कर सकते हैं। संगीत की शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी ये दिन बहुत शुभ होता है।
जिन बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगता है उनसे माता सरस्वती की पूजा कराने से उनमें एकाग्रता आती है। अगर कर सकें तो उनसे सरस्वती कवच का पाठ कराएँ, अन्यथा उन्हें सुनाएँ।
-इष्ट देव सांकृत्यायन