बागपत – उत्तर प्रदेश में बनारस का ज्ञानवापी और अयोध्या का राम मंदिर जैसा विवाद बागपत जिले में भी न्यायालय में विचाराधीन है। इस मामले में अब बागपत सिविल कोर्ट करीब पचास साल बाद आगामी 12 सितम्बर को फैसला सुना सकती है।
महाभारतकालीन ग्रंथ महाभारत में वारणावत गांव के वर्णन का इतिहास दर्ज है। यही वारणावत अपभ्रंश होते होते आज बरनावा के नाम से जाना जाता है। महाभारत ग्रंथ के अनुसार, द्वापर युग में यही पर बने लाक्षागृह में ही पांडवों को जलाकर मारने की साजिश रची गई थी। इसके लिए शकुनि और दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। द्वापर युग से आज कलयुग तक हजारों वर्ष बीत चुके हैं।
हिंदू धर्मावलंबियों का कहना है कि मुगल शासक काल में मुस्लिमों ने इसी लाक्षागृह की जमीन पर बदरुद्दीन की मजार बनवा दी थी, जिसे आज भी वे कब्र की जमीन होने का दावा करते है।
लाक्षागृह टीले पर स्थित महानंद संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य अरविंद सिंह ने बताया कि बरनावा गांव स्थित लाक्षागृह की जमीन पर अधिकार के दावे को लेकर हिंदू धर्मावलंबियों व मुस्लिम मत के अनुयायियों के बीच यह विवाद चल रहा है जिसे लाक्षागृह और बदरुद्दीन की मजार का विवाद के नाम से जाना जाता है। इसी विवाद को लेकर करीब 50 साल से कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। महाविद्यालय के प्राचार्य के अनुसार, इसी माह की 12 तारीख को इस मामले पर बागपत सिविल कोर्ट फैसला सुना सकती है।
हिंदू पक्ष कथित मजार को लाक्षागृह का हिस्सा बता रहा है तो मुस्लिम पक्ष इस हिस्से को बदरुद्दीन की मजार और उसके आस पास उनके अनुयायी की कब्र बताता है। इसी मामले को लेकर वर्ष 1970 में बरनावा निवासी मुकीम खा ने मेरठ सिविल कोर्ट में वाद दायर किया था। यह विवाद अब मेरठ जनपद से अलग होकर बने नवसृजित जनपद बागपत की अदालत में चल रहा है।
दरअसल, मुस्लिम पक्ष के बरनावा गांव निवासी मुकीम खां ने वर्ष 1970 में वाद दायर करते हुए मेरठ अदालत से मालिकाना हक की मांग उठाई थी। अलग जिला बनने के बाद ये मामला बागपत कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था, जो अब सिविल कोर्ट में विचाराधीन है। मुकीम खान ने टीले पर बदरुद्दीन शाह की दरगाह और मजार होने का दावा किया था। जो सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बतौर वक्फ प्रोपर्टी रजिस्टर्ड है। इस मामले में यहाँ पर गुरुकुल की स्थापना करने वाले ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था, जिसमें आरोप लगाया था कि कृष्ण दत्त जी महाराज ने इसे समाप्त कर हिंदुओं का तीर्थ स्थान बनाना चाहते हैं।
इसके विपरीत ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज ने दावा किया था कि प्राचीन टीला और कथित मजार लाक्षागृह का ही हिस्सा हैं। उनका दावा था कि यहाँ कोई भी मजार और कब्रिस्तान कभी नहीं रहा। वर्तमान में लाक्षागृह टीले की भूमि का कुछ हिस्सा पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अधिग्रहण कर रखा है। शेष भूमि पर गांधी धाम समिति की ओर से श्री महानद संस्कृत महाविद्यालय का संचालन हो रहा है। पिछले 50 साल से चल रहे विवाद का अब निपटारा होने की उम्मीद जगी है। यह विवाद अब अपने अंतिम चरण में फैसले की सुनवाई की तरफ बढ़ रहा है। जिसमें 12 सितंबर को फैसला आना तय माना जा रहा है।