अज्ञानी मनुष्य दूसरे उस मनुष्य को जो उससे सहमत नहीं अथवा जिसके साथ उसके हित टकराते हैं, उन्हें अपना शत्रु समझता है, किन्तु वह नहीं जानता उसके वास्तविक शत्रु तो उसी के भीतर बैठे हैं। काम शत्रु है, क्रोध शत्रु है, अहंकार शत्रु है, लोभ शत्रु है और मोह शत्रु है। उसके धर्म की फुलवारी का विनाश करने वाले ये पांच शत्रु उसी के भीतर हैं। ये भयंकर शत्रु और लुटेरे कदम-कदम पर जाल बिछाये हैं। आदमी इनके वश में होकर मानवता को भूलकर धार्मिक रस्मों और रिवाजों को ही धर्म समझ बैठता है और धर्म के नाम पर आदमी ही आदमी की हत्या कर देता है।
ऐसे ही लोगों को देखकर ही किसी कवि ने कहा है ‘खुदा के बंदों को देखकर खुदा से मुन्किर हुई दुनिया कि ऐसे बंदे हैं जिस खुदा के वो कोई अच्छा खुदा नहीं है।’ बन्धुओं यदि तुम इन पांच शत्रुओं से अपने जीवन को मुक्त कर सको तो तुम्हें ज्ञान होगा कि भगवान ने तुम्हें इस संसार में जीवन को खुशियों से भरने के लिए भेजा था, किन्तु इन शत्रुओं के कारण अपने जीवन को नरक बना लिया।