Friday, April 26, 2024

राम मंदिर निर्माण में नेहरु और गोरखपीठ का अवदान

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498 सालों के इंतजार के बाद आखिरकार वह शुभ घड़ी आ ही गई जब अयोध्या में भगवान राम ने अपनी जन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर में स्थान पा ही लिया। बताया जाता है कि इस आंदोलन की शुरुआत गोरक्षनाथ पीठ से हुई। यह विवाद 1855 से 1860 के बीच हल हो जाता, तब महंत गोपालनाथ ने क्रांतिकारी अमीर अली और आंदोलन में सक्रिय रहे बाबा रामचरण दास को साथ लिया और मंदिर विवाद हल करने की पहल शुरू की।

अमीर अली का मत था कि जन्मभूमि हिंदुओं को सौंप देना चाहिए लेकिन अंग्रेजों ने ऐसा नहीं होने दिया। अंग्रेजों ने अमीर अली और रामचरण दास को बागी घोषित कर 18 मार्च 1885 को फांसी पर लटका दिया। इस घटना ने लोगों को झकझोर दिया लेकिन लोग एकजुट होते रहे।

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राम मन्दिर बन जाने के बाद राजीव गांधी और उनके खानदान के योगदान के कांग्रेस कसीदे काढ रही है।  जगजाहिर है कि महात्मा गांधी की जिद पर प्रदेश कांग्रेस कमेटियों में से केवल एक द्वारा संस्तुति के बावजूद स्वयं को खुले आम ‘एक्सीडेंटल हिन्दू घोषित करने वाले मगर नाम के साथ पंडित लगाने वाले नेहरु प्रधानमंत्री बने। उनका कितना दोहरा चरित्र था, यह आगे की पंक्तियों से स्पष्ट हो जाएगा। प्रधानमंत्री बनने के बाद 12 नवंबर 1947 को तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने जूनागढ़ में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की घोषणा की।

गांधी जी इसके पक्ष में थे मगर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसके विरोध में थे, फिर भी गांधी जी और सरदार पटेल की जिद के चलते वह मंत्रिपरिषद की बैठक में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण से संबंधित परियोजना और राजकीय विश्लेषण की स्वीकृति का विरोध नहीं कर पाए।

जनवरी 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद मन्दिर का शिलान्यास हो जाने के बाद और दिसंबर 1950 में सरदार पटेल के देहांत के बाद नेहरू सोमनाथ मंदिर के खिलाफ मुखर हो गए। नेहरू ने न सिर्फ सोमनाथ मंदिर का विरोध किया अपितु दिसंबर 1949 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को बाबरी ढांचे से रामलला की मूर्ति को हटाने का आदेश भी दिया। हिंदू मंदिरों के प्रति अपनी नापसंदगी को नेहरू ने 17 मार्च 1959 को ललित कला अकादमी के तत्वावधान में भारतीय वास्तु कला पर आयोजित सेमिनार में यह कहकर प्रकट किया था कि कुछ दक्षिण के मंदिरों में मुझे उनकी सुंदरता के बावजूद नफरत उत्पन्न होती है।

मैं उन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता। क्यों? करता हूँ मैं, इसे समझा नहीं सकता लेकिन वह मेरी आत्मा को दबाते हैं। हैरानी नहीं कि 2007 में कांग्रेस नीत सरकार ने शीर्ष अदालत में शपथ पत्र देकर श्री राम को काल्पनिक चरित्र बता दिया था और अब राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार कर दिया। स्मरणीय है कि इसी 6 दिसम्बर को जो बाबरी ढाँचे के विध्वंस की तिथि है, कांग्रेसियों ने काले कपड़े पहन कर विरोध प्रकट भी किया था। तो यह तो था, रामलला मन्दिर के निर्माण में नेहरु और उनकी कांग्रेस का अवदान। अब बात करते हैं मन्दिर निर्माण में गोरख पीठ के योगदान की।

गोरखपीठ की महंत परंपरा की पांच पीढिय़ों ने मन्दिर निर्माण में वृहद अध्याय जोड़ा है। महंत गोपालनाथ 1855 से 85 तक मंदिर को लेकर मुखर रहे। योगीराज गंभीरनाथ वर्ष 1900 से 1917 तक सक्रिय रहे। इसके बाद जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन को निर्णायक स्थिति में पहुंचाने में महंत दिग्विजयनाथ, महंत अवैद्यनाथ और योगी आदित्यनाथ ने बढ़चढ़ कर योगदान दिया। योगी आदित्यनाथ ने जन्मभूमि आंदोलन को वैश्विक स्वरूप देकर भी चैन नहीं लिया बल्कि अब भी अयोध्या को दिव्यरूप देने में अहर्निश लगे हैं।

महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1934 से मंदिर आंदोलन को प्रखर और प्रबल बनाने का प्रयास शुरू किया। सनातन स्वाभिमान से जोड़ते हुए साधु-संतों को एक मंच पर ले आए। वह अयोध्या में श्रीरामलला के प्रकटीकरण की तिथि 22 दिसंबर, 1949 से नौ दिन पहले ही अयोध्या पहुंच गए और अखंड रामायण का पाठ शुरू कर दिया। प्राकट्य के समय दिग्विजयनाथ वहां मौजूद थे। यहीं से आंदोलन को धार मिली। प्रकटीकरण का प्रकरण न्यायालय पहुंचा।

परिणामस्वरूप विवादित स्थल पर ताला जड़ दिया गया लेकिन न्यायालय से दैनिक पूजा की अनुमति पुजारियों को मिल गई। कथित धर्मनिरपेक्षों के प्रयास जारी रहे,  महंत दिग्विजयनाथ की रणनीति ने उन्हें नाकाम कर दिया। प्रकटीकरण के बाद महंत दिग्विजयनाथ 1969 में ब्रह्मलीन होने तक श्री राम जन्मभूमि के उद्धार के प्रति संकल्पित रहे।

श्रीमत्पंचखंड पीठाधीश्वर आचार्य धर्मेंद्र ने एक बार कहा था- ‘श्रीराम जन्मभूमि के उद्धार के मूल में महंत दिग्विजयनाथ की भूमिका वही रही, जो किसी मोबाइल सेट में उसके सिमकार्ड की होती है। अपने गुरु के प्रयासों को फलीभूत करने का दायित्व संभाला महंत अवैद्यनाथ ने। शैव-वैष्णव के धर्माचार्यों को एक मंच पर लाने के बाद वर्ष 1984 में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया और आजीवन अध्यक्ष रहे।

सात अक्टूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ के लिए महंत अवैद्यनाथ के नेतृत्व में धर्मयात्रा निकाली गई। 14 अक्टूबर को लखनऊ पहुंची, धर्मयात्रा ने सम्मेलन का स्वरूप ले लिया। बेगम हजरत महल पार्क में आयोजित सम्मेलन में 10 लाख लोगों ने हिस्सा लिया। महंत अवैद्यनाथ भव्य मंदिर निर्माण के संकल्प के साथ सोते-जागते थे। महंत जी के ब्रह्मलीन होने से कुछ समय पहले जब आरएसएस के तत्कालीन मुखिया केसी सुदर्शन उनसे मिलने आए तो वह बार-बार कहते रहे कि जीते-जी राम मंदिर बनते देखना चाहते हैं।

नाथ पंथ की आधुनिक पांच पीढिय़ों ने सड़क-संसद और न्यायालय तक श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर की लड़ाई लड़ी है। नाथ पंथ के पीठाधीश्वरों ने श्रीराम को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीक माना है। श्रीराम मंदिर उनके लिए राष्ट्र निर्माण का आंदोलन था। इन पीठाधीश्वरों ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को सिर्फ लड़ा नहीं बल्कि उसे जिया है। गुरु के संकल्प को मूर्तरूप देने को योगी आदित्यनाथ ने सर्वोच्च प्राथमिकता दी।

समय-समय पर श्रीराम मंदिर आंदोलन को धार भी दी। राम जन्मभूमि आंदोलन का स्वर जब धीमा पडऩे लगा, योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2003 में विराट हिंदू संगम का आयोजन गोरखपुर में किया। इस आयोजन में 100 संप्रदायों के दस लाख से अधिक रामभक्त शामिल हुए और जन्मभूमि आंदोलन ने पुन: गति पकड़ ली।

वर्ष 2006 में विश्व हिंदू महासंघ का गोरखपुर में सम्मेलन भी जन्मभूमि आंदोलन के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। मुख्यमंत्री होने के बाद तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वे अयोध्या के लिए समय निकालते रहे। नव्य अयोध्या और मंदिर की भव्यता में कोई कसर न रह जाए, इसके लिए पूरी तरह सतर्क रहे। अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं से संपन्न अयोध्याधाम के लिए योगी सरकार ने हर संभव कदम उठाए हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ सौ बार से अधिक अयोध्या का दौरा कर चुके हैं। अयोध्या का दीपोत्सव अंतरराष्ट्रीय ख्याति बटोर चुका है। अयोध्या धाम विकास का कीर्तिमान बना रहा है।

गोरखपुर की गोरखपीठ ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए 1.01 करोड़ रुपये का दान दिया है। इस राशि में देवीपाटन मंदिर से 51 लाख रुपये और गोरखनाथ मंदिर से 50 लाख रुपये शामिल हैं। गोरखपुर के कई उद्योगपतियों ने भी मंदिर निर्माण के लिए लगभग 5 करोड़ रुपये दान में दिए हैं।
मुख्यमंत्री ने यह भी प्रण लिया है कि आने वाले दिनों में अयोध्या देश का न सिर्फ सबसे बड़ा तीर्थस्थल होगा, बल्कि सबसे आकर्षक पर्यटक स्थल के रूप में भी सामने आएगा।
-राज सक्सेना

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