नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से उस अपील पर प्रतिक्रिया मांगी जिसमें हज यात्रियों की मदद करने के लिए, केवल सीएपीएफ के कर्मचारियों को ही तैनात करने के बजाय, केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सभी मुस्लिम कर्मचारियों को यह अवसर दिए जाने का अनुरोध किया गया है। याचिका में मंत्रालय के 20 मार्च के कार्यालय ज्ञापन को चुनौती दी गई थी जिसमें अस्थायी प्रतिनियुक्ति पर केवल सीएपीएफ कर्मचारियों को शामिल किया गया। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने मामले को अगली सुनवाई के लिए 10 मई को सूचीबद्ध किया है और केंद्रीय मंत्रालय के हज डिवीजन को रिकॉर्ड पर अपना पक्ष रखने को कहा है।
एडवोकेट आमिर जावेद ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सभी मुस्लिम कर्मचारियों को हज-2023 के लिए समन्वयक (प्रशासन), सहायक हज अधिकारी और हज सहायक के रूप में अवसर प्रदान करने के लिए कार्यालय ज्ञापन में संशोधन की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी।
याचिका में दावा किया गया है कि मौजूदा ज्ञापन संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है। कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, लगभग 1.4 लाख भारतीय तीर्थयात्रियों के हज 2023 में भाग लेने की उम्मीद है, जिसकी पहली उड़ान 21 मई को निर्धारित की गई है।
वर्तमान याचिका इस आधार पर दायर की जा रही है कि 20 मार्च 2023 के कार्यालय ज्ञापन में अन्य केंद्र या राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन के कर्मचारी किसी भी प्रतिनियुक्ति के लिए पात्र नहीं हैं, जो पहले भारत सरकार द्वारा भेजे जाने की प्रथा थी। याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम समुदाय के पुरुष और महिला सदस्य, जो भारत के महावाणिज्य दूतावास, जेद्दा, सऊदी अरब में अस्थायी आधार पर प्रतिनियुक्ति पर विभिन्न सरकारी विभागों के कर्मचारी हैं, हज तीर्थयात्रियों को सहायता प्रदान करने के लिए हैं।
याचिका में कहा गया है कि कार्यालय ज्ञापन में कहा गया है कि हज से संबंधित कार्य प्रशासनिक है और केवल सीएपीएफ के कर्मचारी ही पात्र हैं, जबकि अन्य स्थायी कर्मचारियों को बाहर रखा गया है। यह अन्य कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है जो हज यात्रियों की सेवा करना चाहते हैं।
याचिकाकर्ता ने यह भी जिक्र किया है कि केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी को 22 मार्च को ज्ञापन में संशोधन करने का अनुरोध करते हुए एक पत्र भेजा गया था, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने अदालत में याचिका दायर की है।