लखनऊ। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो चुका है, लेकिन दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे का वर्चस्व स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इस संदेश संयुक्त प्रेस वार्ता में भी देखने को मिला, जब किसी पार्टी के कार्यालय पर नहीं, एक होटल में प्रेसवार्ता हुई। हालांकि इस गठबंधन में कांग्रेस को सीटें भले कम मिली हों, लेकिन शून्य की ओर जा रही कांग्रेस को ही इससे फायदा होने की उम्मीद है।
गठबंधन न होने की स्थिति में भी मुसलमान वोट उप्र में सपा को ही जाता। ऐसे में गठबंधन होने पर कांग्रेस को भी इसका फायदा मिल जाएगा। यदि कांग्रेस कुछ सीटें भी हासिल करने में सफल हो गयी तो इसके बाद के चुनाव में मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब हो सकती है। वहीं समाजवादी पार्टी का जनाधार इससे कम होने के आसार बढ़ेगे।
पिछले चुनावों पर नजर दौड़ाएं तो 2012 के चुनाव में कांग्रेस विधानसभा में 28 सीटें जीती थी। इससे पहले 2012 में कांग्रेस को 22 सीटें हासिल हुई थी, लेकिन 2017 में सपा-कांग्रेस का गठबंधन हुआ। उस समय नरेंद्र मोदी का प्रभाव विधानसभा चुनाव में भी सिर चढ़कर बोल रहा था। गठबंधन के बावजूद कांग्रेस 28 से सात सीटों पर आकर सिमट गयी। वहीं समाजवादी पार्टी 311 सीटों पर लड़कर 47 पर सीटें ही निकाल पायी। पिछले चुनाव की अपेक्षा उसकी 177 सीटें कम हो गयीं।
उस चुनाव में 105 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस को 54,16,540 वोट मिले थे अर्थात 6.25 प्रतिशत वोट ही कांग्रेस को मिला। गठबंधन के बावजूद समाजवादी पार्टी को 21.82 प्रतिशत वोट शेयर हुए थे। वहीं भाजपा ने 39.67 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 384 सीटें हासिल की थी। पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन था। यदि उस चुनाव का देखें तो समाजवादी पार्टी को 17.96 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस को 6.31 प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ था। यदि दोनों को मिला भी दिया जाय तो उप्र में 24.27 प्रतिशत हुआ, जो भाजपा को पिछले चुनाव में मिले 49.56 प्रतिशत से काफी कम है।
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक हर्षवर्धन त्रिपाठी का कहना है कि जब बसपा और सपा के गठबंधन में भाजपा का ज्यादा नुकसान नहीं हो पाया तो ऐसे में कांग्रेस तो उप्र में मृतप्राय पार्टी है। ऐसी स्थिति में इस गठबंधन को कोई विशेष असर पड़ने वाला नहीं है। इससे सिर्फ कांग्रेस को ही संजीवनी मिल सकती है, जिससे वह उप्र में सांस लेती रहे।