Saturday, November 23, 2024

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला,अब LMV लाइसेंस धारक भी चला सकते हैं 7500 किलोग्राम तक के कमर्शियल वाहन

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का अर्थ है कि अगर आपके पास हल्के मोटर वाहन (LMV) का ड्राइविंग लाइसेंस है, तो आप 7,500 किलो तक वजन वाले वाहनों, जैसे कि टाटा 407 या इस तरह के अन्य हल्के ट्रकों को कानूनी रूप से चला सकते हैं।

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इसका मतलब यह है कि ऐसे वाहनों को चलाने के लिए अब अलग से ट्रांसपोर्ट लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है, जो खासकर बीमा कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण है। पहले, बीमा कंपनियाँ ऐसे मामलों में दावा खारिज कर देती थीं, जहाँ दुर्घटना का कारण वह चालक होता था जिसके पास केवल LMV लाइसेंस था, ट्रांसपोर्ट लाइसेंस नहीं।

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मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में यह निर्णय बीमा दावों के मामलों में पारदर्शिता और लाइसेंसिंग के नियमों में स्पष्टता लाता है।

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सुप्रीम कोर्ट की पाँच न्यायाधीशों की बेंच ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसे न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने लिखा है। इस बेंच में न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिंम्हा, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ शामिल थे। न्यायमूर्ति रॉय ने अपने फैसले में कहा कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो यह दर्शाता हो कि एलएमवी (LMV) लाइसेंस धारक सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी का कारण बनते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एलएमवी लाइसेंस धारक, जो सड़क पर लंबा समय बिताते हैं, की वैध शिकायतों को तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए।

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यह निर्णय बीते 21 अगस्त को सुरक्षित रखा गया था, जिसमें अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अदालत को सूचित किया था कि मोटर वाहन (एमवी) अधिनियम, 1988 में संशोधन का परामर्श लगभग पूरा हो चुका है। अदालत ने केंद्र सरकार से इस संशोधन प्रक्रिया में तेजी लाने का आग्रह किया है ताकि कानून में उचित बदलाव किए जा सकें और सड़क सुरक्षा व लाइसेंसिंग से जुड़े प्रावधान और अधिक स्पष्ट हो सकें।

 

यह मामला एलएमवी (LMV) लाइसेंस धारकों द्वारा ट्रांसपोर्ट वाहनों के संचालन और उससे जुड़े बीमा दावों के विवादों से संबंधित है। बीमा कंपनियाँ अक्सर ऐसे दावों के भुगतान का विरोध करती थीं, यह तर्क देते हुए कि एलएमवी लाइसेंस वाले ड्राइवर कानूनी रूप से ट्रांसपोर्ट व्हीकल चलाने के लिए अधिकृत नहीं हैं। उनका यह भी कहना था कि अदालतें और मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MATC) आमतौर पर लाइसेंसिंग आवश्यकताओं की अनदेखी कर बीमाधारकों के पक्ष में निर्णय दे देते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद, बीमा कंपनियों को अब अपनी नीति में बदलाव करना होगा, क्योंकि यह फैसला स्पष्ट रूप से यह कहता है कि LMV लाइसेंस वाले ड्राइवर 7.5 टन तक के परिवहन वाहनों को कानूनी रूप से चला सकते हैं। इसका मतलब है कि बीमा कंपनियाँ अब ऐसे दावों को खारिज करने के बजाय स्वीकार करने के लिए बाध्य होंगी, क्योंकि सर्वोच्च अदालत ने इन वाहनों को चलाने के लिए LMV लाइसेंस को वैध माना है।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 7500 किलोग्राम से कम वजन वाले हल्के मोटर वाहनों (LMV) के लिए, ड्राइविंग लाइसेंस धारक को परिवहन वाहन चलाने के लिए किसी अतिरिक्त अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 10(2)(ई) इस बात को मान्यता देती है। इसका अर्थ है कि LMV लाइसेंस धारकों को ऐसे वाहनों के लिए ट्रांसपोर्ट लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी।
फैसले में यह भी कहा गया कि लाइसेंसिंग उद्देश्यों के लिए, LMV और ट्रांसपोर्ट व्हीकल पूरी तरह से अलग श्रेणियाँ नहीं हैं; दोनों के बीच एक आंशिक समानता है। हालांकि, ई-कार्ट और खतरनाक वस्तुओं के परिवहन वाले वाहनों के लिए अतिरिक्त मानक और अनुमति आवश्यक रहेगी।सुप्रीम कोर्ट ने धारा 3(1) के उस हिस्से पर भी ध्यान दिया जो ट्रांसपोर्ट व्हीकल के लिए विशिष्ट आवश्यकताओं पर जोर देता है। लेकिन धारा 2(21) के अनुसार LMV की परिभाषा इस प्रावधान को खत्म नहीं करती, इसलिए LMV लाइसेंस के दायरे में यह वाहन आते हैं।मोटर वाहन अधिनियम और नियमों के अनुसार, परिवहन वाहनों के लिए अतिरिक्त पात्रता केवल 7500 किलोग्राम से अधिक वजन वाले वाहनों, जैसे मध्यम और भारी मालवाहक व यात्री वाहनों पर लागू होती है।

मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2017) मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस अमिताभ रॉय, जस्टिस अरुण मिश्रा, और जस्टिस संजय किशन कौल शामिल थे, ने यह फैसला दिया था कि 7500 किलोग्राम से कम वजन वाले परिवहन वाहन चलाने के लिए हल्के मोटर वाहन (LMV) ड्राइविंग लाइसेंस धारकों को अलग से ट्रांसपोर्ट लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है। इस फैसले के तहत यह मान्यता दी गई थी कि LMV लाइसेंस धारक बिना किसी अतिरिक्त अनुमति के हल्के परिवहन वाहन चला सकते हैं।
हालांकि, 2022 में एक अन्य बेंच ने मुकुंद देवांगन मामले के इस सिद्धांत पर संदेह जताया और इस मुद्दे की पुनः समीक्षा करने के लिए इसे पांच जजों की संविधान पीठ को रेफर कर दिया। पाँच जजों की इस बेंच ने हाल ही में अपने फैसले में इस सिद्धांत की पुष्टि की है और स्पष्ट किया है कि 7500 किलोग्राम तक के हल्के मोटर वाहन चलाने के लिए LMV लाइसेंस पर्याप्त है, जिससे अब इस मुद्दे पर कानूनी स्थिति स्पष्ट हो गई है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश कर रहे थे, ने केंद्र सरकार से स्पष्ट करने को कहा था कि क्या हल्के मोटर वाहन (LMV) का लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति उसी वजन का परिवहन वाहन चला सकता है। केंद्र सरकार ने अदालत को जानकारी दी कि इस मुद्दे पर राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श चल रहा है और मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में संशोधन के लिए सुझाव लिए जा रहे हैं। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने बताया कि नीति में संभावित बदलावों पर राज्य सरकारों से परामर्श लगभग पूरा हो चुका है, लेकिन इस पर कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला था।
कोई निर्णय न हो पाने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का निपटारा मेरिट के आधार पर करने का निर्णय लिया। इसके बाद, अदालत ने 21 अगस्त को सुनवाई पूरी करके इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने बाद में अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया कि 7500 किलोग्राम तक के हल्के मोटर वाहन चलाने के लिए LMV लाइसेंस धारक को अतिरिक्त ट्रांसपोर्ट लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है, जिससे यह कानूनी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई है।
इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग (IFTRT) ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है, जिसमें हल्के मोटर वाहन (LMV) लाइसेंस धारकों को 7500 किलोग्राम तक के परिवहन वाहनों को चलाने की अनुमति दी गई है। IFTRT के सीनियर फेलो एस. पी. सिंह का मानना है कि इस फैसले से लाइट गुड्स व्हीकल के मालिकों और चालकों को काफी सहूलियत होगी, क्योंकि इससे उनके लिए अलग से ट्रांसपोर्ट लाइसेंस की आवश्यकता समाप्त हो गई है।सिंह ने यह भी संकेत दिया कि कैसे शक्तिशाली जनरल इंश्योरेंस कंपनियों की लॉबी ने सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित किया। जबकि मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों के तहत पहले से ही LMV लाइसेंस धारकों को हल्के परिवहन वाहनों को चलाने की अनुमति थी। इंश्योरेंस कंपनियों ने अपनी व्यावसायिक हितों के लिए यह मामला उठाया था ताकि ऐसे दावों को खारिज किया जा सके, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद बीमा दावों के निपटारे में अधिक स्पष्टता और पारदर्शिता आएगी।

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