शेखर और राहुल दोनों भाई थे। शेखर 8वीं में और राहुल 5वीं में पढ़ता था। शेखर 12 वर्ष का था जबकि राहुल 1० वर्ष का। शेखर मेहनती था। राहुल था तो तेज दिमाग का किंतु बहुत आलसी था। वह अपना होमवर्क पूरा करने में बहुत लापरवाह था, इसीलिए रोज शिक्षकों से डांट सुनता। वह परीक्षा में बहुत कम अंक पाता था जबकि शेखर को बहुत अच्छे अंक मिलते।
राहुल के माता-पिता उसको लेकर परेशान रहते। उन्होंने राहुल को पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए हर तरह से समझाया किंतु उस पर कोई असर न होता।
एक दिन राहुल का गणित का पर्चा था। वह एक भी प्रश्न ठीक से हल नहीं कर सका। उसे 2० में से केवल शून्य मिला। कक्षा में शिक्षक ने जब अंकों की घोषणा की तो उसके अंक सुन कर अन्य छात्र हंसने लगे। उसने अपने को बहुत अपमानित महसूस किया।
राहुल स्कूल से जब घर लौटा तो उसका चेहरा उतरा हुआ था। मां ने जब इसकी वजह पूछी तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। मां ने महसूस किया कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने राहुल से उसकी उदासी की वजह पूछी तो उसने सुबकते हुए कहा, ‘मां, आज गणित के पर्चे में मुझे 2० में से शून्य मिला। अन्य छात्रों ने 15 से अधिक अंक पाए। उन्होंने मेरा मजाक उड़ाया। मुझे बहुत बुरा लगा, मां।’
मां ने कहा, ‘अगर तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दोगे और कड़ी मेहनत नहीं करोगे तो तुम्हें अच्छे अंक नहीं मिलेंगे। तुम्हें मन लगा कर पढऩा चाहिए। फिर तुम्हें अगली बार परीक्षा में जरूर अच्छे अंक मिलेंगे।’
राहुल ने मां की बात ध्यान से सुनी और उसी क्षण तय किया कि वह गणित में पूरे के पूरे अंक लाने के लिए कड़ी मेहनत करेगा।
छमाही परीक्षा में 2 महीने बाकी थे। राहुल ने दिन-रात कड़ी मेहनत की। जब भी उसे किसी विषय में दिक्कत महसूस होती, वह पिताजी से मदद लेता या दूसरे दिन स्कूल में शिक्षक से पूछ लेता। मां भी उसे मेहनत करते देख उसे उत्साहित करती रहीं।
पहला पर्चा गणित का था। राहुल ने सभी प्रश्न हल कर दिए। उसे पक्का विश्वास हो गया कि उसे गणित में पूरे नंबर मिलेंगे। उसके दूसरे विषयों के पर्चे भी अच्छे हुए।
परीक्षा परिणाम घोषित हुआ तो सभी यह जान कर हैरान थे कि न केवल राहुल ने गणित में ही शत-प्रतिशत अंक पाया बल्कि अन्य विषयों में भी उसने बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए थे।
शिक्षकों ने राहुल के इस शानदार प्रदर्शन पर उसकी खूब प्रशंसा की तथा अन्य छात्रों से उसका अनुकरण करने को कहा।
जब राहुल ने अपने माता-पिता को परीक्षा परिणाम की सूचना दी तो वे भी बहुत खुश हुए। राहुल जान चुका था कि कड़ी मेहनत करने पर ही सफलता हासिल होती है।
– नरेंद्र देवांगन