राष्ट्रीय महिला दिवस के इस महत्वपूर्ण दिन पर, हमें महिलाओं के सम्मान और स्थान को महसूस करने का अवसर मिलता है। यह दिन उनकी प्रेरणा, उनके साहस और उनकी सच्ची समर्पण को सलाम करने का होता है। महिलाएं हमारे समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे घर की आधार होती हैं, समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपने पूरे साहस और समर्पण के साथ अपना योगदान देती हैं। वे बेटियों की शिक्षा, परिवार का प्रबंधन, और उनके उद्योगों में सक्रियता के माध्यम से समाज को प्रेरित करती हैं। हालांकि, हमारे समाज में अभी भी कई क्षेत्र हैं जहां महिलाओं को समानता और अधिकारों की आवश्यकता है। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक स्वतंत्रता के क्षेत्र में अधिक समान अवसर मिलने चाहिए।
समाज को महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और हिंसा के खिलाफ लडऩे में भी एकत्रित होना चाहिए। इस राष्ट्रीय महिला दिवस पर, हमें महिलाओं के साथ उनके अधिकारों का समर्थन करना और समाज में समानता को प्रोत्साहित करने का संकल्प लेना चाहिए। एक समृद्ध और समान समाज के लिए, महिलाओं को समाज में उच्चतम स्थान और सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए।
भारतीय राष्ट्रीय महिला दिवस हर प्रतिवर्ष 13 फरवरी को सरोजिनी नायडू की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। सरोजिनी नायडू भारत की प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी व कवयित्री थी, उन्हें भारत कोकिला यानी नाइटिंगेल ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। वे आजाद भारत की पहली महिला राज्यपाल भी रही हैं। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ देश को आजादी दिलाने के लिए हुए स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका विशिष्ट रही है। वे देश की प्रत्येक महिला के लिए प्रेरणा है। इस दिन के अवसर पर, हम सभी को एक समृद्ध और समान समाज की दिशा में आगे बढऩे का संकल्प लेना चाहिए। यह महिलाओं के सम्मान और समर्थन का प्रतीक है और हमें सभी को इस दिशा में अपना योगदान देना चाहिए। महिलाओं को सशक्त बनाना हमारे समाज की प्राथमिकता होनी चाहिए, और हम सभी को इस काम में योगदान देना चाहिए। एक समृद्ध और समान समाज के लिए, महिलाओं को समाज में उच्चतम स्थान और सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए। इस दिन के अवसर पर, हम सभी को एक समृद्ध और समान समाज की दिशा में आगे बढऩे का संकल्प लेना चाहिए। यह महिलाओं के सम्मान और समर्थन का प्रतीक है और हमें सभी को इस दिशा में अपना योगदान देना चाहिए।
अब दौर आ गया है कि महिलाओं के उत्थान एवं विकास के लिए हम सबको अपनी कुत्सित एवं रूढि़वादी मानसिकता से बाहर निकलना होगा। उन्हें समानता के साथ-साथ शिक्षा, व्यवसाय, नौकरी व अन्य सभी स्थानों पर समान दर्जा देना होगा। भारतीय महिलाओं ने देश की प्रगति में अपना अधिकाधिक योगदान देकर देश को शिखर पर पहुंचाने हेतु सदैव तत्पर रही हैं। सच पूछो तो महिला शक्ति ही वह सामाजिक शक्ति है, जिनका विकास बहुत जरूरी है। महिलाओं के उत्थान के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही नीतियों में पूर्ण सहयोग देकर उसको परिणाम तक पहुंचाना हम सब का कर्तव्य बनता है।
समाज में केवल पाश्चात्य व आधुनिकता को अपनाना ही महिला समानता का स्वरूप नहीं है, बल्कि महिला समानता में महिलाओं के व्यक्तित्व का विकास, शिक्षा प्राप्ति, व्यवसाय, परिवार में निर्णय को समान अवसर मिले, वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो, शारीरिक व भावनात्मक रूप से अपने को सुरक्षित महसूस करें तथा सभी रूढिवादी व अप्रासंगिक रिवाजों, बंधनों से पूरी तरह स्वतंत्र हो। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जो जाति महिला शक्ति का सम्मान करना नहीं जानती, वह न तो अतीत में उन्नति कर सकी, और न आगे कभी कर पायेगी। हमें भारतीय सनातन संस्कृति के यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता को स्वीकार करते हुए महिलाओं को आगे बढ़ाने में सहयोग करना चाहिए।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महिला समानता की आवश्यकता को न केवल समाज, परिवारों बल्कि सरकार के स्तर से भी अनुभव किया जा सकता है। हमारे देश के संविधान में महिला और पुरूष के आधार पर नागरिकों में भेद नहीं किया गया है, बल्कि समान अवसर प्रदान किए गए है। भारत में मतदान का अधिकार महिलाओं को भी दिया गया जो कि स्वयं में एक क्रांतिकारी कदम था। यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि अमेरिका एवं यूरोप के विभिन्न देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित होने के कई दशकों बाद महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया गया था। केंद्र व राज्य सरकार के स्तर से महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं यथा नि:शुल्क शिक्षा व्यवस्था, स्कूटी वितरण, मोबाइल वितरण, अतिरिक्त पोषाहार, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना, तथा स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना, छात्रवृति तथा व्यवसायिक प्रशिक्षण देने आदि के माध्यम से महिलाओं को सहायता दी जा रही है। शैक्षिक, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न कार्य किये जा रहे हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम भी आ रहे है।
इसकी मिसाल कुछ राज्यों में हुए पंचायत चुनाव, जिनमें पचास प्रतिशत तक पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक शानदार पहल साबित हुआ है। इसके बावजूद अभी भी महिलाओं के संपूर्ण समानता की दिशा में बहुत अधिक प्रयासों की आवश्यकता महसूस होती है। आज भी महिला को वास्तव में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय प्रदान दिये जाने हेतु समाज में परिवर्तन लाकर महिला के उत्थान एवं विकास को समझना होगा, सभी महिला समानता की लड़ाई साकार रूप ले सकती है।
महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, सम्मान, समानता, समाज में सम्मान की जब भी बात उठती है, तब कुछ रिपोर्ट व आंकड़ों को आधार बनाकर निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश की जाती रही है। लेकिन हकीकत में कितना सुधार आया है? यह विचारणीय है। बड़े बड़े दावों से महिलाओं ने समानता का कितना लक्ष्य हासिल किया है, यह सामने आने से ही किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है।
-डा. वीरेन्द्र भाटी मंगल