Monday, May 6, 2024

व्यक्ति निर्माण के लिए आवश्यक है: कुटुंब प्रबोधन

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कुटुंब एक ऐसा स्थान है जहां बालक का पालन-पोषण, संस्कार और निर्माण होता है। यह एक ऐसी पाठशाला व संस्कारशाला है, जिसमें माता-पिता एवं घर के बड़े बालक को भिन्न-भिन्न रूपों में प्रबोधन करके महत्वपूर्ण का बोध करवाते हैं। यह बोध जहां मातृभाषा,संबंधों और संवेदनाओं का होता है वहीं अपने कुटुंब, प्रदेश एवं देश के विषय में तत्व ज्ञान का भी होता है। कुटुंब के बड़े बालक को करणीय और अकरणीय का बोध करवाते हैं। बालक में मनोबल निर्माण, हीनता का त्याग, श्रेष्ठ का ग्रहण, दृष्टिकोण का विकास आदि बातें खेल-खेल में विकसित करने का श्रेय कुटुंब को ही जाता है। कुटुंब में ही बालक दिनचर्या से और दिनचर्या को सीखता है। आरंभ से ही कुटुंब प्रबोधन के द्वारा पारिवारिक दायित्व का बोध बालक में राष्ट्रभक्ति की भावना का भी जागरण करता है। कुटुंब समाज एवं राष्ट्र की वह महत्वपूर्ण इकाई है जो सामाजिक,धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन को आधार प्रदान करती है। बालक को पर्व- उत्सव, रीति- रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा आदि का ज्ञान कुटुंब में रहकर एवं प्रबोधन से ही होता है। ध्यातव्य है कि विदेशी आक्रमणों और लंबी दासता के कालखंड में कुटुंब व्यवस्था में परिवर्तन तो आए लेकिन वह बनी रही, किंतु कालांतर में आधुनिकता के प्रभाव स्वरूप और आधुनिकता की दौड़ एवं होड़ के कारण वह टूटी और एकल परिवार अस्तित्व में आने लगे। आज टेलीविजन, मोबाइल और अब अत्याधुनिक यंत्रों की व्यापकता एवं प्रभावों की जहां एक ओर परिवार में घुसपैठ बढ रही है वहीं दूसरी ओर संबंधों का बोध और संबंधों की शब्दावली भी छूटती जा रही है। टेलीविजन और मोबाइल के जरिए केवल व्यक्ति केंद्रित प्रसन्नता दिखाकर और व्यक्ति को भौतिकता पर केंद्रित करने का कुचक्र व्यक्ति को स्वार्थी बना रहा है। जिसका दुष्परिणाम व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास पर तो पड़ ही रहा है, समाज और राष्ट्र के प्रति उसकी भावना भी प्रभावित हो रही है। फेसबुक और व्हाट्सएप पर तो मित्रों की भीड़ है, लेकिन दुख एवं संकट के समय कोई उसके साथ नहीं है, व्यक्ति अपनों से ही दूर होता जा रहा है।
भारतीय ज्ञान परंपरा पर दृष्टिपात करें तो हम पाते हैं कि वहां अनेक रूपों में कुटुंब के महत्व एवं प्रबोधन की चर्चा है। गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरितमानस के बालकांड में अनेक प्रसंगों में पति- पत्नी, गुरु- शिष्य, माता-पिता, भाई-भाई यानी कौटुंबिक व्यवस्था की विस्तार से चर्चा की है। वे लिखते हैं-
अनुज सखा सँग भोजन करहीं।
मातु पिता अग्या अनुसरहीं।।
अर्थात् श्रीरामचंद्र जी अपने छोटे भाइयों और सखाओं के साथ भोजन करते हैं और माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं। ध्यातव्य है कि माता जीजाबाई ने अपने प्रबोधन के द्वारा ही बालक छत्रपति शिवाजी को भारतीय ज्ञान परंपरा और वीरत्व की भावना से परिचित करवाया। देश-दुनिया में भारतीय ज्ञान एवं अध्यात्म के संवाहक स्वामी विवेकानंद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- मैं जानता हूं, मेरे जन्म से पहले मेरी मां व्रत उपवास किया करती थीं, प्रार्थना किया करती थीं…मुझमें जितनी भी धार्मिक संस्कृति मौजूद है, उसके लिए मैं अपनी मां का कृतज्ञ हूं।…मेरी मां ने मुझे जो प्यार- ममता दी है,उसी के बल पर ही मेरे वर्तमान के मैं की सृष्टि हुई है। सर्वविदित है कि जीवन में अनेक संघर्षों से गुजरते हुए महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु भारत के जन जागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अपनी आत्मकथा में कई स्थानों पर उन्होंने अपने माता-पिता का रामायण के प्रति प्रेम और उससे अपने व्यक्तित्व निर्माण की बात लिखी है। भारतीय चिंतन में अनेक महापुरुषों का व्यक्तित्व-कृतित्व इस बात का द्योतक है कि कुटुंब व्यक्ति के चित्त और चेतना का निर्माण करता है। पूर्व राष्ट्रपति एवं महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- मुझे अपने पिताजी से विरासत के रूप में ईमानदारी और आत्मानुशासन मिला तथा मां से ईश्वर में विश्वास और करुणा का भाव… मेरी मां और दादी घर के बच्चों को सोते समय रामायण के किस्से और पैगंबर मोहम्मद से जुड़ी घटनाएं सुनती थीं। क्या आज परिवारों में इस प्रकार के व्यक्तित्वों की चर्चा प्रेरणा देने वाली नहीं बन सकती?
