पाकिस्तान के माथे पर आंतकी ठप्पा चस्पा होने के चलते वह महिलाओं की रक्षा कभी नहीं कर पाया। औरतें आज भी वहां बंदिशों की बेडिय़ों में जकड़ी हुई हैं। आधी आबादी की दुर्दशा को लेकर अक्सर कलेजा कंपकंपा देने वाली खबरें पाकिस्तान से आती ही रहती हैं। यूं कहें कि वहां की महिलाओं को सामाजिक स्वतंत्राओं से कोसां दूर रखा जाता हैं। न उन्हें बराबरी का मौका देते हैं और न दिया जाता है। गैर-मुस्लिम महिलाओं की दशा तो और भी बदतर मानी जाती हैं। हिंदू बच्चियों को जबरन धर्मांतरण कर मुस्लिम बनाने का खेल तो जगजाहिर है ही। एक तिहाई से भी ज्यादा हिन्दू न चाहते हुए भी दूसरा धर्म अपना चुके हैं।
ऐसी स्थितियों और परिस्थितयों से मुकाबले करके अगर कोई महिला सफलता की सीढ़ी चढ़ती है और वह भी हिंदू, तो उसे विशाल हिमालय को फतह करने जैसा समझना चाहिए। ऐसा ही चमत्कार होने की एक तस्वीर वहां उभर चुकी है। पाकिस्तान में लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। अगले माह यानी आठ फरवरी को मतदान होना मुकर्रर हुआ है। तारीखों के एलान के साथ ही सियासी अखाड़े भी सज चुके हैं। पर, इस बार का चुनाव कुछ अलहदा होने वाला है। एक हिंदू महिला ने भी लोकसभा चुनाव में अपनी दावेदारी ठोकी है। महिला का नाम है सवीरा प्रकाश, जो पेशे से महिला चिकित्सक हैं।
सवीरा के चुनावी अखाड़े में ताल ठोकने की खबर जबसे सार्वजनिक हुई है, तभी से सवीरा न सिर्फ पाकिस्तान के सियासी गलियारों की सुर्खियों में हैं, बल्कि हिंदूस्तान में भी खूब चर्चे हो रहे हैं। चर्चे हों भी क्यों न? आखिर एक हिंदू महिला पाकिस्तान का संसदीय इतिहास जो बदलने जा रही है। ऐसा इतिहास जो नए अक्षकों से लिखा जाएगा, उस अध्याय को पढ़कर सवीरा जैसी न जाने कितनी औरतों को भी संबल मिलेगा। एक कहावत है कि ‘दिल से पत्थर उछालो, आसमां तक पहुंच जाएगा। कहावत को चरितार्थ करते हुए सवीरा प्रकाश ने पत्थर क्या, पूरा का पूरा पहाड़ ही उछाल डाला है जिसकी धमक समूचे पाकिस्तान की सियासत में गूंज रही है।
चुनाव में सवीरा की उम्मीदवारी बेडिय़ों में जकड़ी व्यवस्थाओं को ललकार रही है। राजनीति में कुंड़ी मारे बैठे मठाधीश हैरान-परेशान हैं। अन्य दलों के नेता भी ‘पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से सवीरा की उम्मीदवारी को बदलने की सलाह देने लगे हैं। दरअसल, उनका विरोध महिला उम्मीदवार के होने से नहीं है, सवीरा के हिंदू होने से हैं। मुस्लिम कट्टरपंथी एकदम नहीं चाहते हैं कि मुस्लिम देश में कोई हिंदू महिला सांसद बनकर उनकी छाती पर मूंग दले। वहां के कट्टरपंथी लोग जब अपने घरों की औरतों की तरक्की बर्दाश्त नहीं करते, तो भला गैर जात-बिरादरी की औरत की कामयाबी कैसे हजम कर पाएंगे?
