आज महर्षि दयानन्द सरस्वती की 199वीं जन्म जयंती है। महर्षि ने अपने जीवन का बहुमूल्य भाग सच्चे धर्म की खोज में व्यतीत किया है। उन्होंने धार्मिक सुधार के विचार को प्राथमिकता देकर एक ऐसी संस्था स्थापित की, जिसका उद्देश्य था देश में सुधार करना तथा वेदों के मानव कल्याणकारी विचारों का प्रचार करना। उनका विचार किसी नये मत, पथ अथवा सम्प्रदाय की स्थापना नहीं था, अपितु उनका विचार तो पुरातन शुष्क वृक्ष को भरा-भरा करने का ही था।
महर्षि दयानन्द सरस्वती के पूर्व भारतवासी अपने को भूल चुके थे कि भारत कभी जगत गुरू था।
भारतीय संस्कृति की महत्ता का बिगुल जब स्वामी दयानन्द सरस्वती ने फूंका तो भारतीय समाज में नवचेतना और आत्म सम्मान के भाव जागृत हुए और भारतवासी यह अनुमान करने लगे कि उनके धर्म और संस्कृति का स्तर संसार में सर्वोच्च है। भारतवासी फिर से जग उठे।
भारतीयों में स्वाभिमान और राष्ट्र प्रेम जागृत हुआ। स्वधर्म, स्वभाषा और स्वदेश की आवाज ने कालान्तर में इस देश में स्वराज्य की आवाज बुलन्द की। यह भी सत्य है कि स्वतंत्रता आंदोलन के अधिकांश सत्याग्रही और क्रांतिकारी स्वामी दयानन्द द्वारा स्थापित आर्य समाज से प्रभावित थे।