Saturday, April 19, 2025

शिक्षा मंत्रालय ने बताए कोचिंग संस्कृति को कम करने के उपाय

नई दिल्ली। उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए कोचिंग संस्कृति पर निर्भरता को कम करने के उपाय तलाशे जा रहे हैं। दरअसल शिक्षा में ऐसे कई सकारात्मक परिवर्तन लाने के उद्देश्य से दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। देशभर के विभिन्न राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सचिवों ने दो दिनों के दौरान राष्ट्रीय शिक्षा नीति व तकनीकी एवं उच्च शिक्षा पर इस कार्यशाला में मंथन किया है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से आयोजित इस कार्यशाला का समापन बुधवार को हुआ। उच्च और तकनीकी शिक्षा पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के दौरान, कोचिंग संस्कृति पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से ‘साथी’ (स्व मूल्यांकन, परीक्षण और प्रवेश परीक्षाओं के लिए सहायता) पर केंद्रित एक सत्र आयोजित किया गया। ‘साथी’ पोर्टल आईआईटी और एनईईटी जैसी प्रवेश परीक्षाओं के लिए तैयारी के लिए अध्ययन सामग्री प्रदान करता है। आइआइटी की तैयारी के लिए इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर विद्यार्थियों के लिए नौवीं से 12वीं कक्षा के विषयों की अध्ययन सामग्री है।

इसमें मेडिकल समेत विभिन्न विषयों के प्रोफेसरों के लेक्चर को पोर्टल पर अपलोड किया किया है। शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से यह पहल आईआईटी कानपुर द्वारा की गई है। बुधवार को इस विषय पर बोलते हुए आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अमेय करकरे ने ‘साथी’ पोर्टल पर अंतर्दृष्टि साझा की। उन्होंने पोर्टल की चार चरणों वाली यात्रा की रूपरेखा पेश की। यह चार पहलू सीखें, अभ्यास करें, प्रतिक्रिया दें और सलाह दें हैं।

उन्होंने राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और कहा कि यह पहल देश भर में योग्य उम्मीदवारों तक पहुंचे, जिससे सभी के लिए समान अवसर प्राप्त करने में मदद मिले। इसके अलावा इस कार्यशाला में राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सचिवों के साथ उच्च और तकनीकी शिक्षा पर 6 तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। स्वयं और स्वयं प्लस पर एक व्यावहारिक सत्र में, आईआईटी मद्रास के डॉ. आर सारथी और शिक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव गोविंद जयसवाल ने चर्चा की।

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उन्होंने बताया की कैसे शिक्षा मंत्रालय के ‘स्वयं’ व ‘स्वयं प्लस’ जैसे प्लेटफॉर्मों का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक सभी को पहुंच प्रदान करना है। इन प्लेटफॉर्म का उद्देश्य उच्च शिक्षा की तैयारी में आने वाली बाधाओं को दूर करना है। साथ ही इस प्रक्रिया के माध्यम से शिक्षा का लोकतंत्रीकरण करना है। उनकी प्रस्तुति में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कैसे राज्य शिक्षा के अंतर को पाटने और विकसित भारत 2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने में योगदान देने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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