लाहौर जैसे प्रमुख शहर में आजादी के वक्त हिंदुओं की संख्या करीब मुसलमानों के ही बराबर थी। पर आज पूरे मुल्क में मुठ्ठी भर ही हिंदू बचे हैं। पाकिस्तान की लोक सेवाओं, न्यायिक व्यवस्थाओं और राजनीति में गैर-मुस्लिमों द्वारा हिस्सेदारी मांगने का मतलब है, खुद का उपहास उड़ाना पर, ऐसा पाकिस्तानी हिंदू कतई नहीं सोचते, बल्कि बंदिशों की प्रत्येक व्यवस्थाओं से कड़ाई के साथ मुकाबला कर रहे हैं। जितने भी हैं वो खुद को औरों से कमतर नहीं आंकते। उदाहरण सामने है, दो वर्ष पूर्व एक पहली हिंदू महिला वहां जज बनीं थी।
किक्रेट में दानिश कनेरिया ने अपने दम पर नाम कमाया। पंजाब प्रांत में हिंदुओं और सिखों की तादाद अब भी अच्छी है, जो तकरीबन सभी चुनावों में उम्मीदवारों की जीत-हार का फैक्टर तय करती हैं लेकिन, इतनी बड़ी आबादी का दुर्भाग्य देखिए, उनके बीच से आज तक कोई हिंदु प्रतिनिधित्व नहीं कर पाया। सियासी हुक्मरानों कभी मौका नहीं दिया लेकिन सवीरा प्रकाश ने अपनी दावेदारी करके नया इतिहास लिख दिया है।
सवीरा की मूल जड़ सनातनी है। उनकी जड़े हिंदुस्तान से वास्ता रखती हैं, इसलिए उनका छुटपुट विरोध हो रहा है पर, उनके पिता खुद एक कद्दावर राजनेता माने जाते हैं और पीपीपी पार्टी के विश्वसनीय नेताओं में शुमार होते हैं। इसके अलावा वह मुल्क के विख्यात चिकित्सक भी हैं। इसलिए सवीरा के जो हिंदू महिला कैंडिडेट होने का विरोध करते हैं वह उनका खुद जवाब देते हैं।
सवीरा प्रकाश ने चुनाव लडऩे का निर्णय क्यों लिया, इस विषय पर चर्चा करना भी जरूरी हो जाता है। सवीरा चिकित्सक के रूप में एक सरकारी अस्पताल में तैनात हैं जहां उन्होंने देखा कि पाकिस्तान के अस्पतालों की स्थिति कितनी दयनीय है। न अच्छी सुविधाएं हैं और न गर्भवती महिलाओं की कोई अच्छी चिकित्सकीय देखरेख? इसलिए उन्होंने डॉक्टरी के साथ-साथ राजनेता बनने का फैसला किया, जिससे वह गरीबों, वंचितों व असहाय महिलाओं के लिए कुछ कर सके।
सवीरा ने दो वर्ष पूर्व ही ‘एबटाबाद इंटरनेशनल मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया है। पिछले वर्ष जनवरी में उन्होंने पीपीपी पार्टी ज्वाइन की। पार्टी ने उन्हें ‘बुनेर क्षेत्र से महिला विंग का ओहदा दिया। बुनेर संसदीय क्षेत्र से उन्होंने अपनी दावेदारी पेश की है। नामांकन होने के बाद वह सुबह से ही चुनाव प्रचार के लिए निकल जाती हैं। घर में बकायदा कृष्ण भगवान का मंदिर है, जहां नियमित पूजा-अर्चना करती हैं। प्रत्येक मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ भी करती हैं। बुनेर ऐसा क्षेत्र है जहां पाकिस्तान के बनने के बाद आज तक किसी महिला को चुनाव लडऩे का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।
सवीरा ने अपना नामांकन भरने से पूर्व इलाके के सभी धर्मों के लोगों से रायशुमारी की, सभी ने समर्थन देने का उन्हें वादा किया। इसी कड़ी में बीते शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद पास की ‘ईरशिद मस्जिद से उन्हें जिताने के लिए मुस्लिमों ने बकायदा एनाउंस भी किया। कुल मिलाकर सवीरा को सभी लोगों का समर्थन मिल रहा है। मुल्क की आवाम उनसे उम्मीद करती है कि जीतने के बाद सवीरा नि:संदेह सरकारी अस्पतालों के खराब प्रबंधन को सुधारने का काम करेंगी। चुनाव परिणाम आने के बाद देखते हैं कि पाकिस्तान की पहली हिंदू महिला संसदीय इतिहास को नए सिरे लिख पाती हैं या नहीं?
-डॉ0 रमेश ठाकुर
-डॉ0 रमेश ठाकुर