आज इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि क्या कुटुंब प्रबोधन के अभाव में सामाजिक विकृति पैदा नहीं हो रही है? एक समय होता था जब पति-पत्नी एवं परिजनों के आपसी झगड़े कुटुंब में बैठकर हल कर लिए जाते थे, लेकिन आज सैकड़ों फैमिली कोर्ट स्थापित हो चुके हैं, जिनमें हजारों मामले पति-पत्नी के आपसी झगड़े, संबंध विच्छेद एवं घरेलू हिंसा के चल रहे हैं। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, नशे की लत बढ़ रही है, मोबाइल के अधिक प्रयोग की लत भिन्न-भिन्न रूपों में व्यक्ति और कुटुंब को मानसिक विकृति की ओर ले जा रही है। सर्वविदित है कि टेलीविजन के आरंभिक दौर ने व कार्यक्रमों ने परिवारों को जोड़कर रखा, लेकिन उत्तरोत्तर अधिक प्रचलन से परिवारों में बिखराव आया। मोबाइल फोन के अत्यधिक प्रयोग से व्यक्ति स्वयं से ही दूर होकर विकृतियों का शिकार बनता जा रहा है।
समाचार पत्रों में दिन-प्रतिदिन मूल्यहीनता, संबंध विच्छेद, संबंधों की हत्या एवं बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति के समाचार निरंतर छाप रहे हैं। विगत दिनों घटित कुछ घटनाओं का संदर्भ यहां प्रासंगिक होगा। एक घटना दिल्ली के सर्वोदय बाल विद्यालय की है, जिसमें एक ही विद्यालय में पढऩे वाले नौंवी और दसवीं कक्षा के छात्रों ने छठी कक्षा के छात्र की पिटाई कर दी, जिससे उसकी मौत हो गई। दूसरी घटना महाराष्ट्र के सोलापुर की है, जहां 14 वर्षीय बेटे की हरकतों से तंग आकर पिता ने उसे जहर देकर हत्या कर दी। तीसरी घटना कर्नाटक के बेंगलुरु की है, जहां मां से बहस के बाद 17 वर्षीय किशोर ने अपनी 40 वर्षीय मां की हत्या कर दी। इसी प्रकार की एक चौथी घटना बंगाल की है जहां पति के साथ घरेलू विवाद से तंग आकर एक महिला ने अपने दो मासूम बच्चों को कुएं में फेंक दिया, इसके बाद जान देने के लिए वह खुद भी कुएं में कूद गई। समाचार के रूप में देखें तो घटना घटित हो गई, समाचार छप गया और बात समाप्त हो गई। लेकिन मित्रता,ममता, पिता- पुत्र, मां-बेटे एवं पति-पत्नी आदि भावों व संबंधों का क्या हुआ और क्यों हुआ? यह चिंतन का विषय है। क्या इस प्रकार की अनेकानेक घटनाओं के मूल में कुटुंब प्रबोधन की कमी नहीं है?
ज्ञान- विज्ञान, सूचना-तकनीक निरंतर बढ़ रही हैं। आज केवल पद प्रतिष्ठा, निहित स्वार्थों की पूर्ति और अधिकाधिक पाने की इच्छा मानवता के कल्याण में बाधक बनती दिखाई दे रही है। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ धर्म जागरण, ग्राम विकास, नशा मुक्ति एवं समरसता आदि महत्वपूर्ण विषयों के साथ-साथ कुटुंब प्रबोधन की गतिविधियों को भी चिंतन के केंद्र में रखकर कार्य कर रहा है। वह बल दे रहा है कि कुटुंब में सह भोज, सह भ्रमण, सह भजन और सह चर्चा के आयोजन हों। इस विषय पर संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत का कहना है कि- हमारे बच्चे मजबूत बनें, संस्कारवान बनें और प्रत्येक घर एक किला बने यह आवश्यक है। घर में सामूहिक चर्चा और बैठक भी होनी चाहिए। सामूहिक भोजन और भजन हो। त्याग का भाव परिवार के संस्कार से ही उत्पन्न होता है। स्पष्टत: उनका यह संदेश और चिंतन व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के हित में है,जिस पर व्यापक चर्चा भी होनी चाहिए। कुटुंब प्रबोधन प्रत्येक नागरिक को जड़ों से जोड़ेगा। इसके माध्यम से सर्वांगीण विकास को प्राप्त कर प्रत्येक नागरिक परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व कल्याण हेतु भी तैयार होगा। आज जब भारतवर्ष विकसित भारत एवं विश्व गुरु भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, तब भारत भाव से अनुप्राणित व्यक्ति ही उसका आधार बनेगा, जिसकी निर्मिति कुटुंब प्रबोधन से ही संभव है।
डॉ.वेदप्रकाश
असिस्टेंट प्रोफेसर,
किरोड़ीमल कॉलेज,दिल्ली

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