Friday, November 22, 2024

हमास तो खुद जिहाद की सुरंगों में कैद

हमास खुद तो जिहाद की सुरंगों में कैद है ही , कथित रूप से उसने इजराइल के बंधकों को भी इन्हीं सुरंगों में कैद कर रखा है। ये सुरंगे स्कूल , अस्पताल, धार्मिक स्थलों के नीचे बनाई गई आतंकी इंजीनियरिंग करिश्में हैं।
उत्तराखंड में दुर्घटना वश 40 मजदूर सुरंग में कैद होकर रह गए हैं, जिन्हें बाहर निकालने के लिए सारी इंजीनियरिंग लगी हुई है।
हर बरसात में महानगरों में सड़को के किनारे बनाई गई साफ सफाई की सुरंग नुमा विशाल नालियों में कोई न कोई बह जाता है।
बोर वेल की गहरी खुदाई में जब तब खेलते कूदते बच्चो के गिरने, फिर उन्हें निकालने  की खबरे सुनाई पड़ती हैं।
आपको स्मरण होगा थाईलैंड में थाम लुआंग गुफा की सुरंगों में फंसे खेलते बच्चे और उनका कोच दुर्घटना वश फंस गए थे, जो सकुशल निकाल लिये गये थे।
तब सारी दुनिया ने राहत की सांस ली .हमें एक बार फिर अपनी विरासत पर गर्व हुआ था क्योकि थाइलैंड ने विपदा की इस घड़ी में न केवल भारत के नैतिक समर्थन के लिये आभार व्यक्त किया था वरन कहा था कि बच्चो के कोच का आध्यात्मिक ज्ञान और ध्यान लगाने की क्षमता जिससे उसने अंधेरी गुफा में बच्चो को हिम्मत बढाई, भारत की ही देन है।
अब तो योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल चुकी है और हम अपने पुरखो की साख का इनकैशमेंट जारी रख सकते हैं।
इस तरह की दुर्घटना से यह भी समझ आता है कि जब तक मानवता जिंदा है, कट्टर दुश्मन देश भी विपदा के पलो में एक साथ आ जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे बचपन में माँ की डांट के डर से हम बच्चों में एका हो जाता था या वर्तमान परिदृश्य में सारे विपक्षी एक साथ चुनाव लडऩे के मनसूबे बनाते दिखते हैं।
वैसे वे बहुत भाग्यशाली होते हैं जो  सुरंगों से बाहर निकाल लिए जाते हैं वरना हम आप सभी तो किसी न किसी गुफा में भटके हुये कैद ही हैं . कोई धर्म की गुफा में गुमशुदा है . सार्वजनिक धार्मिक प्रतीको और महानायको का अपहरण हो रहा है . छोटी छोटी गुफाओ में भटकती अंधी भीड़ व्यंग्य के इशारे तक समझने को तैयार नहीं हैं . कोई स्वार्थ की राजनीति की सुरंग में भटका हुआ है . कोई रुपयो के जंगल में उलझा बटोरने में लगा है तो कोई नाम सम्मान के पहाड़ों में खुदाई करके पता नही क्या पा लेना चाहता है ?
महानगरों में हमने अपने चारों ओर झूठी व्यस्तता का एक आवरण बना लिया है और स्वनिर्मित इस कृत्रिम गुफा में खुद को कैद कर लिया है . भारत के मौलिक ग्राम्य अंचल में भी संतोष की जगह हर ओर प्रतिस्पर्धा और कुछ और पाने की होड़ सी लगी दिखती है  जिसके लिये मजदूरों, किसानो ने स्वयं को राजनेताओं के वादो, आश्वासनो, वोट की राजनीति की सुरंगों में समेट कर अपने स्व को गुमा दिया है।
बच्चो को हम इतना प्रतिस्पर्धी प्रतियोगी वातावरण दे रहे हैं कि वे कथित नालेज वर्ल्ड में ऐसे गुम हैं कि माता पिता तक से बहुत दूर चले गये हैं। हम प्राकृतिक गुफाओं में विचरण का आनंद ही भूल चुके हैं।
मेरी तो यही कामना है कि हम सब को प्रकाश पुंज की ओर जाता स्पष्ट मार्ग मिले, कोई बड़ा बुलडोजर इन संकुचित सुरंगों को तोड़े, कोई हमारा भी मार्ग प्रशस्त कर हमें हमारी अंधेरी सुरंगो से बाहर खींच कर निकाल ले ताकि सब खुली हवा में मुक्त सांस ले सकें।
-विवेक रंजन श्रीवास्तव

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