सत्ता वैसे भी
मारती है
तू भी निर्दयी मत बन;
बोए हैं सपने उसने
अपने लहू से सींचकर,
देखेगा ये फसल बर्बाद
फिर कैसे घर जाएगा।
वो मर जाएगा।।
गिरवी पड़ी है दीवारें
ऋण से दबी छत है;
हाय, बिलखेगा खेत वह
हाय, मिट्टी तड़पेगी,
हाय बिखरेंगे जब सपने
हारकर जहर खाएगा।
वो मर जाएगा।।
तमाशा उसकी बर्बादी का
बिरादरी वाले देखेंगे;
खुश होंगे कुछ रोता देख
वहीं बेटी ब्याह की लाज में
वो कैसे नजर मिलाएगा।
वो मर जाएगा।।
हाय, खुदा तेरे विधान में
क्यों किसानों को सुख नहीं;
मेहनत, परिश्रम और स्वेद से
जिसने धरा को सींचा है,
प्रकृति तेरे प्रकोप से क्यूं?
खेतिहर ही कर्ज़ चुकाएगा।
वो मर जाएगा।।
रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’
खरसंडी, राजस्थान
स्वरचित व मौलिक तथा अप्रकाशित रचना।