Friday, November 22, 2024

होली: बहुरंगी प्रकृति का हर रंग है प्यार के काबिल

होली यानी रंगों का त्योहार। रंग तो रंग ही होते हैं। पिचकारी में भरकर रंगों की बौछार करें या सूखी होली खेलें। किसी भी तरह से खेलें। होली का मतलब है रंगों की मस्ती। चुटकी भर रंग किसी को लगायें या उसे रंगों से सराबोर करें। हर कोशिश का मतलब होता है कि किसी को रंगना और यह आमंत्रण या चुनौती देना कि आओ मुझे भी रंग दो।
इस होली में आप क्या पसन्द करेंगे। कहावतों की भाषा में कहा जाए तो यह पूछा जा सकता है कि लाल-पीला होना, गुलाबी बनना, कालिख लगवाना या लगाना, तबीयत हरी करना, सफेदी करवाना या मक्खन जैसा दिखना आदि अनेक विकल्प मौजूद हो सकते हैं। आप को चुनना है कि आप किस रंग में आना चाहते हैं या दूसरों को अपने किस रंग में रंगना चाहते हैं।

रंगों के इस त्योहार पर रंगों पर बात हो जाए तो पता चलेगा कि हर रंग का निराला आनन्द होता है। हर रंग के कई शेड होते हैं और हर शेड का अलग आकर्षण। इन्द्रधनुष के सात रंग सबको अच्छे लगते हैं। साहित्य और कला में नवरंग की चर्चा होती है। रंगों की अपनी जोड़ी भी होती है। वैसे तो हर रंग का अलग अर्थ होता है। लेकिन ये रंग जब जोड़ी में आते हैं तो उसका अभिप्राय और आकर्षण बढ़ जाता है। काला और सफेद, श्वेत-श्याम, ब्लैक एण्ड व्हाइट किसी भी भाषा में बोलिये, इन दो रंगों की अटूट जोड़ी हर जगह दिखेगी। एक-दूसरे से अलग अर्थ और आकर्षण लिये ये रंग परस्पर विरोधी भी हैं और पूरक भी। काले के बिना सफेद का कोई मूल्य नहीं होता ओर यदि सफेद न हो तो काले की क्या पहचान। प्रकृति में और विशेषकर फूलों में देखिये विभिन्न रंगों की जोड़ी का आनन्द अतुलनीय होता है।

प्रकृति के हर रंग में आपको जीवन जरूर मिलेगा। किसी रंग से डरने या चिढऩे की जरुरत नहीं है। जरुरत है उस रंग की विशेषता पहचानने की और समय के अनुसार उसका उपयोग करने की। यदि आप किसी रंग से चिढऩे लगेंगे तो यह आपकी भूल होगी। बड़े-बड़े बुद्धिजीवी भी यह गलती करते हैं। किसी को लाल रंग पसन्द नहीं है तो कोई भगवा रंग पसन्द नहीं करता। किसी रंग से आतंकित मत होइये। प्रकृति का प्रतीक हरा रंग हो या तपस्वियों का प्यारा भगवा रंग, किसी के प्रति पूर्वाग्रह मत पालिये। आप ऐसी परिस्थिति से बचिये। लाल कपड़े को देखकर भड़कने वाले स्पेन के सांड और आपके मानसिक स्तर में अन्तर होना चाहिये। यह भी महसूस कीजिये कि कई बार किसी विशेष समय तथा वातावरण में कोई रंग बहुत अच्छा लगता है। हमारी प्रकृति बहुरंगी – बहुआयामी है। अत: होली के अवसर पर प्रकृति के हर रंग का मजा लीजिये।

