नयी दिल्ली। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने शुक्रवार को कहा कि जब भी महिलाओं को समान अवसर मिले हैं, उन्होंने हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर और कभी-कभी उनसे बेहतर प्रदर्शन किया है।
राष्ट्रपति ने विभिन्न क्षेत्रों में तरक्की के लिए महिलाओं को परिवार से और अधिक सहयोग मिलने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि महिलाएं सशक्त होंगी तो परिवार सशक्त होगा।
वह आध्यात्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठन ब्रह्माकुमारी के गुरुग्राम स्थिति ओम शांति रिट्रीट केंद्र में ‘मूल्य-निष्ठ समाज की नींव- महिलाएं’ की विषयवस्तु पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन कर रही थी। इस कार्यक्रम के जरिए संगठन ने ‘परिवार को सशक्त बनाना’ अभियान की शुरुआत कर रहा जो अखिल भारतीय जागरूकता अभियान है।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज के राष्ट्रीय सम्मेलन की विषयवस्तु ‘ मूल्य-निष्ठ समाज की नींव- महिलाएं’ काफी प्रासंगिक है। महिलाओं ने भारतीय समाज में मूल्यों और नैतिकता को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। उन्होंने इस पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की कि ब्रह्माकुमारी संस्था ने महिलाओं को केंद्र में रखकर भारतीय मूल्यों को फिर से जीवित करने का प्रयास किया है।
महिला सशक्तिकरण के विषय पर श्रीमती मुर्मू ने कहा कि जब भी महिलाओं को समान अवसर मिले हैं, उन्होंने हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर और कभी-कभी उनसे बेहतर प्रदर्शन किया है। उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है हालांकि, उनमें से कई शीर्ष स्थान तक पहुंचने में सक्षम नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि यह पाया गया है कि निजी क्षेत्र में मध्य स्तर के प्रबंधन में एक निश्चित स्तर से ऊपर महिलाओं की भागीदारी में कमी आई है। इसके पीछे मुख्य कारण पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं। आम तौर पर कामकाजी महिलाओं को कार्यालय के साथ-साथ घर की भी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। हमें इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है कि बच्चों को पालना और घर चलाना केवल महिलाओं की जिम्मेदारी है। उन्होंने कह कि महिलाओं को परिवार से अधिक सहयोग मिलना चाहिए, जिससे वे बिना किसी बाधा के अपने करियर में सर्वोच्च पद पर पहुंच सकें।
उन्होंने कहा कि महिलाओं के सशक्तिकरण से ही परिवार सशक्त होंगे और सशक्त परिवार ही सशक्त समाज व सशक्त राष्ट्र का निर्माण करेंगे। उन्होंने कहा कि परिवार में एक मां की भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि एक मां का स्वभाव हमेशा समावेशी होता है। वह अपने बच्चों में कभी भेदभाव नहीं करती हैं, इसलिए प्रकृति को ‘प्रकृति माता’ भी कहा जाता है।