प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सरफेसी एक्ट के तहत ऋण वसूली अधिकरण के किसी भी आदेश चाहे अंतरिम हो या अंतिम, उसके खिलाफ अपीलीय अधिकरण के समक्ष अपील की जायेगी। अनुच्छेद 226 मे याचिका पर हाईकोर्ट को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने बैंक आफ इंडिया की तरफ से कस्तूरी देवी शीतालय प्रा लि व अन्य की याचिका को वैकल्पिक अनुतोष के आधार पर पोषणीयता पर की गई आपत्ति को वैध करार दिया। कोर्ट ने इसी के साथ डी आर टी के आदेश की वैधता की चुनौती याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने याची को धारा 18 के अंतर्गत उपचार पाने के लिए अपील के वैकल्पिक फोरम का इस्तेमाल करने को कहा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कस्तूरी देवी शीतालय व अन्य की याचिका पर दिया है। याची की अर्जी पर अधिकरण ने उसके खिलाफ अंतर्वर्ती आदेश पारित किया। जिसे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी गई। बैंक ने याचिका की पोषणीयता पर यह कहते हुए आपत्ति की कि याची को आदेश के खिलाफ अपील करने का वैकल्पिक उपचार प्राप्त है। इसलिए याचिका खारिज की जाय। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सरफेसी एक्ट के मामले में अधिकरण के आदेश में हाईकोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यह एक विशेष फोरम है। उसी के तहत निर्धारित अनुतोष प्राप्त करना चाहिए।
याची का कहना था कि धारा 17 मे अर्जी पर पारित अंतर्वर्ती आदेश के खिलाफ अपील दाखिल करना जरूरी नहीं है। याचिका में चुनौती दी जा सकती है। क्योंकि इसमें 2004 में संशोधन किया जा चुका है। ऋणी को बैंक के वसूली के तरीके के खिलाफ अर्जी देकर राहत पाने का अधिकार है। जिसके खिलाफ अपील जरूरी नहीं है।
किंतु कोर्ट ने इस तर्क को सही नहीं माना और बैंक की याचिका के पोषणीयता पर की गई आपत्ति को सही करार दिया। कहा अंतर्वर्ती आदेश के खिलाफ भी अपील की जायेगी।