Sunday, November 3, 2024

7 मार्च को होलिका दहन सायं 6:30 से रात्रि 8:51 के बीच प्रदोष काल में रहेगा विशेष फलदायी- पंडित विनय शर्मा

 

मुजफ्फरनगर। हर्षोल्लास से भरा पावन पर्व होली एक धार्मिक एवम्‌ सामाजिक पर्व है। यह एक प्रकार से वैदिक यज्ञ भी है। इस पर्व में वर्ण और जाति-भेद का कोई विचार नहीं होता। यह पर्व तांत्रिकों के लिए भी विशेष पर्व है। भक्त प्रहलाद से तो इसका सम्बन्ध जोड़ा जाता है। इसी दिन मनु भगवान की भी पूजा की जाती है क्योंकि फाल्गुन मास की पूर्णमासी के दिन मनु भगवान का भी जन्म हुआ था। इस दिन भगवत्‌ पूजा भी अपना विशेष महत्त्व रखती है।

भविष्यपुराण में उल्लेख के अनुसार नारद जी ने भी युधिष्ठिर से कहा था कि फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन सब लोगों को अभय दान देना चाहिए ताकि उल्लास पूर्वक स्वतंत्रता के साथ लोग स्वस्थ हास्य-परिहास करते हुए होलिकादहन करें। होली उत्सव मनाने से पापों का नाश होता है मनोकामना पूर्ण होती है।

मुजफ्फरनगर में स्थित लोकप्रिय धार्मिक संस्थान विष्णुलोक के संचालक रत्न रुद्राक्ष विशेषज्ञ पंडित विनय शर्मा ने बताया कि इस वर्ष 7 मार्च 2023 दिन मंगलवार को ही होलिका दहन श्रेष्ठ रहेगा। 6 मार्च 2023 को भद्रा शाम 4 बजकर 17 मिनट से प्रारम्भ होकर दिनांक 7 मार्च 2023 को प्रातः काल 5 बजकर 13 मिनट तक रहेगी । भद्रा काल में होलिका दहन करना निषेध माना जाता है ऐसा शास्त्रो में उल्लेख है इसीलिए 7 मार्च 2023 को ही प्रदोष काल में सांय 6:30 बजे से रात्रि 8:51 के बीच ही होलिका दहन करना श्रेष्ठ एवं उत्तम रहेगा। होलिका का पूजन पूर्णिमा में किया जाता है और पूर्णिमा 6 मार्च 2023 को शाम 4 बजकर 17 मिनट पर प्रारम्भ होगी और अगले दिन 7 मार्च 2023 को शाम 6 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। इस दिन महिलायें दोपहर 12 बजे से 1:30 बजे के बीच गुलीक काल में होलिका पूजन करेंगी तो विशेष फलदायी रहेगा। 8 मार्च 2023 को दुल्हैण्डी का पर्व मनाया जायेगा।

होली दहन के उपरान्त होली की भस्म अवश्य लगानी चाहिये और जलती होली की 7 परिक्रमा भी करनी चाहिये। जलती होली की परिक्रमा करने से हमारे शरीर में कम से कम 140 फ़ारेनहाइट गर्मी प्रविष्ट हो जाती है और शरीर की उस गर्मी से उत्पन्न करने वाले जीवाणु नष्ट हो जाते है।

होली का पर्व पितृ शान्ति के लिये भी विशेष महत्व रखता है। होली वाले दिन बाजार से सूखा खाने वाला तेल वाला गोला लायें और उसे ऊपर से काटकर उसमें काले तिल भर लें। तिल भरने के उपरान्त गोले के कटे हुऐ टुकडे को पुनः गोले पर रखकर कलावा बांध दें और इस गोले को नदी में बहा दें तथा पीछे से एक चांदी का नाग (सर्प) भी बहा दें और चुपचाप घर वापस आ जायें। शास्त्रों में उल्लेख है कि फाल्गुनी पूर्णिमा वाले दिन हिन्डौले में झूलते हुए भगवान श्री कृष्ण के दर्शन से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।

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