Saturday, November 2, 2024

उत्तर प्रदेश में एससी-एसटी अधिकारियों की तैनाती की जानकारी दें : चंद्रशेखर आजाद

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में उपचुनाव से पहले एक बार फिर जाति की सियासत गरमा रही है। दलित वोट को लामबंद करने के लिए आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने कवायद तेज कर दी है। पार्टी अध्यक्ष और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने राज्य के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को पत्र लिखकर अपर मुख्य सचिव से लेकर थानेदार तक के पदों पर दलित अधिकारियों की तैनाती का हिसाब मांगा है। नगीना सांसद चंद्रशेखर ने इस पत्र की प्रति नियुक्ति विभाग, गृह विभाग और डीजीपी को भी भेजा है।

उन्होंने लिखा, “कई एससी-एसटी संगठनों द्वारा पूर्व में उठाए गए एक महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। प्रदेश की आबादी लगभग 25 करोड़ है। वर्तमान में प्रदेश में 75 जिले हैं। इस बड़ी जनसंख्या में तकरीबन 22 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की है। भारत के संविधान में जाति के आधार पर शोषण, अत्याचार और भेदभाव खत्म करने तथा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है।” उन्होंने लिखा, “मेरी चिंता के केंद्र में मेरा गृह राज्य उत्तर प्रदेश है क्योंकि यहां जाति आधारित उत्पीड़न, शोषण, अपराध और हिंसा की घटनाएं कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही है।

हैरत की बात है कि अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न होने पर वंचित वर्ग के पीड़ितों को थाने से बिना एफआईआर लिखे भगा देने की घटना, पुलिसकर्मियों द्वारा अभद्रता से पेश आने की घटना, एफआईआर दर्ज भी हो गई तो कमजोर धाराएं लगाने की घटना, पीड़ितों द्वारा दी गई तहरीर बदल देने की घटना प्रकाश में आती रहती है।” उन्होंने आगे लिखा कि उनकी पार्टी के पदाधिकारियों और उन्होंने खुद भी अनुभव किया है कि वंचित वर्ग के उत्पीड़न के मामलों में स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन का रवैया अत्यंत असंवेदनशील या आरोपी पक्ष की तरफ झुकाव का ही रहता है। किसी सभ्य समाज के निर्माण में यह स्थिति न सिर्फ बड़ी रुकावट बल्कि पीड़ादायक भी है। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश के नागरिकों को एक समान न्याय, जीने की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने के लिए विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका को पृथक-पृथक दायित्व दिए गए हैं।

इनमें से कार्यपालिका वह महत्वपूर्ण स्तंभ है जो स्थानीय स्तर पर वंचित वर्गों के शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न और हिंसा को रोकने का सबसे प्रभावी स्तंभ है। चंद्रशेखर ने पत्र में लिखा कि प्रदेश की प्रशासनिक सेवा और पुलिस प्रशासन में बैठे ज्यादातर अधिकारी कर्मचारी इस अन्याय, अत्याचार के खिलाफ गैर-जिम्मेदाराना रवैया रखते हैं। इस समस्या के मूल में जो सबसे बड़ा आरोप लगता है, वह है – निर्णय लेने के पदों पर वंचित वर्गों के अधिकारियों/कर्मचारियों/पुलिसकर्मियों को प्रतिनिधित्व न दिया जाना। दूसरे शब्दों में कहें तो जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक और थानाध्यक्षों की जाति देखकर नियुक्ति करना।

उन्होंने पत्र में लिखा है, “इसलिए संसद सदस्य होने के साथ ही गृह संबंधी मामलों की संसदीय समिति का सदस्य और एससी-एसटी कल्याण संबंधी संसदीय समिति का सदस्य होने के नाते मैं तथ्यों के साथ समझना चाहता हूं कि वास्तव में इन आरोपों में कितना दम है? उत्तर प्रदेश के विभित्र विभागों में कितने अपर मुख्य सचिव/मुख्य सचिव और सचिव एससी-एसटी वर्ग के तैनात हैं। राज्य के 75 जिलों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से कितने जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी कार्यरत हैं। प्रदेश के 18 मंडलों में कितने कमिश्नर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं? कितने जिलों में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक एससी-एसटी वर्ग के हैं।”

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय