किसी ने ठीक ही कहा है कि अगर आपकी सूरत अच्छी नहीं है तो अपने स्वभाव को सुन्दर बना लो। और यह वास्तविक तथ्य है। जिसके असंख्य उदाहरण हमें अपने ही समाज में अपने आसपास ही देखने को मिल जाते हैं। ऐसे बहुत से लोग जो प्रत्यक्ष रूप से सुन्दर नहीं दिखते जबकि आन्तरिक रूप से वह असीम सुन्दर होते हैं। अपने सुन्दर स्वभाव व आचरण के कारण वे सभी में लोकप्रिय होते हैं और सभी उनके स्वभाव की सुन्दरता के कारण उनसे मिलना उनसे बात करना, उन्हें अपना मित्र बनाना पसंद करते हैं।
जबकि इसके अपवाद स्वरूप ऐसे लोगों का भी हमारे समाज में कोई अभाव नहीं है जो सुन्दर व्यक्तित्व के स्वामी होने के उपरान्त भी समाज में अपनी कोई विशेष छवि या पहचान नहीं बना पाते, उनके बारे में यही कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति का स्वभाव कितना बुरा है, बहुत घमण्डी और क्रोधी स्वभाव का है। उसे तो बात करने तक का ढंग नहीं आता वगैरा-वगैरा। इस कथन में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि स्वभाव की सुन्दरता स्थायी सुन्दरता होती है जिसका प्रभाव अन्य लोगों पर अधिक समय तक रहता है। जबकि इसके विपरीत शारीरिक सौन्दर्य का प्रभाव क्षणिक और अस्थायी होता है।
यह वास्तविकता है कि मनुष्य वैसा ही बन जाता है जैसे अपने मन में विचार रखता है। मनुष्य समाज में अपनी छवि आप बनाता है और यह उसके हाथ में है कि वह अपनी छवि को अपनी वाणी अपने आचरण अपने स्वभाव से उन्नत बनाता है या धूमिल करता है? सुन्दर व्यक्ति का यदि स्वभाव भी सुन्दर है तो कहना ही क्या? वहाँ पर ”सोने पे सुहागा जैसी कहावत सिद्ध होगी। प्रत्येक मनुष्य को यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि शरीर चाहे सुन्दर हो न हो मन अवश्य सुन्दर होना चाहिए।
यदि दुर्भाग्यवश मन सुन्दर नहीं है तो प्रयास करना चाहिए कि मन सुन्दर हो जाये। क्योंकि मनुष्य के शरीर का सुन्दर होना इतना महत्व नहीं रखता जितना कि उसके मन का सुन्दर होना महत्व रखता है।
मन को सुन्दर बनाने में पवित्र विचारों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह अपने मन में पवित्र विचारों को आश्रय दे क्योंकि सुन्दर स्वभाव ही उत्तम व्यक्तित्व की कसौटी है।
फौजिया नसीम ”शाद-विभूति फीचर्स