वैसे भी आज जब काला धन (ब्लैक मनी) सोने से भी ज्यादा मूल्यवान हो गया है, तब काले रंग से बचने का कोई फायदा नहीं है। काली मिर्च अधिक तीखी होती है और गुणकारी भी। यह भी कहा गया है – काली कमरी पर चढ़े न दूजा रंग (काले कम्बल पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता)। हिन्दी फिल्म का मशहूर गीत है- ”काले हैं, तो क्या हुआ दिलवाले हैं।  सचमुच काला रंग दिल वाला होता है। यह जब कृष्ण रूप में दिखता है, तब नेत्रों को लुभाता है और जब ये राधा के साथ होता है तो इसका आकर्षण कई गुना हो जाता है। अब यदि आप गौर वर्ण हैं तो काले रंग से रंगे जाने से परहेज मत कीजिये और यदि आप स्वयं इसी रंग से सुशोभित हैं तो चिन्ता की क्या बात है। किसी दूसरे का डाला रंग आपको परेशान नहीं कर सकता।

सफेद रंग की भी अलग शान है। काले और सफेद रंग में सबसे बड़ा अन्तर यही है कि काला रंग किसी को अपने ऊपर चढऩे नहीं देता। लेकिन सफेद रंग हर दूसरे रंग से समन्वय स्थापित कर सकता है। यदि सफेद रंग पर कोई रंग पड़ जाये तो डरने की बात नहीं है। आपकी सफेदी दूसरे रंग का साथ पाकर अधिक खिल उठेगी। यह कहा जाता है कि सफेद रंग शान्ति का प्रतीक होता है, लेकिन युद्ध भूमि में यदि कोई राजा सफेद ध्वज फहरा दे तो यह उसके समर्पण का सूचक होता था। बालों की सफेदी बुढ़ापा बताती है। चमड़े की सफेदी यानी सफेद दाग एक बीमारी होती है तो उसका इलाज भी सफेद वस्त्र पहनने वाले चिकित्सक करते हैं। क्या बिना सफेद कपड़ों के चिकित्सा व्यवसाय की कल्पना कर सकते हैं।
बहरहाल चिन्ता की बात नहीं है यदि आपको कोई सफेदा लगा दे। सफेदी तो हर उम्र में अच्छी लगती है। यों आमतौर पर लोग सफेद रंग डालना पसन्द नहीं करते। आप चाहें तो उसकी शुरुआत कर दें। हो सकता है कि दूसरे लोग भी आपका अनुसरण करें तो मौसम-बेमौसम कालिख लगाने की प्रवृत्ति कम हो सकती है।

सफेद और काले इन दो रंगों के अलावा और भी कई रंग मनमोहक होते हैं। किसी को लाली अच्छी लगती है तो किसी को गुलाबीपन, पर्यावरण प्रेमियों को हरे और नीले रंग भाते हैं। रंग दे बसन्ती की धुन कभी प्रकृति की सुषमा बनकर लुभाती है तो कभी आजादी की लड़ाई की याद दिला कर रोमांचित करती है तो कभी महावीर हनुमान इससे प्रसन्न होते हैं। सिन्दूरी रंग, भारतीय नारी की शान होता है। वह जहाँ भी छा जाता है गुलाब के फूल में या किसी की साड़ी में, हमेशा आकर्षक होता है। भगवा रंग युगों से साधना का प्रतीक रहा है तो हरा रंग प्रकृति का। नीले रंग को लोग शान्तिदायक मानते हैं। साथ ही आसमान की कल्पना भी। स्वास्थ्यवर्धक और दर्द नाशक हल्दी का अपना अलग रंग होता है। कत्थे का रंग जब चूने पर चढ़ता है तो उसकी अलग शान होती है। बिस्कुट और चाकलेट का रंग हर उम्र के लोग पसन्द करते हैं। प्रकृति ने हमें रंग के रूप में अलग-अलग उपहार दिये हैं।

रंगों के भी अलग-अलग शेड होते हैं। कोई चटक-शोख रंग का दीवाना होता है तो किसी को हल्के-सौम्य रंग अच्छे लगते हैं। यह पसन्दगी लोगों के मूड, उम्र तथा अवसर के अनुसार भी बदलती रहती है। अपनी नजर चारों ओर घुमाइये। प्रकृति तथा पर्यावरण का कोई न कोई रंग आपको जरुर मोह लेगा। अपना मनपसन्द रंग चुनिये। उसमें स्वयं को रंगिये और दूसरों को भी सराबोर कीजिये।

वैसे यह केवल त्यौहार की बात नहीं है। पूरे जीवन में हमारे जाने-अनजाने में हम पर कोई न कोई रंग हावी होता रहता है।
यह विकल्प हमारे पास बहुधा होता है कि हम अपने आपको किस रंग रूप में समाज के सामने प्रस्तुत करना चाहते हैं। हो सकता है कि आप होली का त्योहार पसन्द न करते हों।
ऐसे बहुत लोग हैं, जो होली खेलना पसंद नहीं करते। वे नहीं चाहते कि उन पर कोई रंग डाले, ऐसे लोग भी रंगों की मार से कब बचे हैं, कभी मौसम, कभी परिस्थितियाँ और कभी समाज उन पर रंग डालता रहता है। पसन्द करें या न करें, जीवन भर किसी न किसी रंग में रंगे रहते हैं, तब उत्सव के इन रंगों से क्या बचना जो आपको समाज से जोड़ते हैं और परम्पराओं की प्रतीति कराते हैं।

साहित्य में और हमारे जीवन में काला रंग सबसे ज्यादा छाया हुआ है। क्या यह संयोग मात्र है कि हमारे आराध्य देव राम और कृष्ण दोनों सांवले रंग के थे। उनकी सांवली सूरत-मोहनी मूरत के हम सदियों से दीवाने हैं। काला रंग काजल बनकर नेत्र-ज्योति बढ़ाता है तो डिढोना-टीका बनकर बुरी नजर से रक्षा भी करता है। बादल पर जब काला रंग छाता है तो अमृत रूपी जल बरसता है। कभी यह काला रंग विषाद का भी सूचक होता है। जैसा अवसर हो काला रंग उसके अनुरूप अर्थ प्रकट करता है। आप पसन्द करें या न करें, काले रंग से आप बच नहीं सकते। आँखों की काली पुतली से क्या कोई आँखवाला बच सकता है। यह नहीं, सूरदास को भी यह कृष्ण वर्ण मोहित करता था।

रंग को लेकर तरह-तरह की कहावतें हैं। यह कहा जाता है कि आदमी गुस्से में लाल-पीला हो जाता है, सावन के अंधे को हरा-हरा सूझता है। जहर के कारण शरीर नीला पड़ जाता है। तरह-तरह की कहावतें रंगों को लेकर हैं, लेकिन ये कहावतें इनका एक पक्ष ही मजबूत करती हैं। लाल रंग यौवन और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। स्वास्थ्य के लिये लाल-लाल अनार, पूजा के लिए लाल चन्दन, श्रृंगार के लिए लाली, यही स्थिति हरे रंग की है। सावन के अंधे को हरा-हरा तभी सूझता है, जब वह सावन की हरियाली को अपनी आंखों में समेट लेता है। लेकिन आँखों में हरियाली भरने के लिए अंधा होना जरूरी नहीं है। प्रकृति को भरपूर प्रेम कीजिये, पर्यावरण का संरक्षण कीजिये, अपने आस-पास हरियाली बने रहने दीजिये। जीवन सदा हरा-भरा रहेगा। हरे रंग के झंडे लहराने की तब आवश्यकता नहीं होगी।

वैसे ही जहर पीकर शरीर नीला करने की जरूरत नहीं है। आप इतनी क्षमता अर्जित कीजिए कि दूसरों के हिस्से का जहर पीकर नीलकण्ठ बन जायें, लेकिन यह विष न तो आपके मुँह में रहे और न ही कण्ठ से नीचे उतरकर उदर तक पहुँचे। आप शिव के समान योगी सिद्ध होंगे।
प्रकृति के हर रंग को अपने जीवन में उतारिये। हर रंग से अपने तन-मन का श्रृंगार कीजिये। होली के पावन पर्व पर रंग द्वेष से बचिये और प्रकृति तथा जीवन के हर रंग को प्यार कीजिये। होली में ही नहीं, जीवन भर आपको हर रंग में आनन्द मिलेगा।
हर्षवर्धन पाठक – विनायक फीचर्स

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