Friday, November 22, 2024

गर्भ गिराने की मांग करने वाली महिला की होगी नये सिरे से स्वास्थ्य जांच, 16 अक्टूबर को सुनवाई

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने खुद को डिप्रेशन की मरीज बताकर 26 हफ्ते का गर्भ गिराने की मांग कर रही विवाहिता के नए सिरे से स्वास्थ्य जांच का आदेश दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज 2 बजे एम्स में जांच करने का आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी।

कोर्ट ने कहा कि यह देखा जाएगा कि वह गर्भ जारी रखने योग्य या नहीं। जो दवाएं खाती रही है, उसके बावजूद भ्रूण गर्भ में स्वस्थ है। आज सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि हम याचिकाकर्ता को राजी नहीं कर सके हैं। अब कोर्ट को ही फैसला करना है। भाटी ने कहा कि जीवन का समर्थन करने वाले देश गर्भपात को पूरी तरह से खत्म कर चुके हैं, क्योंकि उन्होंने अजन्मे बच्चे की स्थिति को नागरिकों के बराबर बढ़ा दिया है। हम एक वैकल्पिक देश हैं और इसलिए महिला की स्वायत्तता महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं है, जो 24 सप्ताह से अधिक गर्भावस्था समाप्त करने पर आगे कदम उठाता हो।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने पूछा कि आयरलैंड में क्या हुआ था। वहां महिला को गर्भपात कराना पड़ा और वहां के कानून ने इसकी अनुमति नहीं दी और आखिरकार उसकी मौत हो गई। चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे कानून में अगर गर्भावस्था से मां के जीवन को खतरा होता है तो इसे अंतिम समय में भी समाप्त किया जा सकता है और हमारा कानून इसकी अनुमति देता है और ऐसा भ्रूण की असामान्यता के मामले में भी है।

सुप्रीम कोर्ट ने 12 अक्टूबर को महिला से अपनी राय बताने को कहा था। चीफ जस्टिस ने कहा था कि महिला की इच्छा का सम्मान और अजन्मे बच्चे के अधिकार के बीच संतुलन कायम करना जरूरी है। सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पेश वकील ने कहा था कि महिला की मानसिक और आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वो तीसरे बच्चे को जन्म दे। महिला के दो बच्चों की देखभाल उसकी सास करती है। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी को महिला से बात करने को कहा था।

इस मामले पर 11 अक्टूबर को दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसला दिया था। जस्टिस हीमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की विशेष बेंच में मामले पर सहमति नहीं बन सकी जिसके बाद इस मामले को बड़ी बेंच के पास रेफर करने के लिए चीफ जस्टिस के पास भेजा था जिसके बाद चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने 12 अक्टूबर को सुनवाई की थी